उस दिन शिव कुमार मिश्र ने आश्विन सांघी की एक पुस्तक के बारे में लिखा, जिसमें इतिहास और रोमांच का जबरदस्त वितान है। सांघी पेशेवर लेखक नहीं, व्यवसायी हैं।
कुछ दिन पहले राजीव ओझा ने आई-नेक्स्ट में हिन्दी ब्लॉगर्स के बारे में लिखा जो पेशेवर लेखक नहीं हैं – कोई कम्प्यूटर विशेषज्ञ है, कोई विद्युत अभियंता-कम-रेलगाड़ी प्रबन्धक, कोई चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट, कई वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रबन्धक और टेक्नोक्रेट हैं। और बकौल राजीव टॉप ब्लॉगर्स हैं।
मैं मिला अपने मुख्य वाणिज्य प्रबन्धक श्री गौतम शंकर बैनर्जी से। श्री बैनर्जी के खाते में दो उपन्यास – Indian Hippie और Aryan Man; एक कविता संग्रह – Close Your Eyes to See हैं; जिनके बारे में मैं इण्टरनेट से पता कर पाया। उनकी एक कहानी Station Master of Madarihat पर श्याम बेनेगल टेली-सीरियल यात्रा के लिये फिल्मा चुके हैं। वे और भी लिख चुके/लिख रहे होंगे।
इण्डियन हिप्पी मैने पढ़ी है। सत्तर के दशक के बंगाल का मन्थन है – उथल पुथल के दो परिवर्तन चले। अहिंसात्मक हिप्पी कल्ट और हिंसामूलक नक्सलबाड़ी आन्दोलन। दोनो का प्रभाव है इस पुस्तक में और पूरी किताब में जबरदस्त प्रवाह, रोमांच और पठनीयता है। श्री बैनर्जी ने अपनी दूसरी पुस्तक आर्यन मैन के बारे में जो बताया, उससे आश्चर्य होता है कि यह रेल प्रबन्धक कितना सशक्त प्लॉट बुनते हैं।
उनसे मैने उनकी पुस्तक आर्यन मैन के संदर्भ में पूछा, एक पूर्णकालिक लेखक और आप जैसे में अन्तर क्या है? बड़ी सरलता से उन्होने कहा – “ओह, वे लोग समाज में जो है, उसे कॉपी करते हैं; हम वह प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसे समाज कॉपी कर सके (They copy the society, we can write what society can copy)।”
क्या प्रतिक्रिया करेंगे आप? यह अहंकार है श्री बैनर्जी का? आप उनसे मिलें तो पायेंगे कि कितने सरल व्यक्ति हैं वे!
और मैं श्री बैनर्जी से सहमत हूं। प्रोफेशनल्स के पास समाज की समस्यायें सुलझाने की सोच है।

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hi gautam, good to hear from you again. Rgds: Tim, Australia
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धन्यवाद श्री टिम बैरेट, मैं श्री बैनर्जी तक यह टिप्पणी प्रेषित करने का यत्न करूंगा।
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@1984695258602759762.0" पर पिछले कई दशकों से लेखन में समाज को लीड देने का अभाव स्पष्ट नजर आता है"सहमत हूँ..
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They copy the society, we can write what society can copy)अच्छा लगा यह quote.कई अच्छे लेखक हैं जिन्हें अपने लेखन से मुनाफ़े से कोई मतलब नहीं।यदि लाभ हुआ, तो बोनस माना जाए। बिना मज़बूरी के जो लिखते हैं वे ऐसा सोच सकते हैं।journalism और literature में काफ़ी जर्क होता है।मुझे इस quote में घमंड या अहंकार बिल्कुल नही दिखा।श्री बनर्जी को हमारी शुभकामनाएं और उनसे परिचय कराने के लिए धन्यवाद।जी विश्वनाथ
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परिचय और परिचय कराने की शैली दोनों अच्छी है.
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