सुनना हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। सुनाने से कहीं ज्यादा सुनने का महत्व है। सुनने का महत्व, जानने के लिये हो – यह जरूरी नहीं। जानने के लिये तो देखना-सुनना है ही। सुनने के लिये भी सुनना है।
धैर्य पूर्वक सुनना प्रबन्धन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दिन भर में अनेक लोग आपके पास आते हैं। सुनने के लिये नहीं आते। सुनाने के लिये आते हैं। सुन लेना सेफ्टी वाल्व सा होता है। मेरे पास आने वाले भी आशा ले कर आते हैं। किसी को न सुना तो वह नाते-रिश्तेदारी खोजता है सामीप्य जताने के लिये। वह न होने पर आधा किलो मिठाई का डिब्बा ठेलते हुये सुनाने की कोशिश करता है। कुछ लोग फिर भी नहीं सुनते तो क्रोध या भ्रष्टाचार का सहारा लेता है सुनाने वाला।
सुनने के लिये एकाग्रता महत्वपूर्ण है और एकाग्रता के लिये यह यन्त्र मुझे बड़े काम का लगता है।»
जीवन की आपाधापी में सुनना कम हो गया है। तनाव और व्यग्रता ने सुनाना बढ़ा दिया है।
फिर मुझे याद आता है – उत्तरकाण्ड का प्रसंग। राम सवेरे सरयू में स्नान करते हैं। उसके बाद राज-सभा में बैठते हैं। साथ में विप्र और सज्जन लोग हैं। वशिष्ठ मुनि प्रवचन करते हैं। वेद पुराण बखानते हैं। राम सब जानते हैं। पर फिर भी सुनते हैं:
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन।।
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं।।
तुलसी बाबा ने यह राम की महिमा बताने के लिये कहा है; पर प्रबंधन का भी यह महत्वपूर्ण सूत्र है। कोई सुना रहा है तो आपको धैर्य पूर्वक सुनना चाहिये। सुनना कुशल प्रबंधक होने का एक अनिवार्य अंग है।
सुनो तो!
सुनने की कुंजियां:
सुनना केवल शब्द का सुनना नहीं है। व्यक्ति के हाव-भाव, अपेक्षायें, भय, ’वह क्या नहीं कहना चाह रहे’ आदि को जानना – यह सब समग्र रूप से सुनने का अंग है।
- सुनने में छोटे-छोटे सिगनल ग्रहण करने के लिये अपने एण्टीना को जाग्रत रखें।
- सुनने वाले में सुनाने वाले की अपेक्षा कम योग्यता हो तो ग्रहण करने में कठिनाई हो सकती है। अत: बेहतर सुनक १ बनने के लिये अपनी योग्यतायें सतत विकसित करनी चाहियें।
- मानव के प्रति आदर और सुनने की प्रक्रिया के धनात्मक परिणाम के प्रति आशान्वित रहें। व्यग्र न हों।
- सुनने की प्रक्रिया में सुनाने वाले के प्रति आदर और सह-अनुभूति अनिवार्य तत्व है। आप तिरस्कार भाव से नहीं सुन सकते।
- सुनते समय अपनी प्रतिक्रिया के प्रति नहीं; सुनने के प्रति ही जागरूक रहें। पूरा सुनने के बाद ही अपना रिस्पॉन्स तय करें।
मैँ कोई बहुत बढ़िया सुनक नहीं हूं। पर पिछले कुछ दिनों से अभ्यास कर रहा हूं। यह ऊपर जो लिखा है, उसी प्रॉसेस में रेण्डम सोच का अंग है।

ज्ञानजी हमने तो बहुत कोशिश कि लेकिन हमारी तो कोई नही सुनता. तो मैंने कार्टून बनाना शुरू कर दिए. अब भले ही कोई सुने नहीं कम से कम पढ़ या देख तो लेते ही हैं :)
LikeLike
@ मीनाक्षी जी – कान का चित्र मेरी पत्नी का है। अपने कान का चित्र तो मैं ठीक से ले नहीं सकता था! सुनने में वे सहभागी तो हैं ही!
LikeLike
सुनने की प्रक्रिया में सुनाने वाले के प्रति आदर और सह-अनुभूति अनिवार्य तत्व है। आप तिरस्कार भाव से नहीं सुन सकते। …बात मन भा गयी… सत्य वचन।
LikeLike
ज्ञान जी, बढिया सुनक बनने का अभ्यास तो आप कर रहे हैं लेकिन चित्र में स्त्री का कान दिखा रहे हैं. :) इस पर भी खुलासा कीजिए ज़रा.
LikeLike
चलिए अब श्रेष्ठ सुनक बनने की भी कोशिश करके देखते है!!
LikeLike
हम तो डेली सुनते हैं जी…कोहरे की खबर भी सुन ली…और क्या चाहते हैं जी हमसे..कृपया विस्तार से बतायें… :-)
LikeLike
जी सुन ही रहे हैं।अटलजी सुना कर चले गये, अब मनमोहनजी सुना रहे हैं। वैसे सुनाने और शांत रहने पर ये सुनियेछात्र से मैंने पूछा कि अटलजी और मनमोहन सिंह, दोनों में से कौन सा नेता ज्यादा बड़ा है। इस पर छात्र ने कहा-मनमोहनजी अटलजी के मुकाबले बहुत आगे, बहुत आगे के नेता हैं, कहने वाले चाहे जो कहते हैं।अटलजी हिंदी और इंगलिश दो भाषाओं में सुनाते थे, अपने भाषण और मनमोहनजी पूरी तीन भाषाओँ, पूरी तीन भाषाओं, हिंदी अंगरेजी और पंजाबी मेंचुप रहते हैं।
LikeLike
ज्ञान जी हमने सुनने की इस शिक्षा को रेडियो सुनने के संदर्भ में ग्रहण किया है और फिर आपके लिखे को दोबारा पढ़ा है । सुनने की आपकी सारी कुंजियां रेडियो सुनने के संदर्भ में एकदम सटीक हैं । जय हो । आपने पहले ही बता दिया है कि आप रेडियो नहीं सुनते, तो क्या अब बैटरी डालकर ‘अभ्यास’ कर रहे हैं । करिए करिए । आप बोलते रहिए हम ‘सुन’ रहे हैं ।
LikeLike
सही है। सुन रहे हैं।
LikeLike
प्रणाम,प्रात: सबसे पहले तो मुझे आर्शिवाद दे, सबसे पहले मैंने परनाम किया है ।जपनी माला से प्रात: काल उठ कर जाप और सुनक बन कर चिंतन का श्रवण के बदौलत ही तो हमें यह ब्लाग पढने को मिलता है ।
LikeLike