एक मंजिला घर होने और एयर कण्डीशनर से परहेज के चलते हम (पंकज अवधिया उवाच) लोगों को गर्मियो में बडी परेशानी होती है। एक बडा सा कूलर है जो पूरे घर को ठंडा रखने का प्रयास करता है। मई-जून मे तो उसकी हालत भी ढीली हो जाती है। गर्मियो मे अक्सर बिजली गुल हो जाती है। खैर, इस बार चुनावी वर्ष होने के कारण बिजली की समस्या नहीं है। हमारे घर को प्राकृतिक उपायो से ठंडा रखने के लिये समय-समय पर कुछ उपाय अपनाये गये। इसी से सम्बन्धित आज की पोस्ट है।
तुअर, राहर या अरहर की फल्लियों को तोड़ने के बाद बचा हुआ भाग जिसे आम भाषा मे काड़ी कह देते हैं आम तौर पर बेकार पडा रहता है। इस काड़ी को एकत्रकर गाँव से शहर लाकर इसकी मोटी परत छत के ऊपर बिछा देने से काफी हद तक घर ठंडा रहता है। शुरु में जब इसमें नमी रहती है तो कूलर की जरुरत नही पड़ती। पर जून के आरम्भ मे ही इसे हटाना पड़ता है। अन्यथा छिट-पुट वर्षा के कारण सड़न आरम्भ हो जाती है। साथ ही अन्धड़ मे इसके उडने से पडोसियो को परेशानी हो जाती है।
शुरु से ही घर पर बडे पेड लगाने पर जोर दिया गया। चारों ओर आम, जामुन, आँवला आदि के पेड़ है। पड़ोसी भी पर्यावरणप्रेमी हैं। इसलिये आस-पास पेड़ों की बहुलता है। ये पेड़ घर को काफी हद तक ठंडा रखते हैं। जंगली क्षेत्रों मे रहने वाले लोग महुआ, करंज और पीपल प्रजाति के पेड़ों को लगाने की सलाह देते हैं। पर आमतौर पर आधुनिक घरों मे इन्हे पसन्द नही किया जाता है।
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«श्री पंकज अवधिया की छत का दृष्य |
घर की छत पर चूने की मोटी परत लगाने की सलाह आम तौर पर लोग देते रहते हैं। इस बार इसे भी आजमाया। चूने को फेवीकोल के साथ मिलाकर दो दिनों मे यह पुताई पूरी की। फेवीकोल से दो फायदे हुये। एक तो वर्षा होने पर यह चूने को पकड कर रखता है। दूसरे हमारी छत में जो सीपेज की समस्या थी वह इससे दूर हो गयी। छत की पूरी मरम्मत में हजारो रुपये लग जाते। इस नये प्रयोग से बचत हो गयी। इसका प्रभाव जोरदार है। औसतन दिन मे सात से आठ घंटे कूलर को बन्द रखने से भी कोई परेशानी नही होती है। अभी रात के तीन बजे घर इतना ठन्डा है कि कूलर बन्द कर दिया है|
जिन्होने इस उपाय को अब तक नहीं अपनाया है, वे अपनायें। मैने बहुत दिनों तक इंतजार किया पर अब जब इसका असर होता है – यह सुनिश्चित हो गया, तब ही मैने इस जानकारी को पोस्ट के रुप मे लिखने का मन बनाया।
छत में जाने पर हमे धूप का चश्मा लगाने की सख्त हिदायत दी गयी है। चूने से प्रकाश का परावर्तन आँखों के लिये नुकसानदायक जो है। छत के ऊपर फैली आम की शाखाएं झुलस सी गयी हैं। यह प्रभाव देखकर मुझे काफी पहले किया गया एक प्रयोग याद आता है जिसमे मूंग की पत्तियो को अतिरिक्त प्रकाश देने के लिये चूने का ऐसा ही प्रयोग किया था। आम तौर पर पत्तियो की ऊपर सतह में ही सूर्य का प्रकाश सीधे पड़ता है। हम लोगों ने सोचा कि यदि इस प्रकाश को निचली सतह तक भी पहुँचाया जाये तो क्या पौधे को लाभ होगा? इसी निमित्त से चूने की पट्टियों के माध्यम से प्रकाश को निचली पत्तियों तक पहुँचाया। प्रयोगशाला परिस्थितियों मे किये गये इस शोध से उत्साहवर्धक परिणाम मिले। उम्मीद है साथी शोधकर्ता अब इसे बडे पैमाने पर जाँच रहे होंगे।
यह कहा जाता है कि एसी और कूलरों से पटे कांक्रीट के जंगल अपना एक लघु मौसम तंत्र (Urban heat Island effect) बना लेते हैं। मै ये सोच रहा हूँ कि पूरा शहर यदि चूने के इस्तमाल से प्रकाश और ताप को लौटाने लगे तो क्या यह लघु मौसम तंत्र को प्रभावित करेगा? सकारात्मक या नकारात्मक?
पंकज अवधिया
© इस पोस्ट पर सर्वाधिकार श्री पंकज अवधिया का है।
| हमारे (ज्ञानदत्त पाण्डेय उवाच) घर में भी एक ही मजिल है। यह पोस्ट देख कर मेरा परिवार; एक कमरा जो नीची छत वाला है और गर्म रहता है; पर चूने की परत लगाने को उत्सुक है। मेरी पत्नी का सवाल है कि कितनी मोटी होनी चाहिये यह परत और उसे डालने के लिये चूने और फेवीकोल का क्या अनुपात होना चाहिये?
प्रश्न अवधिया जी के पाले में है। और अवधिया जी ने निराश नहीं किया, लेख छपने के पहले उनका उत्तर मिल गया है – “हमारे यहाँ 1600 स्क्व. फीट की छत मे 30 किलो चूना और 750 मिली फेवीकोल (डीडीएल) लगा। अन्दाज से गाढे घोल की दो मोटी परत लगायी गयी। माताजी का कहना है कि यदि 35 किलो चूना होता तो और अच्छे से लगता।” यदि आपको अगर यह काम कराना हो तो बैंचमार्क उपलब्ध हैं! |

सही है. बारिश में छत का चूना भी रुकेगा.
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अगर आप छत पर पुआल (धान की )बिछाकर चिकनी मिट्टी का लेपन कराले , तो आपके कमरो का तापमान बाहर के तापमान १२ से १५ डिग्री तक कम हो जायेगा, ना फ़ूस उडेगा, ना ही पडोसी परेशान होंगे.इस तकनीक को आई आई टी रुडकी का प्रमाण पत्र भी मिला हुआ है, ग्रीन हाउस गैसो के बचाव के लियेअरूण फ़ूसगढी :)
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हमारा पुराने मकान तो बना ही चुने का था.. और जोधपुर में तो आज भी चुने का उपयोग बहुतायात में किया जाता है.. चुने में नील डाल कर सफेदी की जाती है.. जिस कारण सारे मकान नीले दिखाई देते है.. बढ़िया जानकारी उपलब्ध कराई आपने.. धन्यवाद
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प्रभो चूना तो लगवायें, पर उससे पहले येसा घर कैसे लायें, जहां छत अपनी हो। महानगरों में तो फ्लैट में ना जमीन अपनी ना छत। वैसे मैंने पिछले साल विकट जबरजंग छह फुटे कूलर में एक बड़ी वाली मोटर फिट कराकर दो कमरों में डक्टिंग के जरिये टीन के बड़े पाइपों के जरिये ठंडक जुगाड़ किया है। ये भी धांसू है। एयरकंडीशनर से बहुत सस्ता और रिजल्ट लगभग वैसा ही। जमाये रहिये। चूना सिर्फ छत को लगाईये। और कहीं नहीं। किसी को नहीं।
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बेहतरीन जानकारी.अच्छा प्रयोग बताये आपने.अपन कर तो नहीं सकते पर हाँ ज्ञान अर्जन जरुर हुआ.
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सही है। चूना लगवा लीजिये।
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सामयिक जानकारी !
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भारत में घर पर एसी भी इत्ती गरमी में टैं बोल जाता है शायद चूने फेविकोल का घोल एसी को भी एफ्कटिव करने में साहयक हो. इस बार जाऊँगा तो करवाता हूँ. एक प्रश्न है कि कितने दिन में फिर से करवाना पड़ेगा? क्या हर साल या कुछ सालों मे एक बार. अवधिया जी बतायें.इस पोस्ट के लिए आभार.
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हमारे यहाँ पुराने घर पर पत्थर की पट्टियाँ डाल कर ऊपर से ईंटें चूने के साथ बिछा कर कड़ा लगाया जाता था उस के ऊपर अनेक वनस्पतियों सन गुड़ आदि को चूने के साथ मिला कर छत की कुटाई की जाती थी। उस से घर गरम नहीं होता था। अब कंक्रीट के कारण वह पद्यति गुम होती जा रही है। मेरा वर्तमान घर इसी पद्यति से बना। पर बाद में बने पिछले कमरे में कंक्रीट की छत बनी। फिर भी चूने की परत फेवीकोल के साथ अच्छा उपाय है। पहले लोग इसी कारण अपने मकान की बाहरी दीवारें चूने से प्रतिवर्ष पुतवाते थे। लेकिन अब उन का स्थान डिस्टेम्पर ने ले लिया है। मेरे घर में अन्दर भी चूना, रंग और फेवीकोल की पुताई है जो दिखने में डिस्टेम्पर से कम नहीं। पर यह सस्ती होने से हर साल या हर दूसरे साल की जा सकती है। बाहरी दीवारें और छत चूना फेवीकोल से पुताने पर घर ठण्डा रहेगा क्यों कि धूप के साथ आने वाले प्रकाश और गर्मी के विकिरणों की अधिक मात्रा वापस परावर्तित कर दी जाएगी।
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वाह ..पर्यावरण को सुरक्षित रखने व जो भी उपलब्ध हो उसी मेँ नये प्रयास करने से देखिये कितना बढिया नतीजा निकल आया -हा धूप के वक्त सुफेद चूने पे किरणेँ पडकर अवश्य आँखोँ मेँ बाधा कर सकतीँ हैँ – यहाँ पे स्नो पडते ही, जब तेज निकलती है तब भीऐसा ही द्रश्य हो जाता है – हाँ ,चाँदनी रात मेँ , स्वप्न जगत सा लगता है –
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