हिन्दू धर्म की फूहड़ श्रद्धा

नवरात्रि के बाद यहां इलाहाबाद में संगम पर मूर्ति विसर्जन में रोक थी। काफी असमंजस का माहौल था। अन्तत: शायद विसर्जन हुआ।

फूहड़ हिन्दू श्रद्धा का प्रमाण।
फूहड़ हिन्दू श्रद्धा का प्रमाण।

हमारे धर्मावलम्बी मुसलमानों को दकियानूसी होने, कुराअन और हदीज़ का भाव वर्तमान समाज के परिप्रेक्ष्य में न लेने आदि के आक्षेप लगाने में नहीं चूकते। पर अपने धर्म में भी बदलते समय के अनुसार उपयुक्त बदलाव के प्रति उनमें जागृत चेतना का अभाव व्यापक दीखता है। नदी में मूर्ति-विसर्जन के कारण हो रहे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव को ध्यान में रखते हुये उन्हे मूर्तियों, हवन सामग्री और अन्य यज्ञ आदि के कचरे को निपटाने की वैकल्पिक विधि का विकास करना था। वह उन्होने नहीं किया।

न करने पर हिन्दू जनता की धर्म के प्रति फूहड़ श्रद्धा गंगा किनारे बिखरे इन मूर्तियों के अवशेषों के रूप में दिखने लगी है। शिवकुटी, इलाहाबाद में गंगा किनारे इन मूर्तियों के अवशेषों के चित्र ले रहा था तो एक 12-13 साल का बच्चा मेरे पास आया।

उसने बताया – ये मूर्ति पुल से नीचे गिराई गयी थी।

तुम्हे कैसे मालुम?

हम गये थे। उहां (संगम की दिशा में इशारा कर) बहाने की मनाही कर दी थी, तो पुल पर ले कर गये थे। नदी में गिरा दिया था।

अच्छा, नदी में बह कर आई?

हां।

उस लड़के ने मुझे महत्वपूर्ण जानकारी दी। मूर्तियां विधिवत विसर्जन की सुविधा (?) न मिलने पर लोग वैकल्पिक निस्तारण की बजाय फाफामऊ पुल से टपका गये मूर्तियां।

फूहड़ श्रद्धा! कल अगर पर्यावरण के प्रभाव में रसूलाबाद का दाह-संस्कार का घाट बन्द कर दिया जाये, तो लोग विद्युत शवदाहगृह तलाशने की बजाय लाशें कहीं पुल से न टपकाने लग जायें। फूहड़ संस्कारी हिन्दू। :sad:

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “हिन्दू धर्म की फूहड़ श्रद्धा

  1. यह घोर अन्ध श्रध्दा ही नहीं पाप भी है. प्रशासन को मूर्ति विसर्जन की समुचित व्यवस्था भी करनी चाहिए।

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  2. किसी भी नदी में किसी भी तरह का सामान नहीं डालना चाहिए. ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दू समाज जाग्रत एवम् चेतन रहा नहीं. किसी भी जल क॓ स्रोत म॓ कुछ भी डालना हाराकिरी करने जैसा है!. आप का लेख समीचीन एवम् सामयिक है.

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  3. व्यवस्था के ठेकेदारों को न तो देश की परम्पराओं की जानकारी है, न सरल जनमानस से कोई संबंध और न ही उनके पास समस्या समझने की बुद्धि और कोई हलप्रदायक सोच है। ऊपर से वे भीड़तंत्र से डरते भी हैं। विसर्जन की मूर्तियों के पदार्थ, निर्माण, प्रसार, वितरण और विसर्जन/निस्तारण के नियम निर्धारण, जानकारी और अनुपालन की ज़िम्मेदारी प्रशासन द्वारा समाज के सहयोग से निभाई जानी चाहिए। विसर्जन के लिए व्यवस्थित और सुरक्षित स्थल/घाट होने चाहिए। और यह सब होना चाहिए परम्पराओं और प्रकृति के आदर के साथ।

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  4. जबलपुर में नर्मदा नदी के किनारे में गणेश/दुर्गा प्रतिमा विसर्जन हेतु वैकल्पिक कुंड बनाये गए हैं जिससे नदियों में प्रदूषण न फैले और इस बारे में जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है कि लोग बाग़ प्रतिमाओं का विसर्जन इन्हें कुंडों में करें और इस कड़ी में काफी हद तक सफलता मिल रही है ।

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    1. यह अच्‍छी शुरूआत है. शेष भारत में भी इसे अपनाया जाना चाहि‍ए

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  5. हिंदू धर्म की खूबी यही है कि समय के साथ धीरे धीरे बदलाव की आवाज हिंदू उठाते आगे बढ़ाते रहते हैं। बदलाव के बिना ये संस्कार फूहड़ता को आगे बढ़ाएंगे। अच्छा होगा शहर से बाहर गड्ढे खुदें और उन्हीं में शहर के सारे विसर्जन हों हां मूर्ति ऐसी हो कि वो जमीन में मिल जाए।

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  6. बिना वैकल्पिक व्यवस्था बताए आपका ब्लॉग अधुरा सा है |

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    1. मूर्तियों का (या अन्य पूजा सामग्री का) अगर बहते जल में विसर्जन न सम्भव हो (जो अब जल को प्रदूषण से बचाने के सन्दर्भ में सही है) तो जला कर या री-साइकल कर विखण्डित किया जाना चाहिये।

      जलाने के लिये धार्मिक स्थलों के पास इंसीनेरेटर्स (incinerators) की व्यवस्था होनी चाहिये।
      री-साइकल के तरीके तो खोजने पड़ेंगे।

      पर आप इस विषय में मुझे कोई अथॉरिटी न मानें। (काफी पहले मैने जब गंगा किनारे सफ़ाई इनीशियेट की थी तो “धार्मिक” कचरे को जला कर और कुछ लैण्ड-फिल में निपटाया था।)

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