विवेक और वाणी की माता पिता की सुध


जैसे शिखर पर बहुत एकाकीपन होता है उसी तरह सेवाभाव भी एकाकीपन वाला होता है। अगर आपको उसमें सेल्फ मोटीवेशन न हो तो बहुत जल्दी लोगों की छोटी बड़ी जरूरतों को पूरा करना और उपेक्षा भी झेलना ऊबाऊ बन जाता है।

मेरे समधी, रवींद्र कुमार पाण्डेय का कोरोना संक्रमण और उबरना


“यह तो कोरोना है, जिसकी न कोई दवा है न कोई पुख्ता इलाज। बस देख सँभल कर चलना रहना ही हो सकता है। जिस तरह के कामधाम मैं हम हैं वहां अकेले एकांत में तो रहा नहीं जा सकता। लोगों से सम्पर्क तो होगा ही। गतिविधि तो रहेगी ही। बस, बच बचा कर वह कर रहे हैं।”

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