मेरा दुनियां का अनुभव सीमित है. मैं केवल घर से दफ्तर, दफ्तर से घर का अनुभव रखता हूं. घर और दफ़्तर के अनुभव बार-बार एकसार से और नीरस होते हैं.
दोनो के बीच केवल एक घण्टे की यात्रा जो रोज होती है; उसमें वाहन से बाहर झांकते हुये दुनियां दीखती है. जीवन में कुछ ही वाहन ड्राइवर सही मायने में सारथी मिले – गौतम के या अर्जुन के सारथी की तरह अनुभव और नसीहत देने वाले. पर सामान्यत: वे सामान्य जीव ही थे. आज कल जो ड्राइवर है; वह अपने जीवन से मेरी तरह परेशान है. सो वह कोई ज्ञान देने से रहा.
पर वाहन से बाहर झांकना मन को गुदगुदाता है. परसों रात में देर से लौट रहा था. रात में ट्रकों को शहर में आने दिया जाता है. उससे उनका डयवर्शन बचता होगा और कुछ पुलीस वालों की दैनिक आय का जरीया बनता होगा. पर उन ट्रकों के बीच – जिनके कारवां को ट्रैफिक जाम के नाम से जाना जाता है – आपको उस अजगर की याद हो आती है जो नौ दिन में अंगुल भर चलता था.
राणाप्रताप की प्रतिमा के चौराहे के पास एक रोड के बीचोंबीच पतली पट्टी की आकार के चबूतरेनुमा डिवाइडर पर एक व्यक्ति सो रहा था. बिल्कुल राणाप्रताप के भाले की दिशा में. राणा अगर भाला चला दें तो प्रोजेक्टाइल मोशन (projectile motion) के साथ उसी पर जा कर गिरता. रात के ११ बजे थे. ट्रकों का शोर उसपर असर नहीं कर रहा था.
मुझे लगा कि कहीं नशे में धुत व्यक्ति न हो. पर अचानक उसने सधी हुई करवट बदली. अगर धुत होता तो बद्द से डिवाइडर के नीचे गिर जाता. पर वह संकरे डिवाइडर पर ही सधा रहा – इसका मतलब सो रहा था. उसके सोने में इतनी सुप्त-प्रज्ञा थी कि वह जानता था उसके बिस्तर का आयाम कितना है. करवट बदलने पर उसका बांया हाथ जो पहले शरीर से दबा था, मुक्त हो कर डिवाइडर से नीचे झूलने लगा. ट्रैफिक जाम के चलते बहुत समय तक मैं उसके पास रहा और उसे देखता रहा.
मुझे यह विचित्र लगा. मैने सोचा – घर पंहुच कर मैं सोने के पहले मच्छरों से बचने के लिये मॉस्कीटो रिपेलर का इन्तजाम चेक करूंगा.
बिस्तर की दशा पैनी नजर से देखूंगा. नींद आने के लिये गोली भी लूंगा. यह सब करने पर भी ३०-३५ प्रतिशत सम्भावना है कि २-३ घण्टे नींद न आये. और यह आदमी है जो व्यस्त सड़कों के चौराहे वाली रोड के डिवाइडर पर सो रहा है!
कभी-कभी लगता है कि मैं राहुल सांकृत्यायन अथवा अमृतलाल वेगड़ की तरह निकल जाऊं. यायावर जिन्दगी जीने को. पर जैसे ही यह सद्विचार अपनी पत्नी को सुनाता हूं; वे तुरत व्यंग करती हैं – बनाये जाओ ख्याली पुलाव! नर्मदा के तट पर तुम्हें कहां मिलेंगे रेस्ट हाउस या मोटल. बिना रिटर्न जर्नी रिजर्वेशन कन्फर्म हुये घर से एक कदम बाहर नहीं करते और जाओगे यायावरी करने? मुंह और मसूर की दाल.
पत्नी को पूरा यकीन है न मैं घुमन्तू बन सकता हूं और न साधू-सन्यासी. सवेरे नहाने के पहले अधोवस्त्र और फिर दफ्तर जाने के कपड़ों तक के लिये पत्नी पर निर्भर व्यक्ति आत्म निर्भर कैसे बन सकता है! पत्नीजी ने यह छोटी-छोटी सहूलियतों का दास बना कर हमारी सारी स्वतन्त्रता मार दी है.
खैर मैं न पत्नी जी को कोसूंगा और न प्रारब्ध को. भगवान ने जो दिया है; बहुत कृपा है. पर नींद और निश्चिन्तता नहीं दी. उसका जुगाड़ करना है. उस आदमी को सड़क के डिवाइडर पर गहरी नींद आ जाती है. मुझे घर में; पन्खे के नीचे आरामदेह बिस्तर पर भी नहीं आती. मुझे नींद न आने की आशंका और लोक – परलोक की चिन्तायें न सतायें – इसका हल खोजना है.
इतनी जिन्दगी में इतना तो स्पष्ट हो गया है कि समाधान खुद ही खोजने होते हैं. आर्ट आफ लिविंग और बाबा रामदेव के प्रवचनों इत्यदि के इतर और मात्र अपने समाधान!
आपके पास टिप्स हैं क्या?

इतने सारे उपाय सब बता चुके हैं कि उन्हें आजमायेंगें तो वैसे ही समस्या का हल हो जायेगा। फिर भी असर ना हो तो हमारी माता जी का उपाय अपनाइयेगा ः) आँखें मुंद कर बकरियां गिनियेगा ।
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एक तरीका और है. फायदे की गारंटी है पर फायदा होगा क्या, ये नहीं कह सकता. :)आपको जो चीज बिल्कुल समझ न आती हो , उसी विषय पर कोई किताब पढ़ना शुरू कर दीजिये. या तो नींद आ जायेगी या वो विषय समझ आ जायेगा. हैं न दोनों हाथों में लड्डू!आज़मा कर मुझे भी बता दीजियेगा! :)अब मुझे तो वैसे ही नींद बहुत आती है, तो मैं तो आज़मा नहीं सकता न!
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आपके लिए जीतू भाई ने कुछ टिप्स लिखे थे।http://www.jitu.info/merapanna/?p=664
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मै सोचता था कि काम से हटकर ब्लाग लिखने से आपका मन बदल जाता होगा पर यह पोस्ट पढ्कर मन बैठ गया। नीन्द की गोली को आखरी विकल्प मानिये। जैविक खेती से तैयार माने गाँव से तिल का तेल लाये और तलवो पर मालिश करे। नीन्द अच्छी आयेगी। नही तो बताइयेगा आपके एक सह-अधिकारी माननीय दीपक दवे हमारे पडोसी है रायपुर मे। उनसे तेल भिजवा दूँगा। तिल के तेल वाली बात आप अपनी माता जी से भी कनफर्मे कर सकते है।
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अब इतने सारे उपायों मे कोई तो काम करेगा ही और नही तो आप अपने जीवन के किसी भी अच्छे पल को याद करिये फ़िर नींद कब आ जायेगी आपको पता भी नही चलेगा.
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ज्ञान भईया आप को अपनी ग़ज़ल का एक शेर सुनाता हूँ :” रब नहीं देता है कुछ खैरात मैं ये मान लो नींद लेता उससे जिसको मखमली बिस्तर दिए “आपकी नींद ज़रूरी नहीं की मखमली बिस्तर के कारण चली गयी हो. यायावारी का अपना आनंद है. कभी खोपोली आ कर देखिये मेरे पास, इतना घुमाऊंगा की साल भर तक नींद की समस्या दूर हो जायेगी. नीरज
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