इण्डियन एक्स्प्रेस हाजिर हो!!!

अरुण शौरी के जमाने से इण्डियन एक्स्प्रेस मेरा पसन्दीदा अखबार है. मैं 2003-04 में गोरखपुर में था. इण्डियन एक्स्प्रेस एक दिन देर से मिलता था, फिर भी मैने उसे जारी रखा. पर जब एक दिन बाद भी उसकी सप्लाई अटकने लग गयी तो जा कर अपनी लॉयल्टी बदली. अब भी मैं नेट पर इण्डियन एक्स्प्रेस ज्यादा देखता हूं बनिस्पत और अखबार के.

कुछ दिन पहले फोन आया इण्डियन एक्स्प्रेस के किसी व्यक्ति का. मैने उनके अखबार मे यह लिखा देखा था कि अगर अखबार मिलने में कोई दिक्कत हो तो फलाने पते पर ई-मेल कर सकते हैं. महीने भर पहले ई-मेल मैने किया होगा पर चलो, देरसे ही सही, किसी ने कॉण्टेक्ट तो किया! उस सज्जन को मैने अपनी घर की लोकेशन और अखबार न मिलने के बारे में बताया. यह भी बताया कि पॉयोनियर भी समय पर आता है, टाइम्स ऑफ इण्डिया की तो बात ही दूसरी है. पर इण्डियन एक्स्प्रेस की तो उपस्थिति ही नहीं है. मेरे विस्तार से समझाने पर वह व्यक्ति बोला जी कुछ प्रॉबलम है जरूर. हम देख कर कोशिश करेंगे.

मेरा पैर पटकने का मन हुआ. यह चिरकुट अगर कुछ कर नहीं सकता था तो फोन क्यों किया. और सरकारी स्टाइल जवाब क्यों दिया. खैर आई-गई हो गई. पर अन्दर की कथा कल नेट सर्फिंग में मिली.

हिन्दुस्तान टाइम्स के सह अखबार मिण्ट ने खबर दी है कि शेखर गुप्ता, इण्डियन एक्स्प्रेस ग्रुप के प्रमुख और एडीटर-इन-चीफ ने अपने साथियों को लम्बी ईमेल कर इण्डियन एक्स्प्रेस ग्रुप की खराब दशा के विषय में बताया है. शेखर ने कहा है कि मीडिया 25% की ग्रोथ कर चुका है पिछले साल और इण्डियन एक्स्प्रेस ग्रुप ने आय में 3% की कमी देखी है. उनके अनुसार कॉस्ट बढ़ती गयी है, मशीने काम नहीं कर रहीं, न्यूज प्रिण्ट का वेस्टेज बढ़ता गया है, इंवेन्टरी कंट्रोल कमजोर पड़ा है और सर्कुलेशन में दिक्कतें हैं…. यानी वह सब हो रहा है जो नहीं होना चाहिये. इतने बढ़िया ग्रुप का कचरा हो रहा है. निश्चय ही हिन्दुस्तान टाइम्स वाले मगन होंगे यह ईमेल लीक कर!

पर जो समाधान बताया जा रहा है शेखर को एडीटोरियल देखने देना और अन्य व्यक्ति को सीईओ बनाना, सेलरी फ्रीज, मार्केट और बैंकों से साख के आधार पर पैसा लेना आदि सफल नहीं होंगे अगर सरकारी छाप टरकाऊ जवाब देने की प्रवृत्ति चलती रही तो. अखबार बढ़िया है. सवेरे साढ़े चार बजे मेरी लोकल्टी में अगर पहुंचने लगे और अखबार वाला यह कहने की अवस्था में आ जाये कि फलाना अखबार आज देर हो गया है, उसकी जगह आप इण्डियन एक्स्प्रेस ले लें तो किला फतह मानें इण्डियन एक्स्प्रेस वाले. एडीटोरियल मे फेर बदल नहीं, लॉजिस्टिक्स में आमूल चूल परिवर्तन चाहिये. और ये कॉस्ट कटिंग-वटिंग कॉस्मेटिक लटके झटके हैं. हांक लगाने के लिये ठीक हैं, पर काम नहीं करते. प्रोडक्शन लाइन ठीक करें, सर्कुलेशन की लॉजिस्टिक्स के लिये सही बन्दा डबल सेलरी पर भी मिले तो फोड़ लायें. शुरू में ही माली हालत ठीक किये बगैर बहुत ज्यादा सर्क्युलेशन बढ़ाने को लार न टपकायें – टाइम्स आफ इण्डिया वाला प्राइस-वार शुरू कर देगा जो समेटना भारी पड़ेगा…

इण्डियन एक्स्प्रेस मुझे प्रिय है तो उसपर सोच रहे हैं. शायद आपको लगे कि यह व्यक्ति क्या प्रलाप कर रहा है. पर भैया, जो रुचता है, वह रुचता है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “इण्डियन एक्स्प्रेस हाजिर हो!!!

  1. इंडियन एक्सप्रेस मेरा भी प्रिय अखबार था. लेकिन अपनी बुरी गत के लिए वह खुद जिम्मेदार है. एक्सप्रेस के कर्ता धर्ताओं ने उसे कही का ना छोडा. उसे समय के चलना नही आया.एक्सप्रेस चाहता तो नए जमाने के हिसाब से खुद को ढाल सकता था. जो नही करेंगे वो पीछे छूट जाएंगे. यह सही है कि एक्सप्रेस आजकल सरकारी मशिनरी जैसा हो गया है.

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  2. @ यूनुस> अरे नयी दुनिया भी चौपट! भास्कर उसे पठकनी दे रहा था (मैं चार साल पहले की जानता हूं) पर इतना बुरा हाल है जैसा आप लिख रहे हैं? नयी दुनियां में तो मेरे एक दो लेख भी छपे थे! भैया, समय जो न कराये सो थोड़ा!

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  3. अरुण> …जे भैया कौन सो अखबार है हम आज जरूर देखिबे करब,जे हम तो आज तलक,पंजाब केसरी दैनिक… ज्यादा शराफत छांट रहे हो पंगेबाज! कभी स्मार्टनेस दिखाते लपेटे में आओगे न, तब हिसाब बराबर करेंगे. और वो भारी पड़ेगा! :)

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  4. जिस तरह आपको इंडियन एक्‍सप्रेस प्रिय रहा है वैसे ही मुझे भी । आज भी मुंबई से आने वाला लगातार दुबला होता संस्‍करण पढ़ता हूं । दिक्‍कत ये है कि ये ग्रुप अब समय के साथ नहीं चल रहा है । मुंबई से जनसत्‍ता और संझा जनसत्‍ता का दफ्तर बंद हो गया । दिल्‍ली में जो हाल है तो वो सबको पता है । इंडियन एक्‍सप्रेस देश के अनेक नगरों से निकलता है, खासकर दक्षिण भारत से । लेकिन प्रोफेशनल फ्रंट पर पिट रहा है । विज्ञापन नहीं हैं । सामग्री तो है । पर सरकुलेशन की चिंता किसी को नहीं । दुख होता है । बचपन से जिस अखबार ने साथ निभाया, वो है इंदौर से प्रकाशित होने वाला नई दुनिया । मैं कई बार कह चुका हूं कि उस उम्र में अखबार पर बैठकर अक्षर जोड़ जोड़कर पढ़ता था । विविध भारती मुंबई आया तो डाक से मंगाता रहा, एक दिन लेट । पर अब नई दुनिया का बुरा हाल है । दो महीने पहले इंदौर गया तो देखा कि नई दुनिया कंटेन्‍ट और प्रसार के स्‍तर पर काफी पीछे हो गया है । हां इसका वेब संस्‍करण वेब दुनिया काफी तरक्‍की पर है । आपने देखा होगा, नहीं देखा तो फौरन देखिये । तो कुल मिलाकर हम सबके पसंदीदा अखबारों का हाल बुरा है । यही आज का कटु सत्‍य है ।

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  5. @ नीरज, बड़ी मारक है आपकी मौज. बेचारा ब्लॉगर तो आईसीयू में भरती हो जाये> :)

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  6. @अनूपजी, ज्ञानदत्तजी,मेरी टिप्पणी में कई सारी ईस्माइली लगा कर पढें, अर्थ स्पष्ट हो जायेगा । हम तो वैसे ही मौज ले रहे थे ।साभार,

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  7. जे भैया कौन सो अखबार है हम आज जरूर देखिबे करब,जे हम तो आज तलक,पंजाब केसरी दैनिक जागरण,अमर उजाला,नभाटा,और हिन्दुस्तान का ही नमवा सुने थे ना,अब आज अखबार देखिबे करब तब कल टिपियाईबे,माफ़ कीजो हम हिंदी वालेन की जनकारिआ थोरी होत है ना ससुर…

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  8. यह मौज-मजे के वाक्य जैसे के तैसे कैसे ग्रहण कर लेते हो नीरज भैये। :) इंडियन एक्सप्रेस के बारे में तो गोयनका जी के समय पढ़ते आ रहे हैं। :) अच्छा है।

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  9. नीरज उवाच > खैर, कोई बात नहीं । अगर किसी को आपके ब्लाग पर नहीं आना होगा तो नहीं आयेगा, आपकी सलाह से उसे कौन सा दिव्य ज्ञान मिल जायेगा ।अरे नीरज जी आपको यह धमकाना लग गया! सॉरी. मैं तो तुरंत परिवर्तन कर दे रहा हूं. मेरा वैसा कोई ध्येय नहीं था. और आपके कहे की तो मेरे लिये बहुत अहमियत है!

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  10. “आप यह कह सकते हैं कि आपको यह चिंतन करने और सब को सुनाने की क्या जरूरत? पर भैया ब्लॉग मेरा है कि किसी और का?!#इण्डियन एक्स्प्रेस मुझे प्रिय है तो उसपर सोच रहे हैं. वह भी इस कॉस्ट पर कि आप को बेकार लगे तो कल आप मेरे ब्लॉग पर आना बन्द कर दें!”पाण्डेयजी, आज आपने निराश किया है । ये दोनों ही वाक्य निरर्थक हैं । जरा सोचेंगे तो समझ जायेगें । इंटरनेट पर किसी को धमकाना भी ऐसा ही होता है कि अकेला आदमी रेस में दौडे ।खैर, कोई बात नहीं । अगर किसी को आपके ब्लाग पर नहीं आना होगा तो नहीं आयेगा, आपकी सलाह से उसे कौन सा दिव्य ज्ञान मिल जायेगा ।साभार,नीरज

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