भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
गंगाजी जब बरसात के बाद सिमटीं तो छोटे छोटे उथले गढ्ढे बनने लग गये पानी के। उनमें हैं छोटी छोटी मछलियां। पानी इतना कम और इतना छिछला है कि हाथों से मछलियां पकड़ी जा सकती हैं।
वे चारों हाथ से मछली पकड़ रहे थे। पकड़ना उनके लिये खेल भी था।
एक पांचवां बच्चा - लाल धारीदार टीशर्ट पहने तेजी से आया। किनारे पर उसने अपनी प्लास्टिक की बोतल (जो शायद निपटान के लिये पानी के बर्तन के रूप में प्रयोग की थी) रखी और अपनी पैण्ट को घुटने तक समेटने की फुर्ती दिखाते हुये मछली पकड़ने में जुट गया।
एक पांचवां बच्चा – लाल धारीदार टीशर्ट पहने तेजी से आया। किनारे पर उसने अपनी प्लास्टिक की बोतल (जो शायद निपटान के लिये पानी के बर्तन के रूप में प्रयोग की थी) रखी और अपनी पैण्ट को घुटने तक समेटने की फुर्ती दिखाते हुये मछली पकड़ने में जुट गया।
मछलियाँ छोटी थीं। उंगली से बड़ी न होंगी। एक मछली को तड़फते देखा। बच्चे बहुत खुश थे खेलने – पकड़ने में।
Exploring rural India with a curious lens and a calm heart.
Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges.
Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh.
Writing at - gyandutt.com
— reflections from a life “Beyond Seventy”.
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