बारनवापारा और पंकज अवधिया के संस्मरण


पंकज अवधिया जी ने अपने ब्लॉग “हमारा पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान” पर बारनवापारा अभयारण्य में अपने अनुभवों के विषय में दो पोस्टें लिखी हैं। पहली पोस्ट में बघेरा, जंगली सूअर, बंदर, चीतल और सांभर आदि के मानव आबादी के संसर्ग में पानी और भोजन की तलाश में आने और उनकी पोचिंग (अवैध शिकार) का जिक्र है। दूसरी पोस्ट में तोतों की विभिन्न प्रजातियों के बारे में वहां के अनुभव हैं। यह दोनो पोस्ट आपको ईकोपोर्ट पर उपलब्ध अंग्रेजी के अवधिया जी के लेखों पर ले जाती हैं। जाहिर है कि पोस्ट और पोस्ट से लिंक पर जा कर अंग्रेजी में पढ़ने की जहमत कोई कोई ही उठाता होगा।
पर आप यह लेख पढ़ें तो आपको हमारे ही देश – प्रान्त में पाई जाने वाली जीव विविधता और उनकी समस्याओं पर संतृप्त जानकारी मिलेगी। टूरिस्टों के आने से जीव असहज होते हैं – यह मैने पढ़ा था। पर उनके आने से जीवों के अवैध शिकार पर लगाम लगती है – यह कोण मुझे इन पोस्टों के माध्यम से पता चला। घर में पाले जा सकने वाले तोतों की नस्ल विकसित करने का विचार उन्होंने लिखा है जो मुझे अनूठा लगता है।
उन्होंने तुइया मिठ्ठू और करन तोते के बारे में लिखा है। यह भी बताया है कि तोता छूटने पर वापस नहीं आता। तभी – “हाथ से तोते उड़ना” का मुहवरा प्रचलन में आया। उन्होंने यह भी बताया है कि पालने वाले तोतों को लोग शहरी पदार्थ खिलाते हैं – जो उनका नैसर्गिक खाद्य नहीं है। पर पारम्परिक चिकित्सक इन तोतों द्वारा खाये जंगली फलों को चिकित्सा में प्रयोग करते हैं।
बहुत लिखा है अवधिया जी नें। ईकोपोर्ट पर निश्चय ही बड़ा शोधकार्यरत पाठक वर्ग इनको पढ़ता होगा। हमरे जैसे सिरफिरे शौकिया लोग तो यदा कदा इन लेखों पर आते होंगे। पर हमारे जैसे शौकिया पाठकों के लिये १५-२० दिन में एक वाकया जीवों के विषय में और इकोपोर्ट से बचाया हुआ एक दो फोटो वे दे दिया करें तो हम अपने ब्लॉग को इन्द्रधनुषी बना सकें। मैं अपनी पोस्ट पशुओं के सानिध्य में यह इच्छा जाहिर भी कर चुका हूं।
पंकज मुझसे उम्र में छोटे हैं। लगभग मेरी उम्र के श्री दीपक दवे को वे बड़ा भाई मानते हैं। छोटों से सामान्यत: ईर्ष्या नहीं होती। पर पँकज जी की ऊर्जा देख ईर्ष्या अवश्य होती है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “बारनवापारा और पंकज अवधिया के संस्मरण

  1. “हमरे जैसे सिरफिरे शौकिया लोग तो यदा कदा इन लेखों पर आते होंगे।”वाकई, कभी-कभी ही पढ़ते हैं हम, नि:संदेह एक से बढ़कर एक जानकारी हैं वहां पर।वो सब तो ठीक है दद्दा, पन कल किधर गायब हो गए थे जो इधर से छुट्टी मार दिए थे।;)

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  2. शुक्र है ज्ञानदा, आज टिप्पणी जा पा रही है। रोज़ ही चक्कर लगाता था और पोस्टिंग आप्शन लापता देख कोसते हुए चला जाता था। सब्सक्राईब भी किया ताकि मेल से ही टिप्पणी चली जाए पर अभी तक एक भी पोस्ट मिली नहीं। बहरहाल , आज अवधिया जी के बारे में आपके लेख से ज्ञानवर्धन हुआ। हाथों के तोते उड़ना जैसे मुहावरे को मोती की तरह चुनकर ले आए। अच्छा लगा। और हां, शास्त्रीजी की बात से सहमत हूं।

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  3. ग्रेट। ये मुहावरे बताने का डिपार्टमेंट तो अजितजी का है। आप कहां से घुस लिये।अवधियाजी वाकई ग्रेट हैं।

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