बदलते परिदृष्य में वित्त का जुगाड़ ज्यादा जरूरी


money कल मेरे एक मित्र और सरकारी सेवा के बैच-मेट मिलने आये। वे सरकारी नौकरी छोड़ चुके हैं। एक कम्पनी के चीफ एग्जीक्यूटिव अफसर हैं। वैसे तो किसी ठीक ठाक होटल में जाते दोपहर के भोजन को। पर बैच-मेट थे, तो मेरे साथ मेरे घर के बने टिफन को शेयर किया। हमने मित्रतापूर्ण बातें बहुत कीं। बहुत अर्से बाद मिल रहे थे।

मैने उनसे पूछा कि बदलते आर्थिक सिनारियो (परिदृष्य) में सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण काम उन्हें क्या लगता है? उत्तर था – अबसे कुछ समय पहले मार्केटिंग और लॉजिस्टिक मैनेजमेण्ट बहुत चैलेंजिंग था। अब अपने प्रॉजेक्ट्स के लिये फिनान्स का अरेंजमेण्ट काफी महत्वपूर्ण हो गया है। अचानक फूल-प्रूफ बिजनेस प्रस्ताव को भी पैसा पहले की तरह मिलना निश्चित नहीं रह गया है।

शायद इस छटंकी पोस्ट का आशय केवल स्टॉक-मार्केट की दशा से संबन्धित लग रहा है। वैसा नहीं है। मैं बात कर रहा हूं एक औद्योगिक और यातायात सम्बन्धी गतिविधि के प्रबन्धन की। उसका मन्दी से सम्बन्ध है। और मन्दी रुदन का विषय नहीं, अवसर का विषय है।  

उनमें और कई अन्य में जो अन्तर मुझे नजर आया; वह यह था कि बदले परिदृष्य को वे रुदन का निमित्त न मान कर नयी चुनौती मान रहे थे। शायद वही सही है। अर्थव्यवस्था के हर रोज के झटकों को चुनौती मान कर चलना और उसमें नये सुअवसर ढूंढ़ना – यही बेहतर सैन्य प्रबन्धन है।

अभी लग रहा है कि बिजनेस करने वाले अपने हाथ जला रहे हैं। यही सामान्य समझ है। पर ये लोग देर सबेर विजयी हो कर निकलेंगे। हम जैसे रुदनवादी रुदन करते समय काट देंगे!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

33 thoughts on “बदलते परिदृष्य में वित्त का जुगाड़ ज्यादा जरूरी

  1. हमारी दीवाली का तो दीवाला निकल गया, सोचा कि बाजार बहुत गिर गया है मौका अच्छा है चलो घुस लेते हैं । एक अच्छा निवेश किया ९४० के निवेश पर अगले ही दिन २२० का फ़ायदा जो अभी तक कन्सिस्टेंट है । दूसरा निवेश लगभग २९०० का किया जिस पर पहले दिन ९० का फ़ायदा और ताजा स्थिति तक ६०० का घाटा :-(सोच रहे थे कि ३५० बन जाते तो दौडने के लिये GPS वाली घडी ले लेते जो हमारी रफ़्तार/दूरी/हृदयगति और पता नहीं क्या क्या बताती रहती । अभी तो उम्मीद नहीं देख रही है :-( १८ जनवरी (ह्यूस्टन मैराथन) में अभी भी २ महीने से ज्यादा बचा है देखो इलेक्शन के बाद बजार सुधरे तो कुछ उम्मीद है । वरना हमने भी “लांग टर्म इन्वेस्टर” का तमगा लगा लिया है और हंसते घूमते हैं कि घाटा तभी है जब कैश करा लो वरना तो कागजी घाटा ही है, आज नहीं तो अगले साल कम्पनी फ़ायदा देगी ही और कोई जल्दी तो है नहीं ।लेकिन कुछ लोगों का दीवाला निकल गया है विशेषकर जो अपनी नौकरी से सेवामुक्त होने की सोच रहे थे । बजार से गिरने से बहुतों का रिटायरमेंट फ़ंड ३ महीने पहले के मुकाबले १/५ तक रह गया है और वो चाहकर भी रिटायर नहीं हो सकते । कल अपने एडवाईजर से बात हुयी और उन्होने बताया कि उनके पोर्टफ़ोलियो को १ मिलियन का घाटा हुआ है । आगे आगे देखिये होता है क्या, बस चुप्पी साधे बैठे हैं ।

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  2. “अर्थव्यवस्था के हर रोज के झटकों को चुनौती मान कर चलना और उसमें नये सुअवसर ढूंढ़ना – यही बेहतर प्रबन्धन है.” से सहमत हूँ परन्तु बदलते घटनाक्रमों ने कईओ को रुला दिया है .दीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामना .

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