सप्ताहांत का अढ़तालीस घण्टे का समय काटना अपने आप में एक प्रॉजेक्ट होता है. लगभग आधा समय तो नियमित कृत्य में व्यतीत हो जाता है. कुछ समय पत्र-पत्रिकायें, पठन सामग्री ले लेती है. मेरे साथ तो कुछ दफ्तर की फाइलें भी चली आती हैं – समय बँटाने को. फिर भी काफी समय बचता है मुद्दों की तलाश में. नीचे का विवरण उसी “मुद्दों की जद्दोजहद” को दर्शाता है. यह जद्दोजहद केवल मैं ही नहीं; परिवार के अन्य लोग भी करते दीखते हैं. शायद आपमें से कई लोगों के साथ वैसा होता हो – या न भी होता हो. हर व्यक्ति अनूठा होता ही है!
कल भरतलाल (मेरा भृत्य) दोपहर भर फड़फडाता फिरा – एलपीजी सिलिण्डर के लिये. शाम को थक कर आया तो सो गया. देर से उठा. मैने पूछा कि एलपीजी की किल्लत है क्या मार्केट में? उसने गुनगुनाती-बुदबुदाती आवाज में जो बताया उससे स्पष्ट न हो पाया कि किल्लत है या नहीं. फिर मेरे पिताजी एक जगह फोन करते दिखे – “राकेश, एक सिलिण्डर भरा है तुम्हारे पास? … अच्छा भिजवा दो.” थोड़ी देर बाद फिर फोन – “राकेश, वो आदमी अभी ले कर पंहुचा नहीं?”
राकेश ने क्या जवाब दिया, पता नहीं. पर जब मैने एलपीजी की स्थिति के बारे में प्वाइण्टेड सवाल किये तो पता चला कि एक सिलिण्डर कल खतम हुआ था. दूसरा भरा लगा दिया गया था. वह लगभग एक महीने से ज्यादा चलेगा. पर किल्लत की मनोवृत्ति ऐसी है कि जब तक भरा सिलिण्डर घर में न आ जाये; व्यथा की दशा से मुक्ति मिलना सम्भव नहीं.
खैर, आज एलपीजी का सिलिण्डर आ गया. उसपर चर्चा भी हो चुकी कि कितना एक्स्ट्रा पे करना पड़ा. सील इण्टैक्ट है या नहीं. सील इण्टैक्ट होने पर भी फलाने को ऐसा सिलिण्डर मिला था कि एक हफ्ते में गैस खतम. बाद में पता चला कि उसमें तीन चौथाई पानी भरा था. इसलिये सिलिण्डर लेना हो तो उलट कर देख लेना चाहिये… अब सिलिण्डर रख दिया गया है. लाने वाले को एक मिठाई-पानी पिला कर विदा किया जा चुका है. अचानक जैसे एक प्रॉजेक्ट खतम हो गया. बड़ी दिक्कत है कि अभी तक दूसरा प्रॉजेक्ट तय नहीं किया जा सका. पर पिताजी लेट गये हैं बिस्तर पर – एक सेन्स ऑफ एचीवमेण्ट के साथ.
अचानक फिर उठते हैं. आवाज लगाते हैं – भरत!
“हां बाबा.”
“जरा सिलिण्डर उठा कर देखना, गैस पूरी है या नहीं. कई बार गैस कम होती है.” भरतलाल उन्हें आश्वस्त करता है कि उसने उठा कर देख लिया है. बल्कि वही तो घर के अन्दर ले कर आया था. यह मुद्दा भी उठते ही तय हो गया. नया मुद्दा जरूरी है. अभी आधादिन गुजरा है…
मैं इस माहौल से डिटैच हो जाता हूं. पर जब मां-पिताजी के कमरे के पास से थोड़ी देर बाद गुजरता हूं तो मुझे बड़ी आत्मिक शान्ति मिलती है. नया मुद्दा जन्म ले चुका है. आज फाफामऊ से अगले हफ्ते की सब्जी मंगानी है. वहां हाट में सस्ती मिलती है. गोविन्दपुर में आलू १० रुपया किलो है और फाफामऊ में पांच किलो लेने पर साढे़ सात रुपये किलो पड़ता है…. मैं भी प्रॉजेक्ट में शामिल हो जाता हूं – यह गणना करने में कि अगर सब्जी केवल फाफामऊ से आये तो साल भर में ३००० रुपये की बचत हो सकती है…
एक अलसाया सप्ताहान्त; और घर में मुद्दों की तलाश कितना महत्वपूर्ण काम है!
(कल तक की पब्लिश्ड पोस्टों का आर्काइव – १९९ पोस्ट)
नोट – यह पोस्ट कल रविवार के दिन लिखी गयी थी. इसे ले कर २०० पोस्टें हो गयीं. अब लगता है कि ब्लॉगिंग का पेस कम कर देना चाहिये. इण्टरनेट पर आने की फ्रीक्वेंसी और समय तो समय से सेट होगा, पर उसमें परिवर्तन होगा जरूर!
समीर लाल जी ने कल एक पोस्ट लिखने की बात की थी अपनी टिप्पणी में – उसका इंतजार रहेगा.



दोहरे शतक की बधाई। यों ही धड़ाधड़ लिखते रहिए। :)
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बढ़िया है। २०० पोस्ट होने की बधाई!लिखते रहें जो होगा देखा जायेगा।
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मुझे लगता है कि हमें मुद्दे तलाशने की ज़रुरत ही नही है।सुबह आंख खोलने से लेकर रात सोने तक ना जाने कितने ही मुद्दों से उलझते हैं हम, घर से निकले तो मुद्दे और घर मे बैठे रहें तो मुद्दे!!बधाई पोस्ट की दोहरे शतक की।ऐसे ही अनगिनत शतक लगाते रहें आप।
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बस लिखते रहे… साथ में फाइलों को भी देखते रहें।शतकीय प्रहार तो हो ही रहा है…
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विषय तो ऐसे ही मिलते हैं. जैसे आपने एक विषय लिया है. और यह अच्छा विषय है कि अपने दैनिक जीवन में विषय वस्तु खोज लें.
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हो जी कमाल है। प्रोजेक्ट ही प्रोजेक्ट हैं, मिल तो लें। फाइलों की सफाईहर चिट्ठे पे जाकर टिपियानावर्डप्रेस पर ब्लाग बनाना,ताकि बिजली के संकट से बचा जा सकेसंडे के दिन सातों दिनों के ब्लाग वर्डप्रेस पर ठेलना, ताकि वो रोज प्रकाशित हो सकेंब्लागर्स मीट करना ब्लागर्स मीट के बाद सारे फोटू समेत पोस्ट चढ़ानाफिर काऊं-काऊं चाऊं-चाऊं का इंतजार करनानालेजा नाम से एक ब्लाग बनानाजिसमें किसी षोडषी की तस्वीर डालना, अपने परिचय मेंऔर कुछ प्रेम कविताएं लिखनादिग्गजों के ब्लाग पर जाकर आशीर्वाद मांगना, मार्गदर्शन मांगनाफिर देखिये कुछेक हफ्तों में आपके पास बहुत दिग्गजों के लंपटत्व के कारनामे दर्ज हो जायेंगे़इत्ते काफी हैं या और बताऊं प्रोजेक्ट।
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आप भाग्यशाली हैं जो अभी तक माँ-पिताजी की सुखद छाँव आप के सर पर है.. बनी रहे..
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और हाँ, द्वितीय शतक की हार्दिक बधाई. इतने कम समय में यह उपलब्द्धि कम ही लोग हासिल करते हैं कम से कम मौलिकता के साथ. आप बधाई और साधुवाद के पात्र हैं.
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जल्दी ही ला रहा हूँ भाई साहब. आपका आदेश हुआ है टालना मुझ नाचीज के लिये संभव नहीं.बस, जरा सा समय दे दें मुद्दाजटिल हो गया है. आखिर आपकी कलम चली है, कोई मजाक थोड़ी है. :)
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