गाय


मुझे लगभग हर रेलवे स्टेशन पर गाय दिखीं। वडोदरा, भोपाल, सिहोर, बीना व झाँसी में गऊ माँ के दर्शन करने से मेरी यात्रा सुखद रही। मनुष्यों और गायों के बीच कहीं पर भी अस्तित्व सम्बन्धी कोई भी झगड़ा देखने को नहीं मिला। समरसता व सामन्जस्य हर जगह परिलक्षित थे।

praveen
यह श्री प्रवीण पाण्डेय की अतिथि पोस्ट है। और इसमें आप पायेंगे कि उनकी मानसिक हलचल विराट विविधता लिये होती है।

श्री प्रवीण हाल ही में रेलवे स्टाफ कॉलेज, वडोदरा गये थे। यह वृतान्त सम्भवत वापसी की यात्रा का है।

आप प्रवीण जी का गाय पर लिखा पढ़ें।

मुझे आशा है कि प्रवीण नियमित बुधवासरीय अतिथि पोस्ट देते रहेंगे! 

स्टेशन पर घर से लायी रोटियाँ खाने के बाद बच्चे के हाथ से गाय को खिलाने से खाना व्यर्थ भी नहीं हुआ और लगे हाथों पुण्य भी प्राप्त हो गया। गाय भी लोगों के बैठने में कोई विघ्न न डालते हुये शान्त भाव से धीरे धीरे प्लेटफार्म का पूरा चक्कर लगाती है। इतने धैर्य से स्टेशन के बड़े बाबू भी निरीक्षण नहीं करते होंगे।

कुत्तों की चपलता पर ध्यान न देती हुयी ’एबन्डेन्स थ्योरी’ को मानते हुये हमारी गायें हर स्टेशनों पर अपना जीवन ज्ञापन करती हैं। बड़े अधिकारियों के दौरों के दौरान स्टेशन से अस्थायी निष्कासन को भी बुरा न मानते हुये पुनः सहजता से वापस आ जाती हैं।

कमोबेश यही स्थिति हर नगर की सड़कों की है। बड़े नगरों में ट्रैफिक जैम का प्रमुख कारण गायों का सड़क पर बैठे रहना है। पिछले वर्ष खजुराहो से झाँसी आते समय पानी बरस रहा था और प्रत्येक गाँव के बाहर गायें सैकड़ों की संख्या में झुण्ड बनाकर सड़क पर बैठी हुयी दिखीं थीं।

मुझे श्रीमदभागवतम का दशम स्कन्ध पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिसमें कृष्ण की लीलाओं का चित्रण है। मथुरा भ्रमण के समय भी कहीं पर किसी गाय ने सड़क पर कृष्ण को ’हैलो कान्हा’ कहकर नहीं बुलाया। (निश्चय ही सड़कों पर गायों का डेरा जमाना कृष्ण के जमाने में नहीं था!)

Cows on Road यह इलाहाबाद की स्टेनली रोड का केण्टोनमेण्ट इलाका है जहां वाहन तेज गति से चलते हैं। गायें सड़क पर स्वच्छंद जुगाली कर रही हैं!

वर्तमान में दूध देने वाले पशुओं की दुर्दशा का मुख्य कारण हमारी आधुनिकता है। सभी अपने घर में बच्चों के लिये गाय का शुद्ध दूध चाहते हैं। दूधवाले पर विश्वास न करने वाले सज्जन चट्टों पर जाकर अपने सामने दूध निकलवाते हैं लेकिन शायद नहीं जानते कि गाय को एक इन्जेक्शन पहले ही दिया जा चुका है। चट्टों की स्थिति का वीभत्स वर्णन कई ब्लागों में आ चुका है।

चारे की कमी के कारण बुन्देलखण्ड क्षेत्र में दूध न देने वाली गायों को व बछड़ों को अपना भोजन तलाशने के लिये खुला छोड़ दिया जाता है। हर जगह कांजी हाउस बन्द हो चुके हैं। पूरी खेती मशीनीकृत होने से बैलों का उपयोग नहीं होता है जिससे पशुओं के लिंग अनुपात में बुरा असर पड़ा है। इस स्थिति में यदि चमड़े का निर्यात बढ़ता है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

दूध महत्वपूर्ण होने पर भी पशुओं की यह स्थिति मार्मिक है और दशा और दिशा निर्धारण के लिये प्रयास की अपेक्षा करती है।


एक बात जो मैं तथाकथित धर्मांध जनता में पाता हूं, वह यह है कि गायें जब दूध देना बंद कर देती हैं तो उन्हे अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। उनका वध धार्मिक कारणों से नहीं किया जाता; पर लगता है कि रात में उन्हे जानबूझ पर रेलवे ट्रैक पर धकेल दिया जाता है। ट्रेन से कट कर उनकी मृत्यु हो जाती है।

उससे ट्रेन परिचालन अवरुद्ध होता है और (यह कयास है, कि) तथाकथित धर्मान्ध मालिक उनके इन्श्योरेंस का पैसा जेब में डाल कर गौ माता की जय बोलता है।

रेलवे में जरूरत है एक ऐसे स्प्रे की जो ट्रेक के आस पास उगने वाली घास को नष्ट कर डाले। उससे गाय/नीलगाय ट्रैक पर नहीं आयेंगे और कटेंगे नहीं। खरपतवार नाशी स्प्रे होंगे जरूर। एक विचार तो यह पन्ना पढ़ने पर आ रहा है -  एयरेटेड शीतल कोला पेय अगर पानी में १:१०० में मिला कर स्प्रे किया जाये तो शायद घास और खरपतवार नष्ट हो जाये।

अपडेट (सवेरे सवा सात बजे): अभी अभी नियंत्रण कक्ष से सवेरे का ट्रेन रनिंग का हाल चाल लेने पर खट्टा हो गया मन। सोनागिर-दतिया के बीच 2716 सचखण्ड एक्स्प्रेस से 28 गायें कट गयीं। सवा घण्टा यातायात अवरुद्ध रहा। पता नहीं वे गायें थीं या नीलगाय का झुण्ड था! जो भी हों, दुखद! अपडेट (सवेरे नौ बजे): ओह, वे 34 हैं। सात के शव ट्रैक पर, शेष छितराये हुये। नीलगायें हैं।   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

36 thoughts on “गाय

  1. प्रवीण जी की यह पोस्ट बेहद अच्छी लगी और उनकी यह चिंता भी वाजिब की कुछ ऐसा होना चाहिए की ट्रैक के आस पास खरपतवार ना उगे.मनोज खत्री http://manojkhatrijaipur.blogspot.com/

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  2. प्रवीण पाण्डेय की पोस्ट बढ़िया लगी. धाराप्रवाह लेखन और रोचक अभिव्यक्ति पाठक की मनः स्थिति पर अच्छा प्रभाव छोड़ती है . लेखक को बधाई और शुभकामनाये . प्रस्तुति के लिए आभार.

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  3. ट्रेन दुर्घटना की शिकार हुये पशुओं रिश्तेदार यदि उन्हें स्टेशन पर ढ़ूढ़ते पाये जाते हैं, तो क्या बुरा है ?यदि यह यूँ ही न भटक कर किसी गौशाला / पशुशाला की सुरक्षा पा जायें, तो गौरक्षा समिति कैसे बनेगी ?यदि समिति का स्कोप खत्म हो जायेगा, तो एक समानाँतर हिन्दू वोट बैंक कैसे मज़बूत होगा ?प्रवीण, आप बहुत अच्छा लिखते हो, बशर्ते आप हर बुधवार को यहाँ मिलो ।शुभकामनायें ।

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  4. गायों की ये दुर्दशा बहुत आम हो गयी है ,जो बहुत गलत है , गाय को माता का दर्जा दिया जाता है और आज वो दर दर भटक रही है

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