वे कुछ अस्वस्थ थे। ऑक्सीमीटर 90 की रीडिंग दे रहा था। थोड़ी खांसी और थकान। उनके दोनो बेटों ने उनके गांव (फुसरो, बोकारो, झारखण्ड) में किसी तरह का जोखिम लेने की बजाय उन्हें दिल्ली ले जाने का निर्णय लिया। यद्यपि उन्हें और कोई समस्या नहीं थी। कोई बुखार नहीं आया, कोई कंपकंपी नहीं हुई। पर फिर भी, इस कोरोना काल में कोई भी जोखिम लेने की बजाय उन्हें दिल्ली ले जाना बेहतर लगा विकास और विवेक को।
विकास रवींद्र पांड़े के बड़े बेटे हैंं। विवेक, मेरे दामाद, मंझले। रवींद्र कुमार पाण्डेय इस समय भूतपूर्व सांसद हैं। पिछले पांच बार वे गिरिडीह संसदीय क्षेत्र का लोक सभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। अपने क्षेत्र के भाजपा के सबसे सशक्त नेता हैं और अत्यंत सक्रिय भी!
सतरह अगस्त की शाम को मेरी बिटिया ने पाण्डेय जी की तबियत के बारे में बताया और उसके कुछ ही समय बाद उन्हें सड़क मार्ग से ले कर दिल्ली के लिये रवाना होने की खबर भी दी। यह भी बताया कि रास्ते में सवेरे पांच बजे के आसपास वे लोग हमारे गांव के समीप से गुजरेंगे।

अठारह अगस्त की सुबह वे लोग एक डेढ़ घण्टे के लिये यहां हमारे घर आये। यद्यपि रवींद्र पाण्डेय जी की बीमारी के बारे में निश्चित तौर पर कुछ ज्ञात नहीं था, हम ने कोरोना संक्रमण की आशंका मानते हुये पूरी सावधानी बरती। वे लोग स्वयम भी सावधान थे। पाण्डेय जी थके हुये लग रहे थे, पर मरीज की तरह बिल्कुल झूल गये हों, वैसा भी नहीं था। अपनी कार से हमारे बराम्दे तक करीब पचास कदम खुद चल कर आये और कुर्सी पर बैठ कर बड़े सामान्य तरीके से बातचीत भी की – “भईया, आप तो बोकारो आये नहीं, हम ही चले आये हैं!” हर साल उनका नवरात्र में विंध्याचल आना होता है माँ विंध्यवासिनी के दर्शन के लिये। जब भी आते हैं तो हमारे यहां मिलते हुये ही वापस लौटते हैं। इस साल लॉकडाउन के कारण आना नहीं हो पाया था। अब अकस्मात आना हो गया।
मैंने देखा कि संक्रमण की पूरी आशंका के बावजूद उनकी पत्नीजी – श्रीमती लक्ष्मी पाण्डेय – उनका पूरा ध्यान रख रही थीं। स्नानघर में उनको तैयार करना, उनके कपड़े पानी से धो कर सूखने को डालना, उनके दवा-भोजन की फिक्र करना बड़ी बारीकी से उन्होने खुद किया। एक पूर्व-सांसद की पत्नी (और वह व्यक्ति, जो भविष्य में भी झारखण्ड की राजनीति में असीमित दमखम रखता हो) इतनी समर्पण भाव से सेवा करती हो – भारतीय नारी की श्रद्धा-मूर्ति लगीं लक्ष्मी पाण्डेय जी।

पाण्डेय जी का काफिला (दो कारों में थे वे लोग) करीब डेढ़-दो घण्टे में नहा-धो कर और नाश्ता/भोजन कर मेरे यहां से रवाना हो गया। उनके जाने के बाद पूरी सतर्कता बरतते हुये हमने उनके इस्तेमाल किये परिसर को पर्याप्त सेनिटाइज कर लिया।
उनके जाने के बाद, मन में यह संतोष भाव तो था, कि हमने, आशंका के बावजूद अपने अतिथि धर्म को, अपनी क्षमता अनुसार निर्वहन करने का प्रयास किया। फिर भी, मन में यह भी था कि दूरी बना कर मिलने और पूरे समय मास्क लगाये रखने को वे कहीं अन्यथा न ले रहे हों।
वे लोग दिल्ली/गुड़गांव मध्य रात्रि के बाद ही पंहुचे। अगले दिन सवेरे रवींद्र कुमार पाण्डेय और उनकी पत्नीजी ने मेदांता अस्पताल में अपना कोविड-19 टेस्ट कराया। पाण्डेय जी कमजोरी और अन्य लक्षणों के कारण अस्पताल में भर्ती भी हो गये। देर रात में टेस्ट रिपोर्ट में पता चला कि रवींद्र जी कोरोना पॉजिटिव हैं पर उनकी पत्नीजी संक्रमित नहीं हैं।
पाण्डेय जी ने अपनी फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपने कोरोना संक्रमित होने की बात सभी को बता भी दी। पर यह भी मुझे लगा कि रवींद्र पाण्डेय खुद कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद, कोरोना स्प्रेडर या सुपर स्प्रेडर नहीं थे; अन्यथा उनकी पत्नीजी, जो बराबर उनके साथ उनकी सहायता को बनी रहीं, जरूर कोरोना पॉजिटिव होतीं।
वे एक सप्ताह तक अस्पताल में रहे। सत्ताईस अगस्त को वे अस्पताल से डिस्चार्ज हुये।

अस्पताल से छुट्टी पाने के बाद करीब एक पखवाड़ा वे दिल्ली में अपने फ्लैट में रहे। कुछ दिनों पहले वे अपने झारखण्ड आवास (फुसरो, बोकारो) आ गये हैं।
आज एक महीना हो रहा है अस्वस्थता के कारण दिल्ली यात्रा किये हुये। हमारे अपने करीबी में एक वही व्यक्ति हैं, जिन्हे कोरोना की आशंका के साथ मैंने पास से देखा और जो उसके बाद कोरोना पॉजिटिव पाये गये और संक्रमण से विधिवत उबर भी गये।
मैंने रवींद्र कुमार पाण्डेय जी से महीना भर गुजरने पर फोन पर बात की। उनका कहना था – “भईया, एक आदमी तीन दिन साधारण बुखार में रहता है तो एक पखवाड़ा तक कहता रहता है कि बहुत कष्ट है। यह तो कोरोना है, जिसकी न कोई दवा है न कोई पुख्ता इलाज। बस देख सँभल कर चलना रहना ही हो सकता है। जिस तरह के कामधाम मैं हम हैं वहां अकेले एकांत में तो रहा नहीं जा सकता। लोगों से सम्पर्क तो होगा ही। गतिविधि तो रहेगी ही। बस, बच बचा कर वह कर रहे हैं।”
उन्होने तो नहीं कहा, पर बातचीत से लगता था कि उनका स्वास्थ्य पूर्ववत तो नहीं है। अपने मूवमेण्ट्स में कुछ तो कमी उन्हे करनी पड़ी है। राजनैतिक सक्रियता उनकी प्रकृति में है और आसन्न विधान सभा उपचुनाव के कारण अनिवार्यता भी है। अतः वे एकांतवास तो कर ही नहीं पाएंगे।
कोरोना महामारी से निपटने का हर वर्ग का तरीका और रिस्पॉन्स कुछ कुछ अलग है। आईटी वाले घर में बैठ कर काम कर रहे हैं। दुकानदार और डिजिटल बन रहे हैं। बिल्कुल देसी गांव की दुकान वाला भी फोन पे का स्कैन कोड लगा लिया है। शिक्षा अधिकाधिक ऑन लाइन हो रही है। पर रवीन्द्र पाण्डेय जी की राजनैतिक पीढ़ी (मेरे अंदाज में) अनुकूलन की तकनीकें स्वीकारने में फिसड्डी है। उन्हें अपने जन संपर्क को ज्यादा से ज्यादा डिजिटल बनाना चाहिए। यह संक्रमण से पहले भी जरूरी था और अब तो बहुत ही जरूरी हो गया है। पाण्डेय जी के पास डिजिटल दक्ष नौजवान होने चाहिएं और उनको भाव भी मिलना चाहिए।… पर मैं जानता हूँ कि वे करेंगे अपने हिसाब से ही। परिवर्तन हर एक के लिए कठिन है और राजनेता के लिए; जिसकी ईगो को पुष्ट करने के लिए कई लोग आगे पीछे घूमते हैं; तो और भी कठिन है।
एक बात और – पोस्ट कोविड समस्यायें – विशेषकर सीनियर सिटिजन के लिये; भले ही उनकी देखभाल बड़ी अच्छी तरह होती हो; एक गम्भीर वास्तविकता हैं। इसके बारे में ज्यादा कुछ पढ़ने को नहीं मिलता। वह भी कोविड-19 जानकारी का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिये।
कोरोना संक्रमण अब दूर की खबर नहीं रही। अपने आसपास, अपने सम्बंधियों में भी सुनने को आ रहा है। इस विषाणु के साथ लगभग साल भर और गुजारना है। यह समय सकुशल गुजर जाये, इसकी तैयारी रहे और सावधानी भी – इसी की कामना की जाती है।
इस ज़ालिम बीमारी से हम भी दो दो हाथ कर चुके हैं , बड़ा बेटा जो हमारे साथ ही रहता है अभी कोरोना संक्रमित पाया गया। आर्किटेक्ट है ,अपना ऑफिस है लिहाज़ा बहुत से लोगों से मिलना जुलना होता है। शाम को घर आया तो हलकी हरारत महसूस हुई। रात में 100 बुखार हुआ जो सुबह 11 बजे तक 102 तक पहुँच गया। अपने फैमिली डा से परामर्श किया तो उसने कोविड जांच की सलाह दी। टेस्ट पॉजिटिव आया। उसे तुरंत घर के बाहर वाले कमरे में शिफ्ट किया जिसमें सभी सुविधाएँ हैं ,कमरे के साथ लगा बरामदा है जो घर के गार्डन में खुलता है। अगले दिन घर के सभी सदस्यों की कोविड जाँच करवाई जिसमें उसके दो बच्चे, एक मेरी 90 वर्षीय माताजी, पत्नी और बहुरानी शामिल हैं. सबकी रिपोर्ट नेगटिव आयी। तीन दिन तक उसे बुखार रहा लेकिन ऑक्सीजन लेवल और प्लस ठीक थी। चौथे दिन बुखार उतर गया। सब कुछ नार्मल लेकिन डाक्टर ने कहा अभी 14 दिन अलग ही रहना है। उसे डिस्पोजल बर्तनों में खाना ,काढ़ा, चाय नाश्ता आदि देते थे और लगभग 10 फिट की दूरी से बात करते थे हम लोग। 15 वें दिन फिर कोविड जांच की ,रिपोर्ट पॉजिटिव आयी। डाक्टर ने आइसोलेशन एक हफ्ते के लिए बढ़ा दिया। 21 वें दिन फिर कोविड जाँच करवाई और हैरत की बात है वो भी पॉजिटिव आयी लेकिन डाक्टर ने अब आइसोलेशन खत्म करने को कहा है । डाक्टर के अनुसार शायद मृत वायरस के शरीर में होने के कारण रिपोर्ट नेगटिव आ सकती है। पिछले 18 दिन से वो बिलकुल ठीक है लेकिन फिर भी उसे अलग रख कर हमने अपनी सुरक्षा का ध्यान रखा है। कोविड के बारे में अभी किसी को पूरी जानकारी नहीं है इसलिए बचाव में ही समझदारी है। मास्क पहने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और जहाँ तक संभव हो घर ही रहें ,
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सुखद है कि आप लोग जागरूक और सावधान हैं। शुभकामनाएं!
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