नेगोशियेशन तकनीक : धीरे बोलो, हिन्दी बोलो

मैं अपनी बताता हूं. जब मैं आवेश में होता हूं भाषण देने या ऐसी-तैसी करने के मूड़ में होता हूं तो अंग्रेजी निकलती है मुंह से. धाराप्रवाह. और जब धीरे-धीरे बोलना होता है, शब्दों को तोल कर बोलना होता है तब हिन्दी के सटीक शब्द पॉपकॉर्न की तरह एक-एक कर फूट कर सामने आते हैं.

मेरे एक यूनियन नेता ने इस ऑब्जर्वेशन का अच्छा फायदा उठाया था नेगोशियेशन में. रेलवे में पर्मानेण्ट नेगोशियेशन मशीनरी (पी.एन.एम.) की बैठक यूनियन से दो माह में होती है. मुद्दों पर आवेश आना बहुधा हो जाता है. यूनियन नेता अगर कमजोर विकेट पर हों तो आपको आवेशित करने का यत्न भी करते हैं आवेश में आप कुछ अंट-शंट कहें और वे उसी का हो हल्ला कर बच जायें. एक कमजोर मुद्देपर उन्होने ऐसा ही किया। मुझे प्रोवोक किया। आवेश में मैंने धुंआधार भाषण झाड़ा – अंग्रेजी में. पिन-ड्रॉप साइलेंस में वे सारे सुनते रहे. मैने कोई स्लिप भी नहीं की, जिसका वे फायदा ले सकें. भाषण खतम कर विजयी मुद्रा में मैने देखा सब के हाव भाव से लगा कि शायद मैने प्वॉइण्ट स्कोर कर लिया है.

अब यूनियन नेता की बारी थी. बड़ी शालीनता से वह प्रारम्भ हुआ. शुद्ध हिन्दी में साहब, आप तो पढ़े-लिखे हैं. मैं तो आठवीं पास कर स्टीम इंजन का बॉयलर मैन भर्ती हुआ था. वैसे भी यह क्षेत्र (हिन्दी भाषी क्षेत्र) है. हमें तो अंग्रेजी आती नहीं. आप तो बहुत अच्छा बोल रहे थे, इसलिये मैने टोकना ठीक नहीं समझा. पर असली बात यह है कि आपने जो कहा हमें समझ में नहीं आया. न हो तो मेरे साथियों से भी पूछ लीजिये. पी.एन.एम. में 20 यूनियन वाले होते हैं. सबने मुण्डी हिलाई समझ में नहीं आया।

मेरा भाषण ध्वस्त हो गया. मैं कितना भी ओजस्वी बोला होऊं; नेगोशियेशन स्किल में हार गया. वह बन्दा अगर समझ नहीं आ रहा था तो बीच में रोक सकता था. पर बड़े धैर्य से उसने मेरी स्टीम निकाली. फिर जो माहौल बना, उसमें आप कितनी रिपीट परफार्मेंस देने की कोशिश करें हिन्दी में; वह समा बन ही नहीं सकता. नेगोशियेशन में समय का बड़ा महत्व है. वह मैने खो दिया था। नेता गुज्जर मसले की तरह उस मामले को आगे सराकाने में सफल रहा।

हमारे यूनियन नेता बहुत ही तेज होते हैं वक्तृता शक्ति और आर्ट आफ नेगोशियेशन में। एक उदहारण मेरे अंग्रेजीके ब्लॉग पर है.

बाद में मैने उस नेता को अकेले में पकड़ा- क्यों गुरू, अंग्रेजी नहीं आती? वह बोला साहब आपके तर्कों पर चर्चा कर मैदान हारना थोड़े ही था मुझे!

इस लिये मैने नसीहत गांठ बांध ली. अगला जब हिन्दी वाला हो और ऑफीशियली समझाना हो तो धीरे बोलो, हिन्दी बोलो.

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “नेगोशियेशन तकनीक : धीरे बोलो, हिन्दी बोलो

  1. पूर्ण विश्वास है कि इतनी सारगर्भित, व्यावहारिक ज्ञान की बात, वह भी निजी अनुभूत दृष्टांत के साथ तो प्रबंधन के महागुरु समझे जाने वाले लोग भी नहीँ दे सकते। धन्यवाद।

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  2. वाह ! वाह !! आनन्‍द आ गया । ऐसी बातें लोग छुपाते हैं लेकिन आपने सार्वजनिक कर दी । बडी बात है । अनुभवजन्‍य अपने ज्ञान को सार्वजनिक कर अपना नाम सार्थक कर दिया । साधुवाद ।

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