कुछ सफल और आत्म-मुग्ध (हिन्दी ब्लॉगर नहीं) लोग!

मेरा लोगों से अधिकतर इण्टरेक्शन ज्यादातर इण्टरकॉम-फोन-मीटिंग आदि में होता है. किसी से योजना बना कर, यत्न कर मिलना तो बहुत कम होता है. पर जो भी लोग मिलते है, किसी न किसी कोण से रोचक अवश्य होते हैं.

अधिकतर लोग मेरे मुख्यालय में सोमवार की महाप्रबन्धक महोदय की रिव्यू मीटिंग में मिलते हैं. ये होते हैं 20 से तीस साल तक की अवधि सिविल/इंजीनियरिंग सेवा में गुजारे हुये विभागाध्यक्ष लोग. इनमें से प्रत्येक व्यक्ति कम से कम 5000 रेल कर्मियों पिरामिड के शीर्ष पर होते हैं. सामान्य जन-अवधारणा से अलग, अपनी प्रतिभा और अपनी मेहनत से उपलब्धियां पाये और उन उपलब्धियों से एक ब्लॉगर की तरह ही आत्म-मुग्ध लोग हैं ये. मै इनमें से कुछ सज्जनों के विषय में बिना नाम लिये लिखने का यत्न करता हूं.

एक सज्जन हैं; जो सबसे ज्यादा इम्पेशेण्ट दीखते हैं. अगर उनके अपने विभाग की बात न हो तो दूसरों को समस्या का समाधान सुझाने में पीछे नहीं रहते. और कोई दूसरा भला आपकी बिन मांगी सलाह क्यों हजम करने लगा? परिणाम द्वन्द्व में होता है अक्सर. मजे की बात यह हुई की किसी ने मुझे बताया कि ये बम-ब्लास्टिया सज्जन परम-शांति नामक शीर्षक से एक ब्लॉग भी लिखते हैं. मैने ब्लॉग देखा. बिना चित्रों के, अंगेजी के एक ही फॉंण्ट में, ब्लैक एण्ड ह्वाइट रंग में था वह. फुरसतिया जी की पोस्टों से दूने लम्बे लेख थे उसमें. वास्तव में परम शांति थी. कौन पढ़े! एक पोस्ट पर एक कमेण्ट दिखा तो उसे पढ़ने का मन हुआ. वह निकला उन्ही के किसी कर्मचारी का जो न जाने किस मोटिव से ऐसी प्रशंसा कर रहा था जैसे कि वह पोस्ट-लेखन 10 कमाण्डमेण्ट्स के बाद सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज हो!

दूसरे सज्जन हैं जो वानप्रस्थ आश्रम की उम्र में चल रहे हैं पर कुंवारे हैं. कविता करते हैं. फाइलों पर अनिर्णय की बीमारी है उनके हस्ताक्षर लेना चक्रव्युह भेदने से कम नहीं है. एक बार पूंछा गया कि ये हस्ताक्षर क्यों नहीं करते? बढ़िया कमेण्ट था हस्ताक्षर करना आता होता तो निकाह न हो गया होता?

तीसरे सज्जन हैं जो सरनेम नहीं लगाते. पर जब भी किसी से पहली बार मिलते हैं तो येन-केन-प्रकरेण अपना जाति-गोत्र स्पष्ट कर देते हैं; जिससे कोई उन्हें अनुसूचित वर्ग का न समझ ले. विद्वान हैं, अत: जो भी पढ़ते हैं, उसे सन्दर्भ हो चाहे न हो, मीटिंग के दौरान बोल जरूर देते हैं. यानि ब्लॉगरों को जबरी लिखने की बीमारी होती है; उन्हे जबरी विद्वत्व प्रदर्शन की! कौन क्या कर लेगा!

चौथे सज्जन हैं जो हर चीज का तकनीकी हल तलाशते हैं. उनके घर में अच्छी खासी प्रयोगशाला और जंक मेटीरियल का कबाड़खाना है. रेलवे में गलत फंसे हैं. किसी कम्पनी में होते जो मेवरिक सोच को सिर माथे पर लेती तो उनकी वैल्यू हीरे की तरह होती. पर यहां तो जैसे ही वे कोई समाधान सुझाते हैं चार लोग तड़ से ये बताते हैं कि ये फलाने कोड/मैनुअल/रूल के तहद परमिसिबल नहीं है! फिर भी, मानाना पड़ेगा कि वे अधेड़ उम्र में भी (रेलवे जैसे ब्यूरोक्रेटिक सेट-अप में) इतने सतत विरोध के बावजूद तकनीकी इनोवेशन की उर्वरता खो नहीं बैठे!

ऊपर जो लिखा है उन सज्जनों के रोचक पक्ष है. उनकी दक्षता और मानवीय उत्कृष्टता के पक्ष अधिक महत्वपूर्ण हैं. पर उन पक्षों के लिये मुझे बहुत अधिक लिखना पड़ेगा. इसके अलावा कुछ सज्जन और हैं, जिन पर फिर कभी मन बना तो लिखूंगा.

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “कुछ सफल और आत्म-मुग्ध (हिन्दी ब्लॉगर नहीं) लोग!

  1. अच्छा है। जिन दिनों के ये लोग उन दिनों चलन था कि इंजीनियरिंग कालेजों के सबसे जहीन समझे जाने वाले लोग रेलवे में जाते थे। अब इसे व्यवस्था का दोष कहें याकि उन लोगों का दोष कि उनकी क्षमताऒं का समुचित दोहन न हो सका। इस तरह के छोटे-छोटे पराक्रमों :) के माध्यम से अपनी प्रतिभा के अहं की तुष्टि कर लेते हैं।

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  2. परिचय कराने का शुक्रिया।इन चौथे सज्जन के व्यक्तित्व परिचय ने प्रभावित किया।

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  3. पारखी निगाहें हैं, एक ब्लॉग है, लिखना है, मेटेरियल चाहिये, हर वक्त तलाश रहती है-यह सबके साथ होता है मगर शब्द रुप एक सार्थक लेख बन जाये, ऐसा आपके साथ ही क्यूँ होता है?:)-अच्छा लगा पढ़कर. बधाई.

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  4. टिप्पणी पर टिप्पणी -“…वैसे एक बात यूं भी सोच रहा हूं कि टिप्पणी करता हूं, क्या पता आपका प्रमोशन जाये और आप टीटीई बन ही जायें। तब करा दें रिजर्वेशन।…”ही ही ही, मैं भी यही सोच रहा हूँ :)

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  5. आप हरेक टिप्पणी में मोटिव देखते हैं, सो अब से टिप्पणी बंद करने की सोच रहे हैं। तारीफ हम काहे को करें, क्योंकि रिजर्वेशन कराने की तो आप मना ही करा चुके हैं। शायद रिजर्वेशन कराना आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। वैसे एक बात यूं भी सोच रहा हूं कि टिप्पणी करता हूं, क्या पता आपका प्रमोशन जाये और आप टीटीई बन ही जायें। तब करा दें रिजर्वेशन।

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  6. का दद्दा, किनपे निशाना लगा रिये हो!!ऐसन मनई तो हम सबै के आसपास मा होवत है ना!

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  7. आज सुबह सुबह अच्छे लोगों से परिचय कराया आपने.इस तरह के लोग रेल में ही नहीं वरन समाज में कई जगह मिल जायेंगे.वो परम शांति वाला ब्लौग कौन सा है.. उसका लिंक चुपके से भेज दें..:-)

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