सिरपर छोटा सा जूड़ा बांधे निषाद घाट पर सामान्यत बैठे वह व्यक्ति कुछ भगत टाइप लगते थे। पिछले सोमवार उन्हें गंगा की कटान पर नीचे जरा सी जगह बना खड़े पाया। जहां वे खड़े थे, वह बड़ी स्ट्रेटेजिक लोकेशन लगती थी। वहां गंगा के बहाव को एक कोना मिलता था। गंगा की तेज धारा वहां से आगे तट को छोड़ती थी और तट के पास पानी गोल चक्कर सा खाता थम सा जाता था। गंगा के वेग ब्रेकर जैसा।
गुरुपूर्णिमा के दिन गंगा के पानी में नारियल बह कर आ रहे थे और उस जगह पर धीमे हो जा रहे थे। उस जगह पर नारियल पकड़ कर निकालने में बहुत सहूलियत थी। हम जैसे घणे पढ़े लिखे भी यह स्ट्रेटेजी न सोच पायें। मैं तो सम्मोहित हो गया उन सज्जन की तकनीक से। तीन नारियल पहले से इकठ्ठा कर चुके थे वे। चौथा हमारे सामने पकड़ा।![]()
उनसे संवाद मेरी पत्नीजी ने किया। उन्होने नाम बताया हीरालाल। सिर पर बाल किसी मनौती में बढ़ा रखे हैं। “अब नियराई ग बा (अब मनौती पूरा होने का समय आ गया है)”। यहीं कछार में खेती करने जा रहे हैं। लगभग दस दिन में शुरू करेंगे। नाव है उनके पास। बीच में उग आये द्वीप पर शुरू करेंगे। अभी वहां (द्वीपों पर) लोग खुदाई कर रहे हैं। पर्याप्त खोद लेंगे तो शुरू होगी रुपाई।
नारियल बड़ी सफाई से पकड़ रहे थे हीरालाल। “गंगामाई क परसाद अहई, जेकर भाग्य होथ, उकरे हाथे लगथ (गंगामाई का प्रसाद है नारियल। जिसका भाग्य होता है, उसके हाथ लगता है)! एक नारियल थोडा दूर बह कर जा रहा था। थोड़ी दूर खड़े एक जवान ने कहा – पकड़अ बिल्लू दद्दा (पकड़ो बिल्लू दद्दा)! पर हीरालाल ने संयत भाव से उसे जाने दिया – वह दूर बह रहा है और वहां पानी गहरा है। दो हांथ दूर थाह नहीं मिलती है तल की। आगे किसी और के भाग्य में होगा वह नारियल!
हीरालाल की नरियल साधना! यह साधना ही तो थी। सही लोकेशन का चुनाव। जिसको पकड़ना है, उसपर यत्न। किसी अनचाहे पर व्यर्थ श्रम नहीं। शरीर की ऊर्जा का कारगर उपयोग। कहां हैं मैनेजमेण्ट के गुरूगण? यहां हीरालाल को देखें शिवकुटी के निषादघाट पर!
बहुत पहले इन्जीनियरिंग की पढ़ाई में तरल पदार्थ के फ्लो के बारे में नियम ट्रांसपोर्ट फिनॉमिना और थर्मोडायनमिक्स के कोर्स में पढ़े थे। ढेरों समीकरण और नियम। तब नहीं पता था कि उनका उपयोग आम जिन्दगी में हीरालाल बखूबी करते हैं।

श्रमपूर्वक किये गये साधना का फल तो मिलता ही है।
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ब्लॉगरी से धीरे धीरे साहित्य की एक नई विधा का सृजन हो रहा है – दैनिन्दिन रूटीन सी बातों का सूक्ष्म पर्यवेक्षण, उनके लेखन के माध्यम से अपना और पाठकों का संस्कारीकरण। सम्वेदना और 'आम' से जुड़ाव की गहनता। आप इसे साहित्य चाहे न मानें लेकिन लिखा हुआ कलम से निकलते ही स्वतंत्र हो जाता है।_________________जीवन ऐसा ही है। नारियल समेटते सिद्धि की तलाश हो या प्रबन्धन करते मुक्ति की – बहता रहता है। गंगा की तरह ही।
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हीरालाल जी उस परंपरा के जीव है जिसमे व्यक्ति प्रकृति-संस्था से ज्ञान अर्जित करता है | अच्छा लगा …
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यूँ ही आत्मसात हैं न जाने कितने वैज्ञानिक नियम-सिद्धांत लोक के दैनंदिन व्यवहार में । कायल तो हम आपकी दृष्टि के हैं । सामान्य की असामान्य प्रतिष्ठा कर देते हैं आप ।अजय जी की बात भी सोलहो आने सच्ची है- आपके ब्लोग पर उपलब्ध गंगा साहित्य एक धरोहर की तरह बनता जा रहा है ..
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हीरालाल की नरियल साधना-धन्य हुए बांच कर.देखो दुनिया, देख सको तोक्या क्या वह दिखलाता है…गुर सारे जिन्दा रहने केये जीवन ही सिखलाता है….
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हीरालाल की बुध्धि व्यापार और परिश्रम का रेशियो बेलेंस करना जानती है- लावण्या
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बहुत पहले इन्जीनियरिंग की पढ़ाई में तरल पदार्थ के फ्लो के बारे में नियम ट्रांसपोर्ट फिनॉमिना और थर्मोडायनमिक्स के कोर्स में पढ़े थे। ढेरों समीकरण और नियम। तब नहीं पता था कि उनका उपयोग आम जिन्दगी में हीरालाल बखूबी करते हैं। हमारी तो आज भी रोजी-रोटी थर्मोडायनेमिक्स और ट्रांसपोर्ट फ़िनामिना से निकलती है। बोले तो हीरालाल जी ने स्टैगनेशन पाइंट को खूब पकडा, ;-)नीरज
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आपके ब्लोग पर उपलब्ध गंगा साहित्य एक धरोहर की तरह बनता जा रहा है ..कल को गंगा रहे न रहे ..पता नहीं मगर उसका पूरा साहित्य और उससे जुडे जीवन का पता आपको पढ के चल जाएगा ..हीरा लाल जी की तकनीक ने प्रभावित किया आपने लिखा न बहुत पहले इन्जीनियरिंग की पढ़ाई में तरल पदार्थ के फ्लो के बारे में नियम ट्रांसपोर्ट फिनॉमिना और थर्मोडायनमिक्स के कोर्स में पढ़े थे। ढेरों समीकरण और नियम। तब नहीं पता था कि उनका उपयोग आम जिन्दगी में हीरालाल बखूबी करते हैं। और ठीक यही बात मैं भी कहना चाहता था कि ऐसी सैंकडो तकनीकें ..ग्रामीण और शहर से दूर बसे भोले भाले लोग भी अपनाते रहे है जो अपने आप में एक वैज्ञानिक प्रणाली की तरह है ..जैसे कई बार मछली पकडने में तो कई बार आम या केला पकाने मे और कई बार खेतों की सिंचाई में आभार
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हीरालाल जी की जय हो।
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बड़ी बड़ी समस्याओं का सहज और सरल निदान अक्सर अकुशल अशिक्षितों के पास मिल जाता है यही है व्यावहारिक ज्ञान … साधारण कार्यों में असाधारणता खोजती आपकी प्रविष्टियाँ अतुलनीय होती हैं …आभार ..!!
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