बिठूर

बिठूर (ब्रह्मावर्त) का गंगा घाट।

बिठूर के घाट के दूसरी तरफ गंगा जी के किनारे महर्षि वाल्मीकि रहते थे। जहां राम ने सीता जी को वनवास दिया था और जहां लव-कुश का जन्म हुआ। यहीं पर ब्रह्मा जी का घाट है, जहां मिथक है कि ब्रह्माजी की खड़ाऊं रखी है। तीर्थ यात्री गंगाजी में स्नान कर ब्रह्मा जी का पूजन करते हैं।

रात गुजारने के ध्येय से आये ग्रामीण हमें बिठूर के घाटों पर भी मिले। उनमें से एक जो कुछ पढ़ा लिखा था, मुझे बताने लगा कि सर यहीं उस पार के पांच कोस दूर के गांव से आये हैं हम। रात यहीं रुकेंगे। कल कार्तिक पूर्णिमा का मेला है; उसे देख कर वापस चले जायेंगे। उसको शायद यह लगा हो कि हम सरकारी आदमी हैं और सरकार की तरह उनकी जमात के यहां रुकने पर फच्चर फंसा सकते हैं। खैर, जैसा आप भी जानते हैं, हम उस छाप के सरकारी आदमी नहीं हैं।

बिठूर के घाट पर गंगाजी में पर्याप्त पानी था। लोगों को घुमाने के लिये नावें थीं वहां और केवट हमें आवाज भी लगा रहे थे कि अगर हम चाहें तो वे घुमा कर्र ला सकते हैं। सांझ का समय था। कुछ पहले वहां पंहुचे होते तो नाव में घूमने का मन भी बनाते। पर हम धुंधलके से पहले जितना सम्भव हो, देखना चाहते थे।

चपटी कम चौड़ी ईट की इमारतें बता रही थीं कि इस जगह का इतिहास है। इमारतों के जीर्णोद्धार के नाम पर पैबन्द के रूप में नयी मोटी वाली ईटें लगा दी गयी थीं, जो बताती हैं कि आर्कियालाजिकल विभाग अपने काम में कितनी गम्भीरता रखता है।

पुरानी, कम चौड़ी ईंटों पर नई, चौड़ी ईंटों का पैबन्द।

बिठूर में आर्कियालाजिकल सर्वे आफ इण्डिया के बैंचें लगी थीं, जिनपर कोई बैठा नहीं था। लोग फर्श पर अपनी दरियां बिछा रहे थे, पर आप ध्यान से देखें तो उन बैंचों पर इतिहास पसरा कराह रहा था। बिठूर की अपनी विरासत भारत सहेज क्यों नहीं सकता?! वहां घाट, मन्दिर और पुरानी इमारतों के बीचों बीच अव्यवस्था भी पर्याप्त थी। दो मंदिरों के बीच की जगह में कहीं कहीं पेशाब की दुर्गन्ध भी परेशान करने वाली थी।

फिर भी अनेक कस्बों में जो पुराने स्मारकों की विकट दशा-दुर्दशा देखी-पायी है मैने, उससे कम थी बिठूर में। कई जगह सफाई पूरी बेशर्मी से विद्यमान थी। कुछ चीजें – सफेद-गेरुआ-पीले जनेऊ बेचते दुकानदार जो जमीन पर या तख्तों पर बैठे थे; पर्यटकों के लिये उपलब्ध नावों की सुविधा, जजमानी करता घाट का पण्डा और नदी में दीप बहाता श्रद्धालु; उस पार का प्री-पूर्णिमा का चांद और बारदरी में अड्डा जमाने की जुगत में कल होने वाले मेले के मेलहरू – एक पावरफुल एथेनिक अनुभव था।

इसलिये, फिर भी, अच्छा लगा बीस-पच्चीस हजार लोगों की जन संख्या वाले इस कस्बे को देख कर। इसके घाट, मन्दिर, गलियां, दुकानें और इमारतें, सभी मानो समय की रेत को मुठ्ठियों में भींच कर पकड़े थे और समय उनसे बहुत धीरे धीरे छन रहा था। आपाधापी के युग में जहां समय धीरे धीरे छनता हो, वे जगहें बहुत कीमती होती हैं। बिठूर भी वैसी ही एक जगह है।

यहां एक मीटर गेज का स्टेशन है – ब्रह्मावर्त। जहां छ सात साल पहले तक ट्रेन चला करती थी – जब कानपुर – फर्रुखाबाद – कासगंज – मथुरा लाइन मीटर गेज की थी और आमान परिवर्तन नहीं हुआ था। तब सम्भवत: रेल-कार चला करती थी मन्धाना से बह्मावर्त के बीच। मन्धाना लानपुर – फर्रुखाबाद लाइन के बड़ी लाइन परिवर्तन के बाद बड़ी लाइन के नक्शे पर आ गया और ब्रह्मावर्त नक्शे से गायब हो गया। मैं अपने साथी श्री एखलाक अहमद के साथ पैदल इस परित्यक्त स्टेशन तक गया और उसके सांझ के धुंधलके में चित्र लिये। कुछ लोग वहां यूं ही बैठे थे और कुछ अन्य वहां रात गुजारने के ध्येय से अपनी दरियां बिछा रहे थे।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “बिठूर

  1. इस बात की खुशखबरी दे रहें है कि बिठूर अब भारतीय रेल के ब्रोडगेज नेटवर्क पर आ गया है, नया स्टेशन बना है, ब्रह्मावर्त नाम का, पुराने स्टेशन से थोड़ा पहले ही है। वर्तमान मे दो जोड़ी मेमू का परिचालन होता है।
    अब बिठूर का rurbanization हो रहा है। आत्मा अभी भी ठेठ देहाती है, परंतु कलेवर शहरीपने का चढ़ा लिया है। कल्याणपुर बिठूर मार्ग पर कई नए नए अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स बन गए/ रहें है। जमीन के रेट पे कमीशन की अनुशंषा से तेज भाग रहे हैं।
    घाट अभी भी कनपुरीयत से भरे हैं। (अल्हड़पने, मौज मस्ती और चुहलबाजी से भरपूर)

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  2. सरसरी तौर पर पोस्ट चढ़ने वाले दिन ही देखे थे फोटो। आज सोचा जरा आराम से देखे जाय। देखे तो सोचा बता भी दें।
    बिठूर एक दिन हम भी गये थे और दो-तीन घंटा टहले थे आसपास। उस दिन सोचा था कि ज्ञानजी की तरह अपन भी टहल रहे हैं गंगा किनारे।फोटो भी लगाई थी फ़ेसबुक पर शायद।

    जनेऊ बेचने वाले की फ़ोटॊ कई हैं। कोई आप पर ब्राह्मणवादी मानसिकता के प्रचार का आरोप लगा सकता है।

    आमतौर पर आप बाहर जब भी कहीं जाते हैं तो वहीं बस जाने की भी बात करते हैं। बिठूर से साथ आपने भेदभाव क्यों किया?
    पोस्ट चकाचक है।

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    1. बिठूर में बसने का विचार तो नहीं आया मन में पर जनेऊ बेचने की दुकान खोलने का जरूर आया था! :-)

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  3. गागर में सागर भरना कोई आपसे सीखे। अच्‍छी जानकारियॉं और नयनाभिराम चित्र। मेरा निजी लाभ यह हुआ कि अब तक बिठूर को केवल झॉंसी की रानी लक्ष्‍मीबाई के सन्‍दर्भ में ही जानता था। आपने बिठूर की नई पहचान कराई।

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  4. बिठूर के इतिहास में आल्हा-रूदल की लड़ाई का जिक्र भी है।
    आल्हा गायन के प्रमुख पात्र रहे हैं वे।

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