शादी के रिश्ते – क्या चाहते हैं लोग?


यह श्रीमती रीता पाण्डेय की पारिवारिक पोस्ट है। मेरा योगदान बतौर टाइपिस्ट है। एक घरेलू महिला अपने परिवेश को कैसे देखती समझती है – यह रीता जी के नजरिये से पता चलेगा।


मैं बनारस में अपनी मां के साथ रजाई में पैर डाले बैठी बात कर रही थी। अचानक भड़भड़ाते हुये घर में घुसी चन्दा भाभी की खनकती आवाज सुनाई दी। अरे चाची कहां हो – जरा पैर छूना है।

मां ने पैर छुआने को रजाई से बाहर पैर किया – क्या बात है चन्दा? बड़ी खुश लग रही हो!

“हां चाची, अभी फुर्सत मिली तो आपका आशीर्वाद लेने आ गयी। वो क्या है कि श्रीधर की शादी के लिये कुछ लोग आये थे। बड़ी दमदार पार्टी है चाची। दस-पन्द्रह लाख तो खर्च करेंगे ही। लेकिन चाची…”

मैने बात सुनते ही बीच में टपकाया – “लेकिन वेकिन छोड़िये भाभी, मिठाई-विठाई की बात करिये।“

तब तक मेरी दोनो भाभियां आ गयी थीं। चन्दा भाभी हम सभी को सुना कर बोलीं – “लेकिन वे ब्राह्मण थोड़े नीचे के हैं।“

मैने आश्चर्य में पूछा – चन्दा भाभी ब्राह्मण में भी ऊंच-नीच?

तब तक मेरी एक भाभी की जबान फिसल ही गयी – क्या चन्दा भाभी, अब तक तो आप परेशान थीं कि कोई रिश्ता नहीं आ रहा है। अब जाति-पांति, ऊंचा-नीचा ब्राह्मण। गोली मारिये भाभी; पन्द्रह लाख रुपया हाथ से जाने न पावे!

चन्दा भाभी के तीन बच्चे हैं। एक लड़की थी, उसकी शादी पहले कर चुकी हैं। बड़ा लड़का श्रीधर पढ़ने में फिसड्डी था। डोनेशन दे कर इन्जीनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिलाया। लेकिन बुरी सोहबत में शायद वह नशाखोरी करने लगा। किसी दूर के शहर में बिना लोगों को बताये इलाज कराया। खबर तो फैलनी थी; सो फैली। अभी भी वह रेगुलर चेक अप के लिये जाता है। यहां नहीं कहीं दूर के शहर में रहता है। कहता है कि इन्जीनियरिंग सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहा है। कुल मिला कर झूठ पर रची गयी है श्रीधर की पर्सनालिटी। दूसरा लड़का शशिधर दिल्ली में है। बकौल चन्दा भाभी – ’दस-बीस हजार की नौकरी तो वह चुटकियों में पा सकता है। पर वह लड़कियों के मताहत काम नहीं करना चाहता।’

हम सभी समझ नहीं पाते हैं कि चन्दा भाभी चाहती क्या हैं!

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मेरे रिश्ते में एक बुआ हैं। दशकों से उनका परिवार बंगलूर में रहता है। उनकी छोटी बेटी वहीं पैदा हुई। शिक्षा भी वहीं हुई। अच्छी कम्पनी में नौकरी करती थी। बस थोड़ी सांवली और छोटे कद की थी। पिछले दस साल से मेरे फूफा और बुआ अपने बेटों के साथ उसके लिये बनारस, गाजीपुर, मिर्जापुर आदि जगहों पर चक्कर लगा रहे थे उसकी शादी के लिये। वे उच्च श्रेणी का सरयूपारी लड़का ढ़ूंढ़ रहे थे। अफसर से ले कर प्राइमरी स्कूल तक के टीचर भी देखे गये। दहेज का रेट भी बढ़ाया गया।

मैने एक दिन फोन पर बुआ की लड़की से कहा – पुष्पा, तुम्हारे माता पिता सरयूपारी ब्राह्मण के चक्कर में पड़े हैं। तुम तो किसी दक्षिण भारतीय को पसंद कर लो। तुम गुणी हो और नौकरी पेशा भी। वहीं अच्छे लड़के मिल जायेंगे।

पर पुष्पा ने तुरंत अपने पापा और भाइयों की इज्जत की दुहाई दी।

कुछ समय पहले पुष्पा की अन्तत: शादी हो गयी। वह बत्तीस साल की है। लड़का उससे उम्र में कम है, अच्छा सरयूपारी ब्राह्मण है। उससे कम पढ़ा है। शिक्षा आधी है पर शरीर चार गुणा है पुष्पा से।

बहुत पहले पुष्पा किसी बात पर मुझसे कह रही थी – ’हम अपनी फ्रीडम से समझौता नहीं करते।’ अब लड़के के बारे में बात चलने पर वह कह रही थी – ’मैं पापा के चेहरे पर उदासी नहीं देख सकती। पापा जिसके साथ मेरा रिश्ता तय कर देंगे, उसके साथ मैं रह लूंगी।’

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मुझे समझ में नहीं आता लोग क्या चाहते हैं? किसी के मन की थाह पाना कितना मुश्किल है।

कबहूं मन राज तुरंग चढ़े, कबहूं मन जोगी फकीर बने!

पुराणिक जी की भाषा में कहें – भौत कन्फ्यूजन है जी!


1. कल पुराणिक जी ने टिप्पणी की थी: “मुझे डाऊट होता है कि आप अफसर हैं भी या नहीं।”
यह पढ़ कर श्रीमती रीता पाण्डेय ने कहा – बिल्कुल सही कह रहे हैं। वह तो भला हो रतलाम-कोटा के कर्मचारियों का कि अफसर नुमा न होते हुये भी पोज – पानी बनाया। वर्ना तुम लायक तो नहीं थे अफसरी के!
रीता जी ने धमकी भी दी है कि वे अगली पारिवारिक पोस्ट मेरे अन-अफसर लाइक व्यक्तित्व पर लिख कर मेरी पोल खोलेंगी!
2. कल प्रियंकर जी ने जितनी उत्कृष्ट टिप्पणी की कि मन गार्डन-गार्डन हो गया। वह टिप्पणी तो मैं कुछ दिनों बाद एक पोस्ट के रूप में ठेल दूंगा प्रियंकर जी की अनुमति लेकर। प्रियंकर जी की कलम का मुरीद हूं मैं!
पर यह नहीं है कि अन्य टिप्पणियां उत्कृष्ट नहीं थीं। अमेरिका-खाड़ी-छत्तीसगढ़-कोटा-गोवा… इतने स्थान के दिहाड़ी मजदूरों के बारे में इतनी उत्कृष्ट टिप्पणियां इकठ्ठी हो गयी हैं कि क्या कहें!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

22 thoughts on “शादी के रिश्ते – क्या चाहते हैं लोग?

  1. शानदार पारिवारिक पोस्ट! रीता भाभी को लगातार लिखना चाहिये। इस पोस्ट से देखिये आपको रामचन्द्र मिश्र जैसे लड़के का अनुरोध भी मिला । उसकी भी शादी करा दें। लड़का अच्छा है। आपके ब्लाग पर कमेंट करता रहता है। आलोक पुराणिक हमारा कमेंट चुराकर हमसे पहले चेंप देते हैं। इसकी शिकायत कहां करें?

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  2. ज्ञान जी और रीता जी , प्रणाम ! हम दो बहने एक भाई….ब्राह्मण — एक दामाद ब्राह्मण, दूसरा बनिया और तीसरी बहू राजपूत… तीनों शादियाँ मातापिता की पसन्द की. अब हमें शायद अपने बच्चों की पसन्द से चलना पड़ेगा.

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  3. मेरे समझ से समाज हित में इससे उम्दा चिंतन और कुछ हो ही नही सकता ,इस सन्दर्भ में मैं आलोक जी के विचारों से वेहद सहमत हूँ कि इस जाती और वर्ग भेद का एक ही रास्ता है ” संपूर्ण आर्थिक स्वाबलंबन “. वैसे भाभी जी को आभार इस चिंतन के लिए !

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  4. पुष्पा जैसी बेटी पा कर आप के बुआ फूफा धन्य हुएसाथ ही समय के हिसाब से आप के विचार सही ही हैं, भाभी आप को प्रणाम।

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  5. कई दिनों बाद आया इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ. पर आते ही ऐसी बढ़िया पोस्ट पर कमेन्ट करने मिला धन्य हो गया हूँ.बहुत ही शिक्षाप्रद पोस्ट है. पौराणिक जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ.भाभीजी को बधाई. ये पोस्ट प्रसारण कार्यक्रम आगे भी जारी रहें. भइया से अच्छा लिखतीं है आप.

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  6. भाभी का क्न्फ्यूजन १०० टका जायज है..न जाने कब बदलाव आयेगा..रही सोच की बात..कि किसी के मन की थाह पाना कितना मुश्किल है। अरे, यहाँ तो खुद के मन की थाह पाना ही मुश्किल हुआ जा रहा है..चाहते कुच और हैं..करते कुछ और और आशायें कुछ और की…वाकई.

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  7. भौजी को प्रणाम!!अईसा है कि ई शादी वाले मामलात पर हम कुछ नई कहते बस खिसक लेते हैं ;)यहां छत्तीसगढ़ में ब्राम्हणों का जो हाल देखता हूं तो मै अक्सर दोस्तों से कहता हूं कि ब्राम्हण लड़का कैसा भी हो,कुछ भी करता हो उसके लिए दस रिश्ते तो लाईन में लगे ही रहते हैं और अगर गलती से लड़का सरकारी नौकरी में हो तब तो पूछिए ही मत घर के दरवाजे से अगले चौराहे तक लड़की वाले अदृश्य लाईन लगाए नज़र आएंगे।कभी-कभी तो आश्चर्य भी होता है कि आखिरकार लड़की वालों ने लड़के में ऐसा क्या देखा कि अपनी इतनी अच्छी पढ़ी लिखी लड़की सुंदर लड़की इसे ब्याह दी।अपनेराम तो लड़कीवालों के आने की खबर सुनते ही दूसरे दरवज्जे से खिसक लेते हैं, अपना मानना है कि हमारे लिए रिश्ता लाना मतलब लड़की वाले अपनी लड़की को खुद ही कुएं में धकेलने की कोशिश कर रहे हैं ;)अब ई भौजी भी भौजी धर्म निभाते हुए हमरी शादी न लगाने लगें कहीं ;) इधर तो सब भाभियों ने जीना मुहाल कर दिया है, जब देखो तब शादी-शादी की रट मानों इसके अलावा कुछ रखा ही नई ज़िंदगी में

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  8. ऐसा लगता है हर जाति हर धर्म मे यही सब होता है ।कहीं कोई भी संतुष्ट नही है। रीता भाभी की अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।

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