मैंने अपने जीवन का बहुमूल्य भाग नर्मदा के सानिध्य में व्यतीत किया है। रतलाम मे रहते हुये ओँकारेश्वर रोड स्टेशन से अनेक बार गुजरा हूँ। पर्वों पर ओंकारेश्वर के लिए विशेष रेल गाडियां चलाना और ओंकारेश्वर रोड स्टेशन पर सुविधाएं देखना मेरे कार्य क्षेत्र में आता था। नर्मदा की पतली धारा और वर्षा में उफनती नर्मदा – दोनो के दर्शन किये हैं। यहाँ नर्मदा के उफान को देख कर अंदाज लगा जाता था की ३६ घन्टे बाद भरूच में नर्मदा कितने उफान पर होंगी और बम्बई-वड़ोदरा रेल मार्ग अवरुद्ध होने की संभावना बनती है या नहीं।
नर्मदा माई को दिल से जोड़ने का काम किया अमृतलाल वेगड जी की किताब – “सौन्दर्य की नदी नर्मदा“* नें. यह पुस्तक बहुत सस्ती थी – केवल ३० रुपये में। पर यह मेरे घर में बहुमूल्य पुस्तकों में से एक मानी जाती है। इसके कुछ पन्ने मैं यदा-कदा अपनी मानसिक उर्वरता बनाए रखने के लिए पढ़ता रहता हूँ। पुस्तक में वेगड जी की लेखनी नर्मदा की धारा की तरह – संगीतमय बहती है। और साथ में उनके रेखाचित्र भी हैं – पुस्तक को और भी जीवन्तता प्रदान करते हुये।
————————————————
* मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल द्वारा प्रकाशित