अस्थि-पंजर ढ़ीले हैं उन चौकियों के। बीच बीच के लकड़ी के पट्टे गायब हैं। उन्हे छोटे लकड़ी के टुकड़ों से जहां तहां पैबन्दित कर दिया गया है। समय की मार और उम्र की झुर्रियां केवल मानव शरीर पर नहीं होतीं। गंगा किनारे पड़ी चौकी पर भी पड़ती हैं। शायद रामचन्द्र जी के जमाने में भीContinue reading “दो चौकियां”
Monthly Archives: Oct 2010
व्यक्तित्वनिष्ठ आचारसंहिता छद्म है
आपको भाषाई छद्म देखने हैं तो सब से आसान जगह है – आप ब्लॉगर्स के प्रोफाइल देखें। एक से बढ़ कर एक गोलमोल लेखन। उनकी बजाय अज़दक को समझना आसान है। हम बेनामी हों या न हों, जो हम दिखना चाहते हैं और जो हैं, दो अलग अलग चीजें हैं। इनका अंतर जितना कम होताContinue reading “व्यक्तित्वनिष्ठ आचारसंहिता छद्म है”
भाग ४ – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ
यदि आपको गाडियों का शौक है तो अवश्य एक बार वहाँ (कैलीफोर्निया) हो आइए। कारों की विविधता, गति, शक्ति और अन्दर की जगह और सुविधाएं देखकर मैं तो दंग रह गया।शायद ही कोई है जिसके पास अपनी खुद की कार न हो। औसत मध्यवर्गीय परिवार के तो एक नहीं बल्कि दो कारें थी। एक मियाँContinue reading “भाग ४ – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ”
नयी सुबह
हनुमान जी अपने मन्दिर में ही थे। लगता है देर रात लखनऊ से लौट आये होंगे पसीजर से। लखनऊ जरूर गये होंगे फैसला सुनने। लौटे पसीजर से ही होंगे; बस में तो कण्डक्टर बिना टिकट बैठने नहीं देता न! सूर्जोदय हो रहा था। पहले गंगा के पानी पर धूमिल फिर क्या गजब चटक लाल।Continue reading “नयी सुबह”