सीखना@51+ की उम्र में


सीखना प्रक्रिया नहीं है. सीखना घटना भी नहीं है. सीखना जीवंत आदत है. सीखना यक्ष प्रश्नों के उत्तरों की तलाश है. वह उत्तर कोई प्रकाण्ड विद्वान बनने की चाह से प्रेरित हो नहीं तलाशे जा रहे. वह बनने की न तो क्षमता है और न ईश्वर ने इस जन्म में उस युधिष्ठिरीय प्रतिभा का प्राकट्य किया है मुझमें (कम से कम अब तक तो नहीं).

जीवन के यक्ष प्रश्न वे प्रश्न हैं जो अत्यंत जटिल हैं. लेकिन मन में एक वैचारिक अंतर्धारा है कि इन सभी प्रश्नों के उत्तर अत्यंत सरल हैं. वे जटिल इसलिये लग सकते हैं कि उनका प्राकट्य अभी होना है. जब हो जायेगा तो ऐसे लगेगा कि अरे, यह इतना सरल था और हम कितना फड़फड़ाते रहे उसकी खोज में! 

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(यह कुत्ता भी कौतूहल रखता है!)

इक्यावन+ की उम्र में भी मन में एक शिशु, एक किशोर; जागृत प्रौढ़ की नींद न आने की समस्या को धता बता कर लगा रहता है समस्याओं के उत्तर खोजने में.

सीखना तकनीक का भी हो सकता है. वह नये उपकरणों के प्रयोग का भी हो सकता है. सीखना पहले के सड़ी हुई सीख को अन-लर्न करने का भी हो सकता है. 

सीखना वह है – जो प्रमाण है कि मैं जीवित हूं. मेरा एक एक कण जीवित है. और उसके जीवित रहने को कोई नकार नहीं सकता. तब तक – जब तक सीखना चलता रहेगा.

मुझे प्रसन्नता है कि सीखना कम नहीं हो रहा है. वह बढ़ रहा है!      


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

23 thoughts on “सीखना@51+ की उम्र में

  1. आपकी ललक और आस्था तारीफ़ है. हम हम जब ५१ के होंगे तब के लिए अग्रिम सीख मिल गयी है.

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  2. @ प्रत्यक्षा – मन तो बहुत है बंगला लेखकों को बंगला में पढ़ने का. या फिर फकीरमोहन सेनापति की ऑटोबॉयोग्राफी उड़िया में पढ़ने का. लेकिन इच्छाओं का समग्र बहुत बड़ा है!

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  3. ब्लॉगिंग का नया काम भी अब जब पुराना पड़ गया तो भाषा सीखी जाये , ऐसी जिसका साहित्य ओरिजिनल में पढ़ने की इच्छा हो , क्या कहते हैं ?

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  4. @ बाल किशन – स्वागत है बाल किशन जी! आपकी टिप्पणी पा कर बहुत अच्छा लगा. शिवकुमार मिश्र को ब्लॉगिंग सिखाते-सिखाते आप मुझसे कैसे सर्वज्ञता की बीमारी का इलाज पूछने लगे? हमारा तो खुद्दै हिसाब नहीं बैठ रहा कि क्या करें क्या न करें. :-)

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  5. सत्य वचन महाराज. बहुत ही सही ज्ञान है सिखने सिखाने के हिसाब से मुझे लगता ह की मनुष्यों की तीन श्रेणियाँ होती है. एक वो जो तमाम उम्र सिखने की ललक लिए रहते हैं, जैसे आप, एक वो जो जितना जानते है उसी में खुश रहते हैं जैसे श्रीमान आलोक जी पुराणिक और एक वो जो बहुत ज्यादा कुछ नहीं जानते है पर वे अपने आप को सर्वज्ञाता समझते हैं. इस तीसरी श्रेणी की भयंकर मानसिकता से में भी पीड़ित हूँ सो कृपया आप इस विषय पर कुछ रोशनी डालें कि किस प्रकार इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है.

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  6. जो भी लोग कह रहे हैं – आलोक और इष्टदेव सहित – वे सीखने के पक्ष में ही कह रहे हैं. भाषा चाहे मधुर हो या व्यंग की, सभी सहमत हैं की “चरैवेति-चरैवेति” का सिद्धांत ही जीवंतता का मंत्र है. क्या सीखा जाये? मुझे लगता है कि un-learn करना भी बहुत महत्वपूर्ण है. जो विचार हमने अपने में कुण्डली मार कर बिठा लिये हैं, उन्हे पुन: परखा जाये. कई सारे पूर्वाग्रह re-examine कर हटाने हैं. यह जीवन के हर दशक मे होना चाहिये. क्या नहीं? बाकी नयी तकनीक – नया ज्ञान तो विस्फोटित हो रहा है. किसी भी क्षेत्र को ले लिया जाय, बहुत कुछ सीखने को है. उसमें ऊर्जा क्षरण न हो – इसलिये पुराणिक-तकनीक लगानी पड़ सकती है. एक दो फील्ड में ही जोर लगा कर सीखा जाये!आप सबने बहुत रुचि लेकर कमेण्ट किये हैं – बहुत धन्यवाद उसके लिये. कमेण्ट जारी रहें – कृपया. मैं तो इण्टरवल में आया हूं.

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  7. गुड है जी!! सीखने और जानकारी पाने की ललक यही दो बातें तो हमें ही हमारे होने का एहसास दिलाती रहती हैं!!

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  8. भाई आलोक जी से मैं सौ परसेंट सहमत हूँ. सौ से ज्यादा इसलिए नहीं क्योंकी हुआ नहीं जा सकता. एक बात और, ये बात आप कहीँ किसी मास्टर या बडे पत्रकार से न कह दीजिएगा. नहीं तो ऊ कपरे फोड़ डालेगा.

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  9. जब 51 का था तब किसी ने यह बात नहीं बताई. अब वह पीछे छूट गया है, अत: हमारे लिये आपकी क्या आज्ञा है — शास्त्री जे सी फिलिपमेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!

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