3जी की 67,000 करोड़ की नीलामी

Gyan623-001 मेरे दोनो अखबार – बिजनेस स्टेण्डर्ड और इण्डियन एक्स्प्रेस बड़ी हेडलाइन दे रहे हैं कि सरकार को 3जी की नीलामी में छप्परफाड (उनके शब्द – Windfall और Bonanza) कमाई हुई है।

तीन दशक पहले – जब मैं जूनियर अफसर था तो १५० लोगों के दफ्तर में पांच-सात फोन थे। उनमें से एक में एसटीडी थी। घर में फोन नहीं था। पीसीओ बूथ भी नहीं थे। अब मेरे घर में लैण्डलाइन और मोबाइल मिला कर सात-आठ फोन हैं। सभी लोकल और दूर-कॉल में सक्षम। हाल ही में रेलवे ने एक अतिरिक्त सिमकार्ड दिया है। इसके अलावा हमारे भृत्य के पास अलग से दो मोबाइल हैं।

संचार तकनीक में कितना जबरदस्त परिवर्तन है इन दशकों में! कितनी बेहतर हो गयी हैं कम्यूनिकेशन सुविधायें। 

Gyan622-001 और एक स्पेक्ट्रम की संचार सेवा की नीलामी से ६७,००० करोड़ की कमाई! कितनी क्षमता है सर्विस सेक्टर की अन-वाइण्डिंग में। (वैसे यह भी लगता है कि जोश जोश में नीलामी में घणे पैसे दे दिये हैं कम्पनियों ने और ऐसा न हो कि मामला फिसड्डी हो जाये सेवा प्रदान करने में! नॉलेज ह्वार्टन का यह लेख पढ़ें।)

पर मैं बिजली की दशा देखता हूं। गीगाहर्ट्ज से पचास हर्ट्ज (संचार की फ्रीक्वेंसी से विद्युत की फ्रीक्वेंसी पर आने) में इतना परिवर्तन है कि जहां देखो वहां किल्लत। लूट और कंटिया फंसाऊ चोरी! यह शायद इस लिये कि कोई प्रतिस्पर्धा नहीं। आपके पास यह विकल्प नहीं है कि राज्य बिजली बोर्ड अगर ठीक से बिजली नहीं दे रहा तो टाटा या भारती या अ.ब.स. से बिजली ले पायें। लिहाजा आप सड़ल्ली सेवा पाने को अभिशप्त हैं। मैने पढ़ा नहीं है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट एक मुक्त स्पर्धा की दशा का विजन रखता है या नहीं। पर अगर विद्युत सेवा में भी सरकार को कमाई करनी है और सेवायें बेहतर करनी हैं तो संचार क्षेत्र जैसा कुछ होना होगा।

आप कह सकते हैं कि वैसा रेल के बारे में भी होना चाहिये। शायद वह कहना सही हो – यद्यपि मेरा आकलन है कि रेल सेवा, बिजली की सेवा से कहीं बेहतर दशा में है फिलहाल! 


यह पोस्ट कच्चे विचारों का सीधे पोस्ट में रूपान्तरण का परिणाम है। निश्चय ही उसमें हिन्दी के वाक्यों में अंग्रेजी के शब्द ज्यादा ही छिटके हैं। यदा कदा ऐसा होता है।

कदी कदी हिन्दी दी सेवा नहीं भी होन्दी! smile_regular  


चर्चायन – मसि-कागद के नाम से डा. चन्द्रकुमार जैन का ब्लॉग था/है, जिसमें साल भर से नई पोस्ट नहीं है। उसी नाम से नया ब्लॉग श्री दीपक “मशाल” जी का है। बहुत बढ़िया। अधिकतर लघु कथायें हैं। बहुत अच्छी। आप देखें। दीपक जी लिखते बहुत बढ़िया हैं, पर अपने चित्रों से भी आत्म-मुग्ध नजर आते हैं। हम भी होते अगर हमारा थोबड़ा उतना हैण्डसम होता! :-) ।  


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

35 thoughts on “3जी की 67,000 करोड़ की नीलामी

  1. @सतीश कुमार चौहान – मेरे विचार से Law of abundance काम करेगा। ग्राहक भी नफे में रहेगा, सरकार भी और ऑपरेटर भी – ट्रेफिक वाल्यूम से कमायेंगे वे। (दर में कम्पीटीशन के मारे चूस नहीं पायेंगे! :) )

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  2. पहले ये देखा जाऐ की बोली लगाई किन लोगो ने है, उम्‍मीद से ज्‍यादा देने वाले ये लोग वसूलेगे भी ज्‍यादा से ज्‍यादा……सतीश कुमार चौहान भिलाई

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  3. इलेक्ट्रीसिटी ऐक्ट में विजन भर है। मैं प्रधानम्ंत्री बनूँ तो पहला हस्ताक्षर रेलवे के विनिवेश पर करूँगा। (दिल को बहलाने को …. ) पूरा इसलिए नहीं लिख रहा कि किसी ब्लॉगर विद्वान ने ये लिखा है – ग़ालिब का यह शेर बहुत लोग ग़लत जानते हैं। कोई अर्थशास्त्री तो नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता है कि सरकार को कमाई कम हुई है। बहुत सम्भावनाएँ हैं इस क्षेत्र में – यहाँ तक कि ऑफिस जाना बन्द करा कर घर से काम करा ले।

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  4. अभी देखते जाईये, एक दशक बाद संचार में भी बिजली जैसी कटौती होगी । दिन में 5 घंटे की घोषित कटौती । तब बैक अप के लिये कबूतर इत्यादि रखने पड़ेंगे ।दीपक जी की लघु कथायें बहुत ही सुन्दर लगीं । सारी पढ़ डालीं । अच्छा लिखने के लिये बधाई ।

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  5. वैसे ये पैसा भी इस लिए आ गया की कुछ इमानदार लोगों की इस बोली पर पैनी नजर थी और अगर ऐसा नहीं रहा होता तो इसमें से 75% पैसे का बन्दर बाँट हो जाता / इसके बाद इतना तो कह सकते हैं की जिन्दा इंसानियत और ईमानदारी को हार्दिक सलाम / विचारणीय प्रस्तुती / हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

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  6. सड़ल्ली विद्युत सेवा दिल्ली में जोरका का झटका देने वाली है अभी अभी अख़बार में पढ़ा कि ये सड़ल्ली सेवा ४० % महंगी होने जा रही है |

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  7. विद्युत परियोजनाओं का निजीकरण राजनैतिक चुहलबाजी और भ्रष्टाचार के चलते ढुलमुल हो गया वरना योजनायें क्रान्तिकारी थीं. आपको एनरॉन तो याद ही होगा और वैसी ही जाने कितनी योजनायें….शायद एक बार फिर आँधी आये क्यूँकि पिछली योजना तो अब निचुड़ चुकी है और कोई रस न बचा, इसलिए उम्मीद है कि नये रस की तलाश में कुछ नई क्रान्ति आये और भूले से फलिभूत हो जाये.उसी का इन्तजार है. जब तक बेसिक इन्फ्रास्टर्कचर के स्तम्भ ठीक न होंगे, याने, परिवहन, सड़क, पानी, बिजली, संचार (और सुरक्षा)- अकेले संचार क्रांति क्या करेगी. डिसबेलेन्सिंग हमेशा पछाड़ ही देती है.

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  8. बिजली के क्षैत्र में और रेल में दोनों में अपार संभावनाएँ हैं, जनता को सुविधा चाहिये, सुविधा के लिये जनता पैसे खर्चने से पीछे नहीं है, साथ ही इन दोनों उद्योगों में जबरदस्त तकनीकी बदलाव की जरुरत है। शायद निजीकरण इसका एक अच्छा विकल्प हो, और हम तो निजीकरण का समर्थन करते हैं, कम से कम विकास तो जल्दी होगा।

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  9. टेलीफोन और रेल दोनों बिकाऊ आइटम हैं। बिजली अभी चोरी में कबाड़ने का। पहले इसे बिकाऊ तो बनाया जाए। उस क्षेत्र में तकनीकी विकास की जबर्दस्त आवश्यकता है। वैसे भी स्रोत संकट सब से अधिक ऊर्जा क्षेत्र में ही है।

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  10. आर्थिकी विषयों पर आपकी पोस्ट जानकारी और विचार बिंदु देती रहती है -हिन्दी की सेवा सहज होनी चाहिए -सेवा करने के अहसानी भाव से नहीं !

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