जात हई, कछार। जात हई गंगामाई।
जा रहा हूं कछार। जा रहा हूं गंगामाई!
आज स्थानान्तरण पर जाने के पहले अन्तिम दिन था सवेरे गंगा किनारे जाने का। रात में निकलूंगा चौरी चौरा एक्स्प्रेस से गोरखपुर के लिये। अकेला ही सैर पर गया था – पत्नीजी घर के काम में व्यस्त थीं।
कछार वैसे ही मिला, स्नेह से। गंगा माई ज्यादा बोलती नहीं हैं। उन्हे सुनने के लिये कान लगाने पड़ते हैं। धीरे धीरे बह रही थीं। सूर्य चटक उगे थे। साफ सुबह। ज्यादा सर्दी नहीं। हल्की बयार। स्नानार्थी कम थे। नावें भी कम। कोई धारा में नहीं – किनारे बंधी थीं। कल्लू की मड़ई के पीछे सूर्योदय भव्य था। कोई था नहीं मड़ई में।
मैने गंगाजी और कछार के कुछ चित्र लिये। कछार ने एक छोटे मोथा के पौधे का भी सूर्योदय में चित्र लेने को कहा। वह भी लिया। वनस्पति धीरे धीरे बढ़ रही है। जब झाड़ियां बन जायेंगी, तब उनका चित्र लेने जाने कौन आयेगा यहां! शायद कभी कभी मेरी पत्नीजी घूमें उनके बीच।
वहां अपना भी अन्तिम चित्र लेना चाहता था। पत्नीजी नहीं थीं, सो सेल्फी (Selfie) ही लेना पड़ा।
वापसी जल्दी ही की। आज घर में काफी काम निपटाने हैं इलाहाबाद से प्रस्थान पूर्व। बार बार मुड़ मुड़ कर गंगाजी और सूर्योदय देखता रहा। आखिरी बार आंखों में जितना भर सकूं, उतना समेटने के लिये!
करार पर दिखा दूर बैठा जवाहिर। उसके पास जाने के लिये नाले और कचरे को पार करना पड़ा। कऊड़ा जला रहा था, अकेले। एक हाथ में मुखारी थी। पास में बीड़ी का बंडल और माचिस। शॉल नया और अच्छा था उसके पास। उसे बताया कि अब यहां से तबादले पर जा रहा हूं। पता नहीं, उसने किस भाव से लिया मेरा कहना। जवाहिर ज्यादा कहता नहीं।
अपनी चौकी पर पण्डा थे। उन्हे भी बताया यहां से जाने के बारे में। उन्होने कन्सर्न जताया कि मेरा परिवार अकेले रहेगा यहां। इस जगह के अन्य लोगों को आगे पण्डाजी बता ही देंगे मेरे जाने के बारे में!
मलिन अपनी जगह बैठी नहीं थी कोटेश्वर महादेव के फर्श पर। उसका सामान रखा था। उसी का चित्र ले लिया याद के लिये।
भगवान कोटेश्वर महादेव और हनुमान जी को प्रणाम करते हुये घर लौटा।
बहुत लम्बा समय गंगामाई और कछार की गोद में बीता। भूल नहीं सकता। अब तो वह मेरे मन-शरीर-प्राण का अंग है।
जा रहा हूं कछार, जा रहा हूं गंगा माई। पर जाना कहां? अन्तत तो आपकी ही गोदी में ही रहना, जीना है। इस दुनियां से जाना भी आपकी गोदी से होगा!
कुछ चीज़ें जीवन से कुछ इस तरह जुड़ जाती है कि पल भर के लिए भी उन्हें आँखों से ओझल करना आसान नहीं होता। फिर हर बार यही लगता है कि जितना हो सके, जैसे भी हो, सहेज लो इन्हें अपनी आँखों में अपने मन मंदिर में कहीं छिपा लो कि तनहाई में यही यादें साथ देती है। नहीं ? आपने भी तो वही किया।
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आदरणीय ज्ञान जी,
आप बहुत छिपाते रहे अपने को । यह कह कर कि ‘कविता को हमसे रूठे जमाना हुआ’, कि ‘कविता समझ में नहीं आती’ । भरसक कोशिश की उदासीन और निर्मोही दिखने की । पर हो न सके । हो सकते नहीं । एक कंकरी के स्पर्श से जल में कितनी तरंगें उठती हैं यह तो जलस्रोत को भी ठीक-ठीक कहाँ पता होता है। यह बहुत भावपूर्ण विदा-स्तवन है माँ गंगा का ।
आज गंगा के कछार और आस-पास की वनस्पतियों और संरचनाओं को आप जिस दृष्टि से देख रहे हैं, वह भावुक कवि की दृष्टि है । शिवकुटी, गंगा तट का सूर्योदय, कल्लू की मड़ई ,मोथे का पौधा, जनवादी जवाहिर, चौकी वाले पन्डा जी और बाबा कोटेश्वर महादेव को आप ही नहीं, आपके माध्यम से अपने अंतरंग अनुभव के दायरे में ले आने वाले आपके हम सब मित्र-पाठक बहुत ‘मिस’ करेंगे ।
आप भले कुछ समय के लिए गंगा से दूर जा रहे हों पर वह गंगा जो आपकी रग-रग में रक्त बन कर संचरित हो रही है, वह तो सदैव आपके साथ रहेगी। गंगा तट पर जन्म लेना और गंगा की गोद में जगह पाना परम सौभाग्य है । आपको तो गंगा का दीर्घकालीन साहचर्य मिला है । आपसे भाग्यवान कौन होगा ।
एक बार आपके साथ गंगा के कछार पर चहलकदमी का मन है । देखें यह आकांक्षा कब पूरी होती है ।
सादर,
आपका प्रशंसक-पाठक
प्रियंकर
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गंगा माई तो अब भी आप के क्षेत्र से होकर निकलेगी। इलाहाबाद से लेकर छपरा तक। हाँ, जवाहिर आदि न मिल पायेगे, वहाँ पर।
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गंगा तीरे आपकी पोष्टो की कमी अखरेगी!
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लग रहा है जैसे हमलोग भी दूर जा रहे हैं कछार और गंगामाई से..
आपके चित्रों और लेखन के जरिये गहरा जुड़ाव हो गया था..
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सर , ये बहुत इमोशनल पोस्ट है । जिस दिन से आप के ट्रांसफर की पोस्ट पढ़ी है , मन दुखी है । मेरी कामना है कि आप जंहा भी रहें स्वास्थ्य और प्रसन्न रहें। शुभकामनायें सर ।
रेगार्ड्स-
गौरव श्रीवास्तव
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कितना मिस करेंगे ये आपके पात्रों को ये ब्लॉग और उसके पाठक … कहा नहीं जा सकता.
सफ़र जारी रखिये… आने वाले दिनों में कुछ और पात्रों से ये ब्लॉग परिचित होगा.
आपको शुभकामनाएं –
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Dear Bhaiya
Today, a very touching Blog.
May Bhagwan Koteshwar & Jagatmata Ganga bless so that the time you spend at Gorakhpur will keep you in your good health & humour.
We eagerly await for your blogs from your Gorakhpur stay.
Regards
Anand
Sent from BlackBerry® on Airtel
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“पर जाना कहां? अन्तत तो आपकी ही गोदी में ही रहना, जीना है। ”
जाना और आना एक भ्रम ही है| सुखद है तो बस एहसास जो उस एक पल में है जब आप वहाँ है| उसके बाद तो इलाहाबाद में भी रह कर भी वही है|
वैसे गोरखपुर मे भी बूढ़ी राप्ती का कछार है, गंगा हर जगह है बस उसका स्वरूप अलग अलग है|
गंगापुत्र गंगा को ढूढ़ ही लेते हैं, कहीं भी हों|
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Sir……This one is a bit emotional ….
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