
वह अपनी टमटम पर आया था कतरास से। पूरे चुनाव के दौरान सांसद महोदय (श्री रवीन्द्र पाण्डेय) का प्रचार किया था उसने लगभग दो हफ्ते। नाम है विद्यासागर चौहान। विकलांग है। पैर नहीं हैं। किसी तरह से टमटम पर बैठता है। उसकी आवाज में दम है और जोश भी। दम और जोश प्रचार के लिये उत्तम अवयव हैं।
विद्यासागर एक उत्तम चुनाव प्रचारक है। उसके अनूठे प्रचार को चुनाव आयोग वालों को चकित कर दिया था। उन्होने बोला – बन्द करो प्रचार या यह बताओ कि कितना खर्चा होता है्? विद्यासागर उनसे लड़ लिया। घोड़ा-टमटम मेरा। जेल भेजना हो तो भेज दो। वहां ले जाने के लिये भी मुझे घसीट कर ले जाना होगा। अपने पैरों से तो जा नहीं सकता। ज्यादा माथापच्ची नहीं की चुनाव आयोग वालों ने। प्रचार करने दिया।

मैं पांड़े जी के घर आराम कर रहा था। टमटम वाला चुनाव जीतने पर उनसे मिलने आया था। बाहर उन्होने मुझे बुलाया उससे मिलवाने के लिये। फोटो भी खिंचवाई और कहा – “अब इसके बारे में जरूर लिखियेगा। ऐसे जोश वाले लोगों के कारण ही जीता मैं। अन्यथा तो देव-दानव का युद्ध था। इस बार असुर भारी पड़ रहे थे भैया!”
मैं अठारह मई के दिन श्री रवीन्द्र पाण्डेय को सांसद बनने पर बधाई देने उनके घर फुसरो, झारखण्ड गया था। गिरिडीह से वे पांचवी बार सांसद बने हैं।
वहीं मिला यह टमटम वाला, उनके घर के बाहर।
विद्यासागर नारा लगाने लगा – “रवीन्द्र पाण्डे वित्त-मन्त्री बनो, हम तुम्हारे साथ हैं।” इसी नारे के रिस्पॉन्स में उसके पीछे बैठे उसके सहायक ने कह दिया श्रम मन्त्री तो उसको लखेद लिया। “समझते हो नहीं, वित्त-मन्त्री बनाना है!”
करतासगढ़ का विकलांग विद्यासागर। आवाज में जोश और दिमाग में सपनों का बड़ा वितान। ऐसे ही आदमी चाहियें भारत को!
मैने रवीन्द्र पांण्डेय जी से कहा – आप भी रिटायरमेण्ट जैसी बातें न सोचा करें। आपकी उम्र मुझसे कम ही है। कम से कम अगली तीन टर्म के लिये सांसदी निभानी है। और बेहतर सपनों को साकार करते हुये। विद्यासागर जैसे अनेक आपकी ओर आशा की नजर से देख रहे हैं।
आशा और स्वप्नों का भविष्य आश्वस्त करता है। जीत तो देव की ही होनी है। असुर को परास्त होना ही है।
याद रहेगा विद्यासागर। याद रहेगी उसकी जोशीली आवाज!

sir ,bahut der se mubark bad de raha hoo , so bahut -bahut Mubarakbad
.haa yad pahla aur aakhiry hi rahta hai .tamtam wale ki himmat ki dad deni padegi aise log nishkam bhavna se karya karte hai , uneh shubh kamnaye,………………………..
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विद्यासागर जैसे सामान्य व्यक्ति अपने जीवट से लोकतन्त्र के और-और खराब होते खेल में मनुष्यता का रंग भरते हैं और आम आदमी की जिजीविषा और उसके अब तक कायम भरोसे को उत्साहपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त कराते हैं । वे सांसद सचमुच भाग्यवान हैं जिन्हें विद्यासागर जी जैसे स्वतःस्फूर्त समर्थक मिले ।
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इसे कहते हैं दृढ निश्चय।
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विद्यासागर की आत्मनिर्भरता और लगन कितने ही सामान्यजन के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है। रवीन्द्र जी की सफलता के लिए आप दोनों को पुनः बधाई। आपकी इस बात से पूर्ण सहमति है कि जीत तो देववृत्ति की ही होनी है। असुरवृत्ति की पराजय तो मैं रोज़ ही देखता हूँ।
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अच्छा लगा
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