ढेरों कैम्प, ढेरों रूहें और बर्बरीक


बर्बरीक फिर मौजूद था. वह नहीं, केवल उसका सिर. सिर एक पहाड़ी पर बैठा सामने के मैदान पर चौकस नजर रखे था. ढेरों रूहों के शरणार्थी कैम्प, ढेरों रूहें/प्रेत/पिशाच, यातना/शोक/नैराश्य/वैराग्य/क्षोभ, मानवता के दमन और इंसानियत की ऊंचाइयों की पराकाष्ठा – सब का स्थान और समय के विस्तार में बहुत बड़ा कैनवास सामने था. हर धर्म-जाति-वर्ग;Continue reading “ढेरों कैम्प, ढेरों रूहें और बर्बरीक”

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