डेमी गॉड्स बनने के चांस ही न थे!

Vivek Sahaiभारतीय रेल यातायात सेवा के वार्षिकोत्सव पर गीत गाते श्री विवेक सहाय; सदस्य यातायात, रेलवे बोर्ड।

वह जमाना सत्तर-अस्सी के दशक का था जब सरकारी ग्रुप ए सेवा का बहुत वजन हुआ करता था। मुझे एम वी कामथ का एक अखबार में लेख याद है कि स्कूली शिक्षा में मैरिट लिस्ट में आने पर लड़के देश निर्माण की बजाय सरकारी सेवा में घुस कर अपनी प्रतिभा बरबाद करते हैं। और जब यह लेख मैं पढ़ रहा था, तब सरकारी सेवा में घुसने का मन बना चुका था।

खैर, मेरे मन में सरकारी नौकरी की मात्र जॉब सिक्योरिटी भर मन में थी। यह सत्तर के दशक के उत्तरार्ध और अस्सी के पूर्वार्ध की बात है। पर मेरे बहुत से मित्र और उनके अभिभावक सरकारी अफसरी के ग्लैमर से बहुत अभिभूत थे। दुखद यह रहा कि उनमें से बहुत से लम्बे समय तक रीकंसाइल ही न कर पाये कि वे डेमी गॉड्स नहीं हैं और शेष कर्मचारी उनकी प्रजा नहीं हैं! उनमें से बहुत से अवसाद ग्रस्त हो गये और कई विचित्र प्रकार के खब्ती बन गये।

मैने इण्डिया टुडे में दशकों पहले एक महिला का कथन पढ़ा था, जो अपने लड़के के सिविल सेवा में चयन होने पर अपने सौभाग्य की तुलना राजा दरभंगा से कर रही थी। राजा दरभंगा यानी प्रजा के लिये माई-बाप/डेमी गॉड! पता नहीं अन्तत: क्या दशा रही होगी उस महिला और उस सपूत की; पर उसे मोह भंग अवश्य हुआ होगा।

हम कभी-कभी-कभी भी डेमी गॉड्स नहीं बन पाये! और मेरी पत्नीजी तो बहुधा कहती हैं कि तुम खुश किस्मत थे कि तुम्हारी नौकरी लग गयी थी, अन्यथा तुम किसी काम के न थे। यह वह इतनी बार कह चुकी हैं कि मैं अचेतन में इस पर यकीन भी करने लगा हूं।

खैर, आम जनता में अभी भी हम लोग टाइट लिप्ड, घमण्डी और घोंघा (जमीनी यथार्थ की समझ से दूर) माने जाते हैं। पर टाइट लिप्ड सिविल सेवा के लोग भी जब खुलते हैं तो बिन्दास खुलते हैं। इस बारे में मेरे एक साथ के अधिकारी श्री प्रदीप संधू ने भारतीय रेल यातायात सेवा (IRTS) के वार्षिकोत्सव का वीडियो लिंक ई-मेल किया। उसमें हमारे सदस्य यातायात (Member Traffic) श्री विवेक सहाय गाना गा रहे हैं। सदस्य यातायात यानी IRTS का शीर्षस्थ अफसर। आप जरा वीडियो देखें – ठीक ठाक ही गा रहे हैं श्री सहाय – ये होठों की बात चुप है — खामोशी सुनाने लगी है दासतां!

प्रदीप संधू रेलवे सेवा छोड़ आई.बी.एम. मैं सेवारत हैं। उनका कहना है कि अगर इस तरह की खुली छवि दिखाने वाला वीडियो श्री विवेक सहाय को पसन्द न आया तो वह इसे यू-ट्यूब से उतार देंगे। यद्यपि उनका कहना है –

… व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि यह अच्छा उदाहरण है कि हम अपने सबसे सीनियर का सज्जन चेहरा प्रस्तुत करें – अपने दो लाख से अधिक कर्मियों के सामने; जिन्हें वे नेतृत्व प्रदान करते हैं, और ऐसा करने से बेहतर टीम भावना को बल मिलेगा …

देखते हैं; अगर रेल यातायात सेवा डेमी गॉड्स की मानसिकता वाली प्रमाणित होती है तो यह वीडियो उतर जायेगा! पर मेरा मानना है, वैसा नहीं होगा। वेब ३.० के जमाने में सरकारी सेवायें वैसी इंस्युलर नहीं रहीं! अफसरों की छवि में बहुत बदलाव है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

28 thoughts on “डेमी गॉड्स बनने के चांस ही न थे!

  1. गीत हटाने की कोई वजह नजर नहीं आती है.यह सही है कि कितने ही अफसर अपने आपको डेमी गॉड माने बैठे हैं..फिर रिटायरमेन्ट के बाद पछताते हैं.

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  2. पापाजी के एक चपरासी कि याद आ गई इसे पढकर.. हम जब भी पटना से बिक्रमगंज जाते थे तो वह हम बच्चों के चरण छूने दौड़ते थे, चमचागिरी से नहीं पूरी श्रद्धा से.. काफी उम्र थी उनकी, ६० से अधिक ही रहे होंगे.. और जब भी वह ऐसा करते थे तब हम बच्चे शर्म से पानी-पानी हो जाते थे.. कितनी बार भी समझाया मगर उनका कहना होता था कि आप राजकुमार लोग हैं..अब सोचता हूँ कि शायद अंग्रेजों के जमाने में सामंतों या बड़े अधिकारियों के मातहत काम करने वाले ऐसे ही करते होंगे जिस कारण यह गॉड वाली प्रथा पर लोग विशवास करने लगे होंगे.. मगर ज़माना अब बहुत बदल चुका है..हमने एक अच्छी नौकरी इसीलिए छोड़ी क्योंकि मुझे लगा सामने वाला खुद को डेमी गॉड मान कर मुझसे बात कर रहा था और वैसे ही वर्ताव कि मुझसे उम्मीद भी लगा रहा था..गीत अच्छा गा रहे हैं.. उनसे कहिये कि इन्डियन आयडल का ऑडिशन चल रहा है, उसमे ट्राई करें.. ;)

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  3. ठीक कहा आपने, केन्द्रीय सेवा – वह भी प्रशासनिक, पुलिस या अन्य संबन्धित सेवाएँ – और हिन्दीभाषी प्रदेश! यह सेवा ऐसी ही समझी जाती थी जैसे शिक्षा के बारे में सूक्ति पढ़ी थी बचपन में – "किम्-किम् न साधयति कल्पलतेव विद्या" और अगर आप इन सेवाओं में नहीं हैं तो आप प्रजा तो हैं ही, भले ही भीतर रह कर भी राजा न बन पाना आपकी नैसर्गिक अयोग्यता – अक्षमता हो।अपनी एक पुरानी व्यंग्य रचना याद आ गयी -"अफ़सरों की क़ौम में पैदा हुआ हूँभैंस हो या अक़्ल, दोनों से बड़ा हूँबाक़ी टीएलबीएस (TLBS)

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  4. ये डेमी गॉड्स की मानसिकता वाले हर जगह मिल जाते है | सरकारी क्षेत्र में नहीं निजी क्षेत्र की कम्पनियों में भी इस मानसिकता वाले अधिकारी भरे पड़े है | कई बार इस मानसिकता वाले टाइट लिप्ड, घमण्डी और घोंघा टाइप अधिकारी जब किसी दिन किसी निजी कम्पनी में मिल जाते है तब मैं उनके बारे में सोचता हूँ यहाँ निजी क्षेत्र में इनका ये हाल है तो ये यदि सरकारी नौकरी में चयनित हो जाते तो इनका व्यवहार कैसा होता ?

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  5. न जाने क्यू शुरुआत से सरकारी नौकरी से चिढ थी.. आस पास एक अज़ीब सी दौड देखी थी इसके लिये.. सबको डेमी गॉड्स बनना था और हमारे यूपी के समाज मे ये कहना फ़ैशन है – "सिविल की तैयारी कर रहा हू…।" बाद मे वो सरकारी नौकरी के नाम पर किसी भी ग्रेड की नौकरी करते हुए पाये जाते है, नही तो किसी स्कूल के टीचर और वो अपने विद्यार्थियो को भी वही डेमी गॉड्स बनने के ही सपने दिखाते है..हम पॉवर भक्त लोग अगर शिक्षको को डेमी गॉड्स मानते तो कितना अच्छा होता.. आज हमारा बेस्ट टैलेन्ट वहा होता और वो न जाने कितनो को रीयल गॉड् बनाता..ज्ञान जी, आपके एक विद्यार्थी प्रवीण पान्डेय को जानता हू.. फ़िर ऐसे न जाने कितने होते!!P.S. सॉरी अगर मैं टॉपिक से भटक गया हूँ तो :( फ़िर बह गया भावनाओ मे..

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  6. वेब ३.० के जमाने में सरकारी सेवायें वैसी इंस्युलर नहीं रहीं! अफसरों की छवि में बहुत बदलाव है।बिलकुल आया है जी, अफ़सर क्या और मंत्री क्या, आजकल सभी ब्लॉग लिखने पढ़ने लगे हैं, ट्विट्टर पर चहकने लगे हैं, ई बदलाव ही तो है! :)

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  7. देव , आपको गाते हुए सुना पर ठीक ठीक चेहरा नहीं देख पाया .. दीखता तो और मजा आता .. टाइट लिप्ड, घमण्डी और घोंघा ……….. आदि आदि तो सुनना ही होता है , अंततः गीत की पंक्तियों का सच ही बचता है ; '' न तुम मुझे जानो , न मैं ………. '' '' सिविल सर्विसेज '' पर क्या कहूँ , मैं भी तो अपने जिस्मो-जां पर उस जमात में दाखिली के पूर्व का रंदा चला रहा हूँ ! छिलता जा रहा हूँ , जाने कितना छिलना बाकी है !जबकि यह सच आपने सटीक ही बयां किया है —- '' …… पता नहीं अन्तत: क्या दशा रही होगी उस महिला और उस सपूत की; पर उसे मोह भंग अवश्य हुआ होगा '' ……….. आभार !

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