पवनसुत स्टेशनरी मार्ट


पवनसुत स्टेशनरी मार्ट एक गुमटी है जो मेरे घर से 100 कदम की दूरी पर है. इसमें पानमसाला, सिगरेट, गुटका, च्यूइंगम का भदेस संस्करण, चाय, रोजगार के पुराने अंक (और थोड़ी कॉपियां-कलम) बिकते हैं. गुमटी के साइड में कुछ बैंचें लगी हैं, जिनपर कुछ परमानेण्ट टाइप के बन्दे जिन्हे भद्र भाषा में निठल्ले कहा जाता है, विराजमान रह कर तोड़ने का सतत प्रयास करते हैं.

इस स्टेशनरी मार्ट का प्रोप्राइटर पवन यादव नामका हनुमान भक्त है. गुमटी पर जो साइनबोर्ड लगा है, उसपर एक ओर तो गदाधारी हनुमान हैं जो तिरछे निहार रहे हैं. जिस दिशा में वे निहार रहे हैं, उसमें एक दूसरी फोटो क्षीण वसना लेटेस्ट ब्राण्ड की हीरोइन (अफीम वाली नहीं, रिमिक्स गाने वाली) की फोटो है जो हनुमान जी को पूर्ण प्रशंसाभाव से देख रही है. ये फोटुयें ही नहीं; पूरा पवनसुत स्टेशनरी मार्ट अपने आप में उत्कृष्ट प्रकार का कोलाज नजर आता है.

पवन यादव शिवकुटी मन्दिर के आसपास के इलाके का न्यूज एग्रीगेटर है. उसकी दुकान पर हर 15 मिनट में न्यूज अपडेट हो जाती है. मैं जब भरतलाल (मेरा बंगला-चपरासी) से ताजा खबर पूछता हूं तो वह या तो खबर बयान करता है या कहता है कि आज पवनसुत पर नहीं जा पाया था. यह वैसे ही है कि किसी दिन इण्टरनेट कनेक्शन डाउन होने पर हम हिन्दी ब्लॉग फीड एग्रीगेटर न देख पायें!

पवन यादव ने दुकान का नाम पवनसुत स्टेशनरी मार्ट क्यों रखा जबकि वह ज्यादा तर बाकी चीजें बेचता है. और मैने किसी को उसकी दुकान से पेन या नोटबुक खरीदते नहीं देखा. बिकने वाला Hello (Cello ब्राण्ड का लोकल कॉपी) बाल प्वॉइण्ट पेन कौन लेना चाहेगा! पवन यादव से पूछने पर उसने कुछ नहीं बताया. यही कहा कि दुकान तो उसकी किताब(?) कॉपी की है. पर अपने प्रश्न को विभिन्न दिशाओं में गुंजायमान करने पर उत्तर मिला पवन यादव शादी के लायक है. अगर यह बताया जायेगा कि वह गुटका-सिगरेट की दुकान करता है तो इम्प्रेशन अच्छा नहीं पड़ेगा. शायद दहेज भी कम मिले. लिहाजा स्टेशनरी मार्ट चलाना मजबूरी है भले ही कमाई गुटका-सिगरेट से होती हो.

पवनसुत स्टेशनरी मार्ट पूर्वांचल की अप-संस्कृति का पुख्ता नमूना है. यहां सरकारी नौकरी- भले ही आदमी को निठल्ला बनाती हो बहुत पसन्द की जाती है. अगर दुकान भी है तो पढ़ने लिखने की सामग्री की दुकान की ज्यादा इज्जत है बनिस्पत चाय-गुटखा-सिग्रेट की दुकान के. लिहाजा पवन यादव सम्यक मार्ग अपना रहा है. दुकान का नाम स्टेशनरी मार्ट रख रहा है जिससे इज्जत मिले, पर बेच चाय-गुटका-सिगरेट रहा है जिससे गुजारा हो सके!

बाकी तारनहार पवनसुत हनुमान तो हैं ही!


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

27 thoughts on “पवनसुत स्टेशनरी मार्ट

  1. प्रणाम गुरुवर …परमानेण्ट टाइप के बन्दे..इन पर भी शोध की आवश्यकता है
    जवाहिर लाल के बाद पवन कुछ अलग दिशा में ले जा रहे है ..बहुत ही अच्छा
    लगा पड कर …पवन जी अभी तक सुखी जीवन जी रहे है जन कर ईष्या हो
    रही है जल्दी उनको क्लब में दाखिल करवा दीजिये | गिरीश

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  2. पुरानी पोस्टों के ‘ट्वीट लिंक’ ने जोरदार मसाला पढ़ने दिया। उम्मीद करता हूं 2007 की इस पोस्ट के बाद पवन यादव का ब्याह हो गया होगा और अपनी दुकान पर डाबर लाल तेल का विज्ञापन लगवाये होंगे 🙂

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    1. पवन यादव अभी भी व्याह के मार्केट में है। वह सोशल सर्विस करने लगा है। मुझसे 15 अगस्त/26 जनवरी को झण्डा फहराने का अनुरोध करने आने लगा है। कांवरियों को सहायता करता है।

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      1. अनब्याहा होने पर ‘समाज सेवक टाइप’ बनने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं 🙂

        ब्याह होने पर समाज सेवकी धरी रह जाती है….बहुत संभव है कि समाज सेवा के लिये जाते देख दुलहिन पति को दौड़ा लेगी……कि पहले बाजार से आलू भिण्डी लेकर आओ…..बनिये का उधार चुकाय लो…..लड़िका बच्चन की फीस हाथ में धरो……समाज सेवा बाद में करना। बड़े आये समाज सेवी 🙂

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        1. सही!
          वैसे ब्याह होने पर मेहरारू की टिकुली निहारने से फुर्सत मिलेगी जो समाज सेवा करे! 🙂

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    1. पवन अब भी अनब्याहा है। सोशल सर्विस के क्षेत्र में कूद लिया है। आगे नेता बन सकता है। 🙂

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      1. मेरे ख्याल से पवन का सादी अभी तक हो जाना चाहिए था… बकिया नहीं हुआ तो एक ठो शोध पत्र तैयार होना चाहिए..

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  3. पवन की फोटो रह गई। कही आप उसे भी ब्लाँगिंग करने की सलाह तो नही देने वाले है!!! दूध का जला —-:-)आपसे भारतीय रेल पर नयी बाते जानने का मन होता है। आशा है इस पर भी आप लिखेंगे।

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  4. मान गये ज्ञान जी को! वह कहते हैं न कि सान्निध्य का प्रभाव तो होता ही है, सो पवनसुत स्टेशनरी मार्ट के पवन यादव जी भी अपनी मार्केटिंग में कितने निपुण हो गये। भले ही ज्ञान जी स्वयं वहाँ न जाते हों, पर भरतलाल के जाने से और शायद ज्ञान जी के परोक्ष प्रभाव से (radiation द्वारा) ही पवन जी में अपनी साख के प्रबंधन के सही गुर आ गये ना!

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