आपने द वर्ल्ड इज फैट नहीं पढ़ी? 2010 के दशक की क्लासिक किताब। थॉमस एल फ्रीडमेन की द वर्ल्ड इज फ्लैट की बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़ देने वाली किताब है। नहीं पढ़ी, तो आपको दोष नहीं दिया जा सकता। असल में इसका सारा रॉ-मेटीरियल तैयार है। बस किताब लिखी जानी भर है। आपका मन आये तो आप लिख लें!
पिछले दशक में मोटे (ओवरवेट) और मुटल्ले (ओबेस) लोगों की संख्या दुनियाँ में दुगनी हो गयी है। अब 13 करोड मोटे/मुटल्ले (मोटे+मुटल्ले के लिये शब्द प्रयोग होगा – मोटल्ले) वयस्क हैं और चार करोड़ से ज्यादा बच्चे मोटल्ले हैं।
मोटापा अपने साथ लाता है एक बीमारियों का गुलदस्ता। मधुमेह, दिल का रोग और कई प्रकार के केंसर। अनुमान है कि ढ़ाई करोड़ लोग सालाना इन बीमारियों से मरते हैं। मानें तो मोटापा महामारी (epidemic) नहीं विश्वमारी (pandemic) है।
मोटापे की विश्वमारी को ले कर यह विचार है कि धूम्रपान में कमी का जो लाभ लाइफ स्पॉन बढ़ाने में हुआ है, वह जल्दी ही बढ़ते वजन की बलि चढ़ जायेगा। मोटापे को ले कर केवल स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंतायें ही नहीं हैं – इसका बड़ा आर्थिक पक्ष भी है। कई तरह के खर्चे – व्यक्ति, समाज, उद्योग और सरकार द्वारा किये जाने वाले खर्चे बढ़ रहे हैं।
मेकिंजे (McKinsey) क्वार्टरली ने चार्ट-फोकस न्यूज लैटर ई-मेल किया है, जिसमें मोटापे की विश्वमारी (महामारी का वैश्विक संस्करण – pandemic) पर किये जा रहे खर्चों के बारे में बताया गया है। मसलन ब्रिटेन में मोटापे से सम्बन्धित रोगों पर दवाइयों का खर्च £4,000,000,000 है। एक दशक पहले यह इसका आधा था। और यह रकम 2018 तक आठ बिलियन पाउण्ड हो सकती है।
पर जैसा यह न्यूजलैटर कहता है – खर्चा केवल दवाओं का नहीं है। दवाओं से इतर खर्चे दवाओं पर होने वाले खर्चे से तिगुने हैं। मसलन अमेरिका $450 बिलियन खर्च करता है मुटापे पर दवाओं से इतर। जबकि दवाओं और इलाज पर खर्च मात्र $160 बिलियन है।
इन दवाओं से इतर खर्चे में कुछ तो व्यक्ति स्वयम वहन करते हैं – भोजन, बड़े कपड़े, घर के सामान का बड़ा साइज आदि पर खर्च। कई खर्चे उनको नौकरी देने वालों को उठाने पड़ते हैं – उनकी ज्यादा गैरहाजिरी, कम उत्पादकता के खर्चे। साथ ही उनको काम पर रखने से उनके लिये स्थान, यातायात आदि पर खर्चे बढ़ जाते हैँ। ट्रेनों और बसों को बड़ी सीटें बनानी पड़ती हैं। अस्पतालों को ओवरसाइज मशीनें लगानी पड़ती हैं और बड़ी ह्वीलचेयर/स्ट्रेचर का इंतजाम करना होता है। यहां तक कि उनके लिये मुर्दाघर में बड़ी व्यवस्था – बड़े ताबूत या ज्यादा लकड़ी का खर्च भी होता है!
— देखा! मोटल्लत्व पर थॉमस फ्रीडमैन के क्लासिक से बेहतर बेस्टसेलर लिखा जा सकता है। बस आप कमर कस कर लिखने में जुट जायें! हमने तो किताब न लिखने की जिद पकड़ रखी है वर्ना अपनी नौकरी से एक साल का सैबेटिकल ले कर हम ही ठेल देते!
मेरा मोटापा –
मेरा बी.एम.आई. (Body-Mass-Index) 28 पर कई वर्षों से स्थिर है। पच्चीस से तीस के बीच के बी.एम.आई. वाले लोग मोटे (overweight) में गिने जाते हैं और 30-35 बी.एम.आई. वाले मुटल्ले (obese)| मोटे होने के कारण मुझे सतत उच्च रक्तचाप और सर्दियों में जोड़ों में दर्द की समस्या रहती है। अगर यह बी.एम.आई. <25 हो जाये (अर्थात वजन में आठ किलो की कमी) तो बहुत सी समस्यायें हल हो जायें।
दुनियाँ मुटा रही है। मुटापे की विश्वमारी फैली है। लोग पैदल/साइकल से नहीं चल रहे। हमारा शरीर मुटापे से लड़ने के लिये नहीं, भुखमरी से लड़ने के लिये अभ्यस्त है। अत: भोजन ज्यादा मिलने पर ज्यादा खाता और वसा के रूप में उसका स्टोरेज करता है। समाज भी मुटापे को गलत नहीं मानता। लम्बोदर हमारे प्रिय देव हैं!
स्वाइन फ्लू को ले कर हाहाकार मचता है। लेकिन मुटापे को ले कर नहीं मचता!
ये ऑरेंज कलर की शर्ट पहने हुए मोटूराम जी आपने बनाए हैं?
इनके हाथ कहीं नज़र नहीं आ रहे.
पता नहीं मैं यह सब ही क्यों ढूंढता रहता हूं:(
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ओह, टांगें हैं, पांव भी नहीं हैं। कान भी नजर नहीं आते। मुझे तो बस पेट दिखाने से मतलब था!!
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खैर, हमारा क्या लेना देना इस दुनिया से. 🙂
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🙂
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‘ब्रिटेन में मोटापे से सम्बन्धित रोगों पर दवाइयों का खर्च £4,000,000,000 है। ’
अंदाज़ा लगाइये कि कितनी आमदनी है….. और जब इतनी आमदनी है तो मोटापा बढेगा ही 🙂
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यह अनुपात व्यक्ति के तौर पर शायद न निकले, पर राष्ट्र के स्तर पर निकाला जा सकता है। – ज्यादा जीडीपी, ज्यादा मोटे!
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मोटेरामों की खैर नहीं 🙂 , भले ही वे प्रेमचंद की कहानी के पात्र बने हों !
जानकारी सह चुहल भरी पोस्ट !
और यह नगद मामला रहा कि वर्डप्रेस आगमन एक नयी उमंग बिखेर रहा है !
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हां, वर्डप्रेस बेहतर इण्टरेक्टिविटी के लिये चुना है मैने। अन्यथा ब्लॉगस्पॉट अन्य मामलों में बेहतर लगता है।
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Gyanji,
Interesting post.
My ideal weight is supposed to be 67 kg.
My weight flucutuates between 70 and 74 kg
When it reaches 74, I start dieting.
I have tried everything to reduce weight.
Yoga, avoiding rice after sunset, eating more salads, sharply cutting down on sweets and fried items,reducing sugar intake by over 50 percent, daily walks, but it’s no use.
The weight simply does not do down below 70 kg whatever I do.
After denying myself the pleasures of eating, I slowly get frustrated and start indulging again till the figure of 74 is reached. I then positively feel physcially heavy and mentally guilty and uncomfortable at 74 Kg.
I then restart the cycle of self – punishment by denying myself all the nice food that I crave and eat.
Over eating is part of our culture. We overfeed our guests during ceremonial occasions.
Refusal to partake of food at your host’s place is considered impolite.
The new economy has made matters worse.
We eat too much junk food.
But this is only a weak attempt to justify what I am doing.
I see no solution to this problem in the near future.
I am suspicious of drugs that induce weight loss.
How nice it would be if we could donate “flesh” and consequently reduce some weight just as we donate blood!
Regards
GV
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मैं भी पहले इसी तरह वजन की एक रेंज में ऑसिलेशन (Oscillation) किया करता था। तब मैं अपर लिमिट पर अपने को स्थिर बना गया। कौन बार बार करैक्टिव एक्शन ले!
पर अब लग रहा है कि वह अपर लिमिट कष्ट देने लगी है। घुटनों में दर्द होने लगा है। लगता है अपनी स्टडी-स्टेट कम वजन पर लानी होगी! 😦
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इस विषय पर भी इतने रोचक और सुन्दर ढंग से लिखा जा सकता है,कि दिमाग थिंकिंग मोड में पहुंचे बिना न रह पाए…..बस ठुड्डी पर हाथ धरे सोच रही हूँ…
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अब मैं अंग्रेजी में McKinsey के बारह पन्ने के आर्टीकल का हिन्दी तर्जुमा पेश करता तो उसे पढ़ने वाले न होते। या मात्र “आपने बहुत गम्भीर और सामयिक विषय पर ज्ञानवर्धन किया। धन्यवाद!” छाप टिप्पणी दे कर सटकते हिन्दी के पाठक। पाठक को बान्धना बहुत बड़ी चुनौती है। इस ब्लॉग यात्रा में बहुधा मैं फेल होता रहा हूं। अत: बहुत ज्यादा गरिष्ट ठेलने से बचने लगा हूं।
अब यहां यह देख कर अच्छा लग रहा है कि पाठक स्वयं विषय डेवलप कर रहे हैं। मुझे मात्र विषय छेड़ना पड़ा है!
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वाह , उचित ही है यह विचार-साम्य : [ हास्य गम्भीर बात कहने का एक तरीका है। ~ टी एस इलियट।] , अकारण नहीं इतने हास्य-बोधी चिन्ह अर्थपूर्ण हो चले हैं !! 🙂
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यह साम्य मैने भी नोटिस नहीं किया था! 🙂
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मोटापा …………….. मै लगभग १५०-१६० किलो करीब का हूं . किसी भी पतले के बराबर या उससे तेज़ चलता हूं . सभी मेडिकल रिपोर्ट नार्मल है . कोई शुगर नही कोई कोलस्ट्रोल नही ,सब लिमिट मे है . मेरे बहुत से पतले हा जी पतले लोगो की बाइपास सर्जरी हो चुकी है . बहुत से पतलो को डाइविटिज है . मेरे दो तीन साथ के पतले भगवान को प्यारे हो गये है . http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/7355044.cms
और एक बात पतले इसे जरूर पढे
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ओह! यह टिप्पणी तो लीक से हट कर सोचने का मसाला देती है!!!
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अमरीका की रिसर्च है भाई, माननी तो पड़ेगी.
धीरू जी ने तो सुबह-सुबह डरा दिया.
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खबरदार! मोटापे से हो सकता है पागलपन!
http://navbharattimes.indiatimes.com/yearendershow10/2970976.cms
मोटापे से कार ऐक्सिडंट में मरने का भी खतरा!
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2626648.cms?prtpage=1
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नभाटा (या अन्य कोई अखबार), मात्र पठन सामग्री बना कर ठेलता है – इधर की भी और उधर की भी! 🙂
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हमें तो अपना बी एम आई ही नहीं पता. पुरनीया टाईप फील करने लगा मैं तो. अभी कह दूं की अपनी हाईट भी नहीं पता ठीक ठीक तो… छोडिये. नहीं तो साक्षर भी नहीं माना जाऊँगा फिर 🙂 नीरज का नाम देख-सुन के ही दौड़ने का मन होता है, दूसरों को बहुत सुना देता हूँ कि कुछ करो. खुद कुछ नहीं कर पाया ! वैसे लगता तो है कि बी एम आई लिमिट में होगी अभी.
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लम्बाई ५ फुट ७ इंच , वजन ७५ किलोग्राम >>>>>>बी एम आई इंडेक्स = २५.९
……लेकिन कोई टेंसन नहीं ….मस्त रहिये काम पर रहिये …….इट्स माई फंडा!
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अकेले में भी ऐसी बातों से बचता हूँ। डर जो लगता है। आपकी पोस्ट पढ कर तो बेहोश होते-होते बचा। मोटापे से परेशान हूँ। कारण और निदान भी जानता हूँ। जागा हुआ हूँ। कोई जगाए कैसे। जब भी कोई कोशिश करता हूँ, बीच मे ही बन्द हो जाती है। अब तो भाग्यवादी हो गया हूँ। उम्र 64 की, कद 160 सेण्टी मीटर और वजन 93 किलोग्राम। हो जाए जो होना है।
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