
मैने एक पोस्ट तीन महीने पहले लिखी थी – बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस और बायोडाइजेस्टर टॉयलेट। इसमें रेलवे द्वारा बुंदेलखण्ड एक्सप्रेस में नये प्रकार के टॉयलेट्स प्रयोग में लाने के बारे में था। मैने लिखा था –
(यह बायोडाइजेस्टर) बैक्टीरिया सियाचिन ग्लेशियर पर सेना के टॉयलेट्स का ठोस अपशिष्ट पदार्थ क्षरित करने के लिये प्रयोग में लाया जाता है। इतनी सर्दी में अपशिष्ट पदार्थ क्षरित करने में अन्य कोई जीवाणु काम नहीं करता।
अब यह बेक्टीरिया रेलवे प्रयोग कर रहा है अपने ट्रेनों के टॉयलेट्स में। ट्रायल के तौर पर बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस के 23 कोच इसके प्रयोग के लिये तैयार हैं और 17 जनवरी से चल भी रहे हैं।

मुझे इसके प्रयोग के बारे में मेरे मित्र श्री अशोक मिश्र ने बताया था जो उत्तर-मध्य रेलवे के कोच और वैगनों के मुख्य अभियंता (Chief Rolling Stock Engineer) हैं।
श्री मिश्र से मैने अब उनसे इस तकनीक के कार्य करने के बारे में फीडबैक देने का अनुरोध किया।
सामान्यत: कोई भी नया प्रयोग एक दो महीने में दम तोड़ने लगता है। पर श्री मिश्र ने बताया कि उन्होने स्वयं बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस के रेक का निरीक्षण ग्वालियर में किया था। कुल तीन डिब्बों में एक एक टॉयलेट (कुल तीन) में मल डिस्पोजल रुका हुआ पाया गया। इनमें लोगों द्वारा फैंके गये पॉलीथीन के बैग और कपड़ा आदि पाये गये। एक एक लीटर की प्लास्टिक की बोतल भी फैंकी मिली।
निश्चय ही, इस प्रकार की चोकिंग होने पर बायोडाइजेस्टर काम ही नहीं कर सकता। उल्टे यह भी सम्भव है कि बेक्टीरिया अपशिष्ट के अभाव में मर ही जाये!
[पर सन्तोषप्रद बात यह थी कि नब्बे प्रतिशत टॉयलेट्स में यह प्रणाली ठीक ठाक कार्य कर रही थी। और सम्भवत: रेलवे कई अन्य गाड़ियों में यह प्रणाली लगाने की सोच रही है। उत्तर-मध्य रेलवे भी इस प्रणाली के अन्य गाड़ियों में प्रयोग के पक्ष में है।]
मुझे विश्वास नहीं हुआ कि लोग प्लास्टिक या बोतल फैंक सकते हैं टॉयलेट्स में। अत: मैने मिश्र जी से अनुरोध किया कि वे मुझे चित्र उपलब्ध करायें इन टॉयलेट्स के। और वाकई, चित्र देख कर लोगों की सिविक सेंस पर खीझ होती है।
आप एक कमोड का चित्र देखें, जिसमे बोतल डाली हुई पाई गई (बाकी चित्र नहीं लगा रहा पोस्ट पर, चूंकि वे कहीं ज्यादा अरुचि उपजाते हैं मन में!)
[ई-स्वामी की भावनाओं के अनुसार चित्र हटा दिया है।]
धन्यवाद श्रीमान जी, मैं घरेलू प्रयोग के बायो डायजेस्टर शौचालय क्रय करना चाहता हूँ। इस संबंध में मुझे जानकारी देने का कष्ट करें।
LikeLike
घरों में यह तकनीक इस्तेमाल हो रही है, कह नहीं सकता। शायद यह कम्पनी वाले बता पायें! – http://bit.ly/WgN5va
LikeLike
🙂
LikeLike
.
.
.
ऐसा होना तो नहीं चाहिये… यह हो सकता है कि बच्चों या अशक्त बीमार-वृद्धों के मामले में मल-मूत्र विसर्जन किसी और जगह करा कर कपड़े, कागज या पोलिथिन में लपेट फेंका गया हो… पानी की बोतल प्रक्षालन क्रिया के दौरान फिसल कर गिरी होंगी…
…
LikeLike
धन्यवाद। आपने सही परिप्रेक्ष्य बताया। हम तो जबरी भारतीय मानस को कोसने का अपराध कर रहे थे!
LikeLike
हम भारतीय बोतल फेंक कर चोक करने में आगे हैं बाकी तस्वीर देखना नहीं चाहते. आंख साफ़-सुथरी रखना चाहते हैं, आदत नहीं.
LikeLike
अच्छी जानकारी…
सिविक सेन्स जगाने के लिए जुर्माना और दंड की व्यवस्था होनी चाहिए !
LikeLike