इंफ्रा-रेड कैमरा और कर्षण विद्युत उपकरण का रखरखाव


हम रेलवे उपकरणों की विफलता पर एक पावरप्वॉइण्ट बना रहे थे| उस समय कर्षण विद्युत उपकरण (over head transmittion equipment – OHE)  की विफलता कम करने के लिये इंफ्रा-रेड (थर्मोग्राफिक) कैमरे के प्रयोग की तकनीक का जिक्र हमारे मुख्य विद्युत अभियंता महोदय ने किया।

मेरे अनुरोध पर उन्होने अगले दिन इलाहाबाद रेल मण्डल के एक कर्मी को मेरे पास यह कैमरा दिखाने को भेजा। इसके पहले मैने इंफ्रा रेड कैमरे का नाम सुना था और यह सोचता था कि अन्धेरे में जासूसी इत्यादि गुह्य कर्म के लिये उनका उपयोग होता होगा। पर अब पाया कि दिन के समय, कर्षण विद्युत उपकरणों के विद्युत परिवहन से गर्म होते बिन्दुओं (hot spots) की जानकारी लेने के लिये भी इनका प्रयोग होता है!

कर्षण बिजली 25 किलो वोल्ट पर रेल ट्रैक के ऊपर से गुजरती है। बिजली के इंजन का पेण्टोग्राफ इसको छूता हुआ गुजरता है और इन तारों से ऊर्जा पा कर रेल गाड़ी खींचता है। इसकी पूरी प्रणाली में अनेक उपकरण आते हैं और उनमें गुजरने वाली बिजली उनको ऊष्मित करती रहती है। कोई हिस्सा ज्यादा गर्म हो कर टूट सकता है, या अन्य खराबी उत्पन्न कर सकता है। इंफ्रा-रेड कैमरे से इन भागों का तापक्रम जांच कर समय रहते रखरखाव की प्रक्रिया की जा सकती है।

इंफ्रा-रेड कैमरे में किसी भी चित्र के दो बिन्दु तय किये जा सकते हैं। एक रेफरेंस बिन्दु, जिसके सापेक्ष अन्य बिन्दुओं का तापक्रम लिया जा सके और दूसरा चल बिन्दु। कैमरा सेट कर कर्सर घुमाते हुये विभिन्न बिन्दुओं का तापक्रम विद्युत कर्मी नोट करता चलता है। इस तापक्रम के आंकड़ों से उपकरणों की रखरखाव की जरूरत तय होती है।

मैने श्री आर. के. मेहता, मुख्य विद्युत अभियंता, उत्तर-मध्य रेलवे से पूछा कि वे इस इंफ्रा-रेड कैमरे का कितना उपयोग कर रहे हैं? श्री मेहता का कहना था कि पिछले एक साल से उनका कर्षण विद्युत विभाग इसका प्रयोग कर रहा है। सब-स्टेशन और अन्य स्थाई लोकेशन पर इसका अच्छा फीडबैक मिला है और उससे प्रिवेण्टिव मेण्टीनेंस की गुणवत्ता बढ़ी है। पर इस कैमरे से चलती गाड़ी से ऊपर के तारों का अध्ययन नहीं हो पाता। उसके लिये एक मंहगा कैमरा रिसर्च एण्ड डेवलेपमेण्ट ऑर्गेनाइजेशन ने खरीदा है और वे प्रयासरत हैं कि उस कैमरे से तापक्रम रिकॉर्डिंग सर्वप्रथम उत्तर-मध्य रेलवे पर ही हो। यह मंहगा कैमरा ट्रेन के इंजन के ऊपर लगाया जा सकता है और ट्रेन की चलती दशा में तापक्रम रिकॉर्डिग करने में यह सक्षम है। आशा करें कि यह प्रयोग भी शीघ्र होगा।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

29 thoughts on “इंफ्रा-रेड कैमरा और कर्षण विद्युत उपकरण का रखरखाव

  1. अच्छी जानकारी । रेल दुर्घटना टालने के लिये सारे उपाय किये जाने चाहिये ।

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    1. आपके दुर्घटना टालने के एम्फेसिस को मैं अनुभव कर रहा हूं। लोग दुघटना टालने को प्राथमिकता देते हैं।
      यह जरूर है कि एक कुशल संस्थान संरक्षित संस्थान होता है।

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  2. ऐसे ही कुछ और उपकरण रेलवे को प्रयोग में लाना चाहिए जिससे रेल दुर्घटनाओ से बचा जा सके ..और हमें लगता है रेलवे इस कार्य में नई-नई तकनीको की कोसिस कर रही है …

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    1. तकनीक का प्रयोग उपकरणों के रखरखाव और सेफ्टी – दोनो के लिये करना जरूरी है।
      धन्यवाद।

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  3. सतत घर्षण से मोटाई कम होने से वहाँ का तापमान बहुत अधिक हो जाता है। इससे परिचालन को मजबूती मिलेगी।

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    1. बिल्कुल, मेरे ख्याल से ऊपर के उपकरणों का तापमान लेने और प्रिवेण्टिव एक्शन से गुणवत्ता बहुत बढ़ेगी।

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  4. अच्छी जानकारी मिली…

    एक बात बहुत दिनों से पूछना चाह रही थी…

    पिछले वर्ष जब ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुआ था , उसके कुछ दिनों बाद यहाँ एक प्रदर्शनी में एन आई टी के विद्यार्थियों ने एक उपकरण बनाकर प्रदर्शित किया था,जो कि समाचार पत्र के मुताबिक रेलवे को भी दिया गया था,जांचने और उपयोग में लाने के लिए…

    उपकरण की विशेषता यह थी कि ट्रैक के साथ संलग्न यह , एक निश्चित दूरी तक किसी भी कारण ट्रैक क्षतिग्रस्त होने पर तुरंत निकटवर्ती सिग्नल सेंटर में खबर कर देता है…इसमें निश्चित दूरी भी इंगित करने की व्यवस्था रहती है कि कितने दूर पर ट्रैक क्षतिग्रस्त है….

    हमने यह सब समाचार पत्र में पढ़ा…परन्तु यह नहीं जानते कि इसका व्यावहारिक उपयोग करने पर रेलवे में कुछ हो रहा है या नहीं….

    आज देश भर में…और ख़ास करके नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जिस प्रकार से दुर्घटनाएं घटित होती हैं और रेल नहीं चलने के कारण यात्रियों को जो परेशानी होती है, यदि इस प्रकार का कोई उपकरण लगाकर रेल परिचालन अबाधित रहे, तो और क्या चाहिए…

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    1. यह और इसी प्रकार के अन्य प्रयोग अभी ड्राइंग बोर्ड या प्रयोग (experimentation) करने की दशा में हैं। पर अभी कोई नियमित प्रयोग (use) में नहीं आये हैं। उदाहरण के लिये कोहरे की दशा में सिगनल की सही स्थिति बताने वाला Fogsafe प्रयोग करने का निर्णय लिया गया है, पर उसके प्रयोग की अपनी समस्यायें हैं। माना जाता है कि चालक का ध्यान बहुत बंटेगा। (आप धीरू सिन्ह जी की टिप्पणी देखें! :) )

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  5. इनफ्रारेड कैमरों का प्रयोग विद्युत मंडल के सबस्टेशनों, ट्रांसफार्मरों व लाइनों में भी बखूबी व प्रभावी तरीके से होने लगा है. सब-स्टेशनों के कितने ही ब्रेकडाउनों को समय रहते इनकी सहायता से रोक लिया जाता है.

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    1. मुझे तो उस दिन का इंतजार है जब इंजन पर लगे 110 किलोमीटर की रफ्तार से चलते इंफ्रारेड कैमरे से तापक्रम रिकार्ड होगा। मुझे बताया गया कि वह कैमरा रु. 20-25 लाख का है।

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  6. नयी तकनीक से अवगत हुए. पेण्टोग्राफ के बारे में जाना. हमेशा से ही रेलवे के बारे में जानना अच्छा लगता था. ३ वर्ष तक इंजन में सफ़र किया करते थे. एक मुह बोली बिटिया “सुहानी” बरोडा में ट्राफ्फिक देख रही है.

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    1. अर्थात बे मन से लिखी है? :)
      मुझे भी लगा कि इन विषयों पर रोचकता बनाये रखने के लिये भाषा के नये प्रयोग करने चाहियें!

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  7. ज्यादा टेक्नालजी भी जी का जंजाल है . हाल फ़िलहाल की रेल दुर्घटनाये देख कर मुझे मह्सूस होता है लोको पाइलट अब सिन्गनल नही देखते सिर्फ़ वाकी टाकी पर निर्भर रहते है . और सबसे ज्यदा परेशानी यह मोबाईल फ़ोन से है गार्ड सहाब अपनी बातो मे मस्त है और पाइलट साहब अपनी .
    बहुत पहले ट्रेने हर स्टेशन से एक रिन्ग लेती थी जिसे चाभी कहते थे उस समय दुर्घटनाये ना के बराबर होती थी

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    1. तकनीकी दुधारी चाकू जरूर है। प्रयोग में सावधानी जरूरी है। तकनीकी प्रयोग और संरक्षा पर रेलवे में सतत मंथन चलता रहता है। रेल सुरक्षा आयुक्त का महकमा इस पर पैनी नजर रखता है और जैसा मैने पाया है, उनकी सलाह को कोई हल्के से नहीं लेता (कुड़बुड़ायें भले ही! :) )

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      1. तकनीक दुधारी तलवार है, इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ। पिछले हफ्ते ही एक जगह सिक्युरिटी गार्ड को पांच सौ रूपये का फाइन इस लिये देना पड़ा क्योंकि वह मोबाइल पर ड्यूटी के दौरान बात कर रहा था। बता दूं कि जिस जगह उसकी ड्यूटी लगी थी वह बेहद संवेदनशील जगह है, वहां बेहद अहम सर्वर रखे गये हैं जिनके बारे में जरा सी भी चूक बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकते थे। फिलहाल उस सिक्यूरिटी गार्ड ने मोबाइल लाना बंद कर दिया है। तकनीक के कारण दैनंदिन जीवन में कई सारे सुविधाओं के साथ बवाल भी आना लाजिमी है।

        रेल्वे के तकनीकी चीजों के बारे में जानना रोचक रहा।

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        1. सिक्यूरिटी गार्ड की तनख्वाह के हिसाब से 500 का फाइन तो बहुत मंहगा पड़ा होगा। उस बेचारे से सहानुभूति हो रही है!

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        2. उस सिक्युरिटी गार्ड से सहानुभूति मुझे भी है, उस अधिकारी को भी सहानुभूति थी जो मेरे सामने उसे डांटते हुए किसी सिनियर को मेल लिख रहा था। लेकिन यह कड़ाई न की जाय तो दूसरे सिक्यूरिटी गार्ड ढीले पड़ जाएं।

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  8. आम आदमी के लिए तो रेल बस एक यात्रा-साधन है. पर जानकर अच्छा लगता है कि नेपथ्य में कितने महत्वपूर्ण कार्य किये जा रहे हैं. काश, रेल-दुर्धटनाओं पर हलकान होने वाले मीडिया के पास इतना समय होता कि इन महत्पूर्ण कार्यों की भी सुध लेता.

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    1. मैं सोचता था कि रेलवे ही अपनी वेब साइट पर इस तरह की जानकारी उपलब्ध कराये। पर वहां भी नेट के प्रति आकर्षण का अभाव देखता हूं! लोग अपने काम में ही इतने हलकान हैं कि ऐसी पी.आर. को ध्यान नहीं दे पाते। :-(

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        1. देखें तो मिलता है कि रेलवे में तकनीकी प्रयोग पिछले एक दशक में बहुत बदला है। कभी कभी लगता है कि हम पीछे छूट रहे हैं।

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