सिन्दबाद जहाजी और बूढ़ा


बोधिस्त्व को सपने आ रहे हैं. मुझे भी सिन्दबाद जहाजी का सपना आ रहा है. सिन्दबाद जहाजी की पांचवी यात्रा का सपना. वह चमकदार शैतानी आंखों वाला बूढ़ा मेरी पीठ पार सवार हो गया है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि उससे कैसे पीछा छुड़ाया जाये.

मेरे अन्दर का जीव हर बार यात्रा पर निकल पड़ता है और हर बार फंस जाता है. इस बार तो यह बूढ़ा चिपक गया है पीठ से और लगता नहीं कि कभी छोड़ेगा. जिन्न की ताकत वाला है – सो मरेगा भी नहीं. दिमाग काम नहीं कर रहा. मैं थक भी गया हूं. सिन्दबाद जहाजी तो जवान रहा होगा. एडवेंचर की क्षमता रही होगी. मुझमें तो वह भी नहीं है. छुद्र नौकरशाही ने वह जजबा भी बुझा दिया है. क्या करें?

(सिन्दबाद और उसपर सवार शैतानी बूढ़ा)

आपको पता तो होगा सिन्दबाद जहाजी और बूढ़े के बारे में. सिन्दबाद का जहाज टूटा और वह पंहुचा एक द्वीप पर. वहां मिला अपंग बूढ़ा. उस बूढ़े के अनुरोध पर सिन्दबाद उसे पीठ पर लाद कर एक कोने पर ले जाने लगा. पर बूढ़ा जो पीठ पर लदा कि उतरा ही नहीं. उसकी टांगें मजबूत, नाखूनदार निकलीं जो सिन्दबाद की छाती से चिपक गयीं. महीनों तक सिन्दबाद उसे पीठ पर लादे रहा. अंतत: एक लौकी के तुम्बे में सिन्दबाद ने अंगूर भर कर रख दिये और जब उनका खमीरीकरण हो कर शराब बन गयी तो चख कर बोला – वाह! क्या पेय है! पीठ पर लदे बूढ़े ने सिन्दबाद से छीन कर सारी शराब पी डाली और जब बूढ़ा धुत हो कर श्लथ हो गया तो सिन्दबाद ने उसे उतार फैंका. ताबड़ तोड़ वह द्वीप से तैर कर भाग निकला.

जो बूढ़ा (या बूढ़े) मेरे ऊपर लदे हैं – वे दुर्गुण की उपज हैं या फिर समय के आक्टोपस के बच्चे हैं. उनसे पीछा छुड़ाने के लिये कौन सी शराब का प्रयोग किया जाये, कौन से छद्म का सहारा लिया जाये समझ नहीं आता.

सब के ऊपर यह बूढ़ा या बूढ़े लदे हैं. कुछ को तो अहसास ही नहीं हैं कि वे लदे हैं. कुछ को अहसास है पर असहाय हैं. कुछ ही हैं जो सिन्दबाद जहाजी की तरह जुगत लगा कर बूढ़े को उतार फैंकने में सफल होते हैं. मैं पैदाइशी सिन्दबाद नहीं हूं. मुझे नहीं मालूम उस/उन बुढ्ढ़े/बुढ्ढ़ों को कैसे उतार फैंका जाये. पर मैं सपना देख रहा हूं सिन्दबाद बनने का.

मुझे स्वतंत्र होना है.

आपमें सिन्दबादी जज्बा है? आप अपने पर से बुढ्ढ़े को उतार चुके हैं? आपके पास कोई सलाह है?


श्रीमती रीता पाण्डेय (मेरी पत्नी) इसे नैराश्य से उपजी निरर्थक पोस्ट मान रही हैं. मेरा कहना है कि यह नैराश्य नहीं वरन समय समय पर सेल्फ-एक्स्प्लोरेशन में उठने वाले भावों को व्यक्त करने का तरीका है. मेरा यह भी कहना है कि ब्लॉग है भी इस प्रकार की अभिव्यक्ति के लिये.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

14 thoughts on “सिन्दबाद जहाजी और बूढ़ा

  1. भई सिन्दबाद की मजबूरी थी कि द्वीप मे उसका साथ देने वाला कोई नही था पर हम आप पर लदे दुर्गुणो को तो मित्रो या अपनो का सहायता से भी समाप्त किया जा सकता है। एक बार फिर से भीतरी मन को जगाने के लिये आभार।

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  2. बुढ़ापे से मुक्त हों बूढ़ों से मुक्त हो ही जाएंगे। हो सके तो महुए वाली देसी सुंघा दें। काम हो जाएगा।

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  3. @ हरिमोहन सिंह – शर्मिंदा तो मुझे होना चाहिये सिंह जी. मेरे लेखन में जरूर कुछ लच्छेदार घुमाव आ गया है इस पोस्ट में. निश्चय ही कोई व्यक्ति जिसे मेरा/मेरे ब्लॉग का अतीत न ज्ञात हो, उसे उलझन हो सकती है. मैं भविष्य में सरल लेखन का पूरा यत्न करूंगा. आपको धन्यवाद.

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