एक वृद्धा का दुनियां से फेड-आउट


’उनके’ पति जा चुके थे। एक लड़का अमेरिका में और दूसरा उत्तरप्रदेश के किसी शहर में रहते हैं। पति की मृत्यु के बाद धीरे धीरे वे डिमेंशिया की शिकार होने लगीं। इस रोग में व्यक्ति धीरे धीरे मानसिक शक्तियां खोने लगता है। वे याददाश्त खोने लगीं। लोगों को पहचानने में दिक्कत होने लगीं। उत्तरप्रदेश में अपने छोटे लड़के के पास रह रही थीं। इस बीच परिवार को सामाजिक कार्यक्रम में किसी अन्य स्थान पर जाना पड़ा। यह वृद्धा अकेली घर में थीं।

परिवार के वापस आने पर घर का दरवाजा नहीं खोला वृद्धा ने। फ़िर कराहने की आवाज आयी। घर का दरवाजा तोड़ कर लोग अन्दर पंहुचे। वहां पता चला कि वे फ़िसल कर गिर चुकी हैं। कूल्हे की हड्डी टूट गयी है। स्त्रियों में कूल्हे की हड्डी टूटने की सम्भावना पुरुषों के मुकाबले ३ गुणा अधिक होती है।

कूल्हे की हड्डी का टूटना – कुछ तथ्य

  1. ७५% से अधिक कूल्हे की हड्डी टूटने के मामले औरतों में होते हैं।
  2. इससे मृत्यु की सम्भावना ५० वर्ष से ऊपर की स्त्रियों में २.८% होती है जो केंसर से होने वाली मौतों से कहीं ज्यादा है।
  3. एक साल में कूल्हे की हड्डी टूटने के १६० लाख मामले विश्व भर में होते हैं और सन २०५० तक यह संख्या तीन गुणा बढ जायेगी।
  4. कूल्हे की हड्डी के टूटने के ६०% मामलों में साल भर बाद तक दूसरों के सहारे की जरूरत होती है। तैंतीस प्रतिशत मामलों में यह लम्बे समय तक चलती है।

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खैर, त्वरित डाक्टरी सहायता उपलब्ध करायी गयी। ऑपरेशन से हड्डी जोड़ी गयी – जांघ और घुटने के बीच की हड्डी में रॉड डाल कर। फ़िर उन्हें ४० दिन के लिये बिस्तर पर रहने को कह दिया गया। सभी नित्य कर्म बिस्तर पर होना व्यक्ति को बहुत हतोत्साहित करता है।

रोज नहा धो कर भोजन ग्रहण करने वाली वृद्धा के लिये यह निश्चय ही कष्ट कारक रहा होगा। उन्होने भोजन में अरुचि दिखानी प्रारम्भ करदी। कहने लगीं कि उन्हे लगता है उनके पति बुला रहे हैं। डिमेंशिया बढ़ने लगा।

फ़िर भी हालत स्थिर थी। अमेरिका से आया लड़का वापस जाने की फ़्लाइट पकड गया। ऑपरेशन को सोलह दिन हो चुके थे।

(डिमेंशिया पर विकीपेडिया पर पन्ने के अंश का चित्र। चित्र पर क्लिक कर आप पन्ने पर जा सकते हैं।)

Dementia

वृद्धा की, लगता है इच्छा शक्ति जवाब दे गयी। डिमेंशिया, बिस्तर पर रहने का कष्ट, पति का न होना और उम्र – इन सब के चलते वे संसार से चली गयीं। उस समय अमेरिका गया लड़का बीच रास्ते फ़्लाइट में था। अमेरिका पंहुचते ही उसे मां के जाने का समाचार मिला। अन्देशा नहीं था कि वे चली जायेंगी – अन्यथा वह कुछ दिन और भारत में रह जाता।

यह सुनाने वाले सज्जन वृद्धा के दामाद थे। वे स्वयम अपने परिवार में सदस्यों की बीमारी से जूझ रहे हैं। जब उन्होने यह सुनाया तो उनकी आवाज में गहरी पीड़ा थी। पर यह भी भाव था कि मांजी मुक्त हो गयीं।

वृद्धावस्था, डिमेंशिया/अल्झाइमर बीमारी, कूल्हे की हड्डी का टूटना और अकेलापन – यह सभी इनग्रेडियेण्ट हैं दुनियां से फ़ेड आउट होने के। बस कौन कब कैसे जायेगा – यह स्क्रिप्ट सबकी अलग-अलग होगी।

जो हम कर सकते हैं – वह शायद यह है कि वृद्ध लोगों का बुढ़ापा कुछ सहनीय/वहनीय बनाने में मदद कर सकें। कई छोटे छोटे उपकरण या थोड़ी सी सहानुभूति बहुत दूर तक सहायता कर सकती है। मैं यह जानता हूं – मेरे पिताजी की कूल्हे की हड्डी टूट चुकी है और उनके अवसाद से उबरने का मैं साक्षी रहा हूं।


Gyan(242) रविवार के दिन मैं अपनी चाचीजी को देखने गया था अस्पताल में। उम्र ज्यादा नहीं है। पैर की हड्डी दो बार टूट चुकी है। बिस्तर पर सभी नित्यकर्म हो रहे हैं। वह भी रोने लगीं – मौत भी नहीं आती। बड़ा कठिन है ऐसे लोगों में बातचीत से आशा का संचार करना। उनमें तो सहन शक्ति भी न्यून हो गयी है। जाने कैसे चलेगा?!

वृद्धावस्था के कष्ट; यह मैं किसके पढ़ने के लिये लिख रहा हूं। कुछ जवान पढ़ने आते हैं ब्लॉग; वे भी अरुचि से चले जायें?Sad

लेकिन जीवन में सब रंगrainbow हैं; और मानसिक हलचल कभी ऐसे रंगों को न छुये – यह कैसे हो सकता है?


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

17 thoughts on “एक वृद्धा का दुनियां से फेड-आउट

  1. इन लोगो के कष्टो को दूर करने मे मेरा ज्ञान और समय काम आ सके तो मै अपना जीवन सफल समझूंगा। मै तत्पर हूँ। चलिये अपनो ही से शुरूआत करे।

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  2. kaafi dino pehley mainey apni naani kaa sansmaran likhaa thaa ‘”DHUUA BANA KAR”. unko bhii sab maaji hi kahtey they.par potey ki mrituy aur bahut lambaa vaidhavya bhogney ke baad unhoney chuchaap apni biimari ki ot me mrituy kaa svayam hi varan kiyaa thaa ye hum sab jaantey hain…aapki post ne aankhey geeli kar dii fir se

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  3. ज्ञान जी , जितनी सहजता से आप कह जाते हैं उतना ही सहज रूप से पढ़ते हुए अपनत्त्व की भावना जागती है. शायद इसी भावना से प्रेरित होकर दुख सुख की चर्चा करते हैं. अप्रत्यक्ष रूप में एक दूसरे को सहारा देते हैं. आपके लेख से ही नही…टिप्पणियों से भी धीरज मिलता है.

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  4. जरा सबसे बड़ी व्याधि है भाई…..इसमें कुछ भी नहीं जुड़ता….इस लिए टूटने से बचाना ही एक मात्र उपाय है…..

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  5. वृद्धावस्था के शारीरिक-मानसिक संकट और व्याधियों को सही परिप्रेक्ष्य में लेने को प्रेरित करती, कारणों की पड़ताल कर जिजीविषा को बढाने वाली और परिणामतः अवसाद का विरेचन करने वाली पोस्ट जो ‘सिम्पथी’ और ‘एम्पथी’ का नायाब नमूना है . इसे आवश्यक पाठ के अन्तर्गत रखना उचित होगा .आप संवेदनशील प्रेक्षक और समर्थ लेखक हैं .

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  6. मार्मिक किंतु बहुत ही शिक्षाप्रद पोस्ट है. पढ़ कर दुःख भी हुआ. पर हल आपने दिया भी है कि “वृद्ध लोगों का बुढ़ापा कुछ सहनीय/वहनीय बनाने में मदद कर सकें।”

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