लाहे लाहे नेटवर्किंग करो भाई!

IMG_20140408_184917फ़ेसबुक में यह प्रवृत्ति देखता हूं। लोगों के पास आपका कहा, लिखा और प्रस्तुत किया पढ़ने की तलब नहीं है। आप उनका फ़्रेण्डशिप अनुरोध स्वीकार करें तो दन्न से मैसेंजर में उनका अनुरोध आता है फोन नम्बर मांगता हुआ।

वे नेट पर उपलब्ध मूल भूत जानकारी भी नहीं पढ़ते। मसलन वे मेरे बारे में जानना चाहें तो मेरे ब्लॉग-फेसबुक-ट्विटर पर मेरे विषय में तो मैने इतना प्रस्तुत कर दिया है कि कभी कभी मुझे लगता है कि मैने अपने घर की दीवारें ही शीशे की बना दी हैं। यही नहीं, मन में जो भी चलता है, वह भी नेट पर है। कच्चा और अधपका विचार भी प्रस्तुत है। कुछ लोग कहते हैं यह खतरनाक है। इसका मिसयूज हो सकता है। पर जो है, सो है। मैं अपने को बदल नहीं पाता प्रस्तुति में।

But this request of phone number in nanoseconds of “friendship” puts me off! लाहे लाहे नेटवर्किंग करो भाई! इतना भला/बढ़िया नेटवर्किंग माध्यम उपलब्ध कराया है भगवान ने अपने नेटावतार में, उसका धन्यवाद दो, इज्जत करो और इण्टरनेट पर हो रहे सम्प्रेषण यज्ञ में अपनी आहुति दे कर जो परिपक्व मैत्री का फल प्राप्त हो, उसे प्रसाद की तरह ग्रहण करो।

मैत्री परिपक्व होने के लिये समय दो भाई। सीजनल सब्जी भी फलीभूत होने में महीना-डेढ महीना लेती है। यह मानवीय रिलेशनशिप का मामला है प्यारे, मैगी का टू-मिनट इन्स्टेण्ट नूडल बनाने का विकृत पाकशास्त्रीय प्रयोग नहीं!

जीवन में जितने अच्छे लोग मिले हैं, उसमें से बहुत से नेट की नेटवर्किंग के माध्यम से मिले हैं। उनकी विचारधारा, तहज़ीब, शब्दों में ताकत और दूसरे के कहे को सुनने समझने का माद्दा, विशाल हृदयता… बहुत से गुणों के धनी पाये हैं। पर नेट पर उपलब्ध सामग्री को बहुत बारीकी से ऑब्जर्व करते हैं। सर्च इंजन के सही उपयोग करते हैं। वे ऐसी सामग्री उपलब्ध कराते हैं जो आपके जीवन में वैल्यू एड करती है। आपस में बात करना तो तब होता है जब एक समझ डेवलप हो जाती है व्यक्तित्व के विषय में।

फेसबुक का अकाउण्ट बना लेना भर आपको नेटवर्किंग में सिद्धहस्त नहीं बनाता। कत्तई नहीं।

लाहे लाहे नेटवर्किंग करो भाई!!!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

24 thoughts on “लाहे लाहे नेटवर्किंग करो भाई!

  1. सलाह बड़े काम की है लेकिन जिनके काम की है उन्हें तो पहले से ही हर काम तसल्ली से करने की आदत होगी और जिनको जल्दी है उन बेचारों पर वक्त कहाँ किसी की सलाह सुनने-गुनने का। मेरे लिए फेसबुक नेटवर्किंग का साधन नहीं। जिन्हें जानता नहीं उनसे जुड़ने से बचता हूँ। ऐसे में किसी नए छद्मनामी से नेटवर्क पर जुडने से पहले उसकी पहचान फोन द्वारा दुरुस्त करने में बुराई नहीं समझता। लेकिन जैसा कि आपने कहा,आपके बारे में इतनी जानकारी अंतर्जाल पर है कि बिना मिले ही कितने ही पहचान वालों से अधिक पुरानी और गहरी पहचान लगती है। फिर भी अगर किसी को बात करने की बलवती इच्छा हो तो भी सामने वाले का नंबर मांगने के बजाय अपना नंबर भेज सकते हैं। दूसरा पक्ष बात करना ठीक समझेगा तो कॉल कर लेगा।

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  2. आप की बात सर्वथा सच है । परन्तु आज कल के इन्स्टैन्ट युग में अकल्पित नहीं है ।

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  3. हम तो आज भी आते हैं पढ्ते हैं और निकल लेते हैं पतली गली पकड के कभी फोन नम्बर मांग के तंग करने का विचार ही नही आया दिमाग मे

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  4. नेटावतार ने सभी प्राणियों को एक घाट पर खड़ा कर दिया है अन्यथा एक आल्हा अफसर और एक मातहत कर्मी के मध्य संवाद असंभव था। विचारों के मध्य समानता के आभाव में रिश्तों की धुरी अपनी जगह बनाने में ही समूल ताकत झौंक देती है ऐसे में बात को आगे बढ़ाने की कल्पना हास्यास्पद है। आपके लाहे-लाहे से सहमत हूँ। मेरी सोच में इतनी ताकत होनी चाहिए कि सामने से पूछा जाए…’आपको फोन पर कुछ कहना है मुझसे?’

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  5. हे हे हे, वैसे आपका फोन नम्बर है क्या? यहीं लिख दें तो कितना सुभीता हो जाये….. :D

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