साइकल कसवाने का आह्लाद


बनारस में अंश के लिये साइकल कसवाई जा रही थी। अब बड़ा हो गया है वह। साइकल चलाने लायक। उसके पिताजी ने मुझे मोबाइल पर साइकल कसवाने की सूचना दी।

वे बनारस में साइकल की दूकान पर और मैं इलाहाबाद में अपने दफ्तर में। मैने कहा – जरा साइकल का चित्र तो दिखाइये!

बस कुछ मिनटों की बात थी कि उन्होने अपने मोबाइल पर लिया चित्र मुझे ई-मेल कर दिया। मैं फोटो भी देख रहा था और उस साइकल के सामने की टोकरी के बारे में बात भी कर रहा था!

आप देखें अंश और उसकी साइकल। चित्र बनारस में साइकल की दुकान से।

15022011837

और यह है रिक्शे में साइकल ले कर आता अंश:

15022011842

शाम के समय उसके पिताजी ने बताया कि अंश क्लाउड नाइन पर है! बाबा/नाना सातवें आसमान पर होते थे जब उन्हे विवाह में नई साइकल मिलती थी। अब बच्चे साइकल चलाने लायक हुये नहीं कि साइकल मिल जाती है। वे दो सीढ़ी आगे – क्लाउड नाइन पर होते हैं!

अंश का कहना है कि वह नई साइकल क्लास की फलानी लड़की को नहीं छूने देगा। वह उसे स्कूल बस में बैठने के लिये जगह नहीं देती!


दस मिनट में मैं एक सौ पच्चीस किलोमीटर दूर बच्चे के आल्हादकारी क्षणों का भागीदार बन रहा था। तकनीक का कितना कमाल है। अगले दिन आप तक वह सूचना मय तस्वीर पंहुचा दे पर रहा हूं – आप अपने को एक दशक पीछे ले जायें – यह भी कमाल नजर आयेगा!

हम अमेजमेण्ट (amazement)  के काल में जी रहे हैं। इसमें प्रसन्नता बिखरी होनी चाहिये प्रचुर मात्रा में। वह समेटने की क्षमता हममें होनी चाहिये। मेरी पीढ़ी ने वह क्षमता बरबाद कर दी। नई पीढ़ी संग्रह और भौतिकता को महत्व देने के चक्कर में वह क्षमता नजर-अन्दाज कर रहा है।

युवा वर्ग का नई साइकल कसवाने का रोमांच कहां बिला गया जी?!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

51 thoughts on “साइकल कसवाने का आह्लाद

  1. आनन्दित हुये फ़ोटो देखकर और साइकिल कसन कथा सुनकर। अपनी साइकिल यात्रा के न जाने कित्ते याद आ गये। सन 83 में 275 रुपये की पड़ी थी हीरो साइकिल । अब तो याद भी नहीं कि कितने रुपये की छूट दी थी हीरो वालों साइकिल से भारत यात्रा के नाम पर! :)

    Like

    1. अब 275 में शायद साइकल का कैरियर भर आये! भारत यात्रा के नाम पर दुकानवाला शायद कैरियर और टोकरी फ्री में लगा दे 2500 की साइकल पर!

      Like

  2. जब मैं पाँच-छः में पढ़ रहा था तब अपने बड़े भाई के साथ साइकिल कसवाने के लिए दुकान पर पूरे दिन बैठा रहा था। घर लौटने पर डाँट भी पड़ी थी। मुझे चलाने तो आता नहीं था लेकिन पिछले कैरियर पर बै्ठने का उत्साह ही जोरदार था।

    अब तो पहले से तैयार साइकिलें मिल जाती हैं लेकिन तब सारे पुर्जे अनपैक होकर सामने कसे जाते थे। नयी पीढ़ी को अब साइकिल मनोरंजन के लिए चाहिए। दूरी तय करने के लिए नहीं।

    Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started