पिछली पोस्ट में शैलेश ने दीमापुर से कोहिमा की यात्रा प्रारम्भ की थी। बस में। उसके बाद :-
नवम्बर’13; 2014
इस समय मैं पूरी तरह पूर्वोत्तर के मोहपाश में हूं।

यह पिफेमा गांव है।

दीमापुर से कोहिमा जाती बस इस समय यहां सवेरे के नाश्ते के लिये रुकी है। सवेरे दस बजे। मैने जंगली सेब का नाश्ता चुना है। नाश्ते में अन्य आईटम भी हैं। रसोई में तैयार किये आईटम भी। पर अपने वजन का ख्याल रखते हुये मैने यही चुना है।
दोपहर बारह बजे तक कोहिमा पंहुच गया हूं। दोपहर की धूप में कोहिमा बहुत सुन्दर लग रहा है।
नवम्बर’14; 2014
और यह – यहां के लोग सरल हैं। मैने जिन लोगों से सम्पर्क किया, वे उससे संतुष्ट थे जो उनके पास है और उसके लिये वे ईश्वर के शुक्रगुजार भी हैं।
अगर ऐसा है तो वे अमूमन प्रसन्न लोग होने चाहियें?
हां, वे हैं। और शायद यह कारण है कि उम्रदराज होने के चिन्ह उनपर नहीं दिखाई देते।
क्या वे नहीं चाहते कि वे बाहर निकलें और पैसा कमायें?
जिनसे मैं मिला, उनको देख कर तो लगता नहीं कि वे ऐसा चाहते हैं।
उन्हे यह तो पता होगा कि बाहर निकलने पर क्या सम्भावनायें हैं। चिकित्सा की, नौकरियों की, अध्ययन की। उन्हे यह भी मालुम होगा कि बाहर निकलने में क्या विषमतायें होंगी – अज्ञात कठिन जीवन आदि?
व्यापक जानकारी तो नहीं है। पर कुछ सीमा तक है जरूर।
वे नागामीज़ बोलते हैं। नागमिया। आसान है उसे जानना। मैं धीरे बोली जाने वाली अन्ग्रेजी और नागमिया के कुछ शब्दों का प्रयोग कर काम चलाता हूं। नागामीज़ मैने बातचीत में सीखी है।
बढ़िया। कुछ लोगों के चित्र लेना। उनके बारे में जानकारी भी – नाम, परिचय और कुछ जानकारी – बाहरी दुनियां के लिये।

यह देखिये; ये ऐया (दीदी) हैं। श्रीमती जापुतो अंगामी की पुत्री।
और ये बच्चे हैं। अनाथ। जिन्हें वे पालती हैं।
अपनी सम्प्रेषण की कला की परीक्षा लेने का सबसे अच्छा तरीका है बच्चों से बातचीत करना। उनकी मुस्कान और उनका एक्टिव भाग लेना बातचीत में यह बताता है कि आपको बातचीत करने में सफलता मिल रही है।
जापुतो अंगामी को ’मदर’ कहा जाता है। वे कोहिमा राजकीय अस्पताल में नर्स थीं। एक बार एक महिला की बच्चा जनते समय मृत्यु हो गयी और उसका दुखी मर्द डर कर भाग गया। जापुतो ने बच्चे को पालने का बीड़ा उठाया। और उससे शुरुआत हुई एक महिला द्वारा चलाये जा रहे अनाथाश्रम की। अनाथ बच्चे – जिनमें बहुत से नागालैण्ड के विद्रोह का शिकार थे। सन 2009 की यह रिपोर्ट बताती है कि उस समय वहां लगभग 80 बच्चे थे, जिसमें से 29 विद्रोह से प्रभावित बच्चे थे।
जापुतो का देहावसान 2011 में 87 वर्ष की अवस्था में हुआ।
जापुतो की पुत्री नेब्युन्युओ उनके कामकाज में हाथ बटाती थीं, अब वे यह काम देखती हैं।
शैलेश ने इसके बाद राजधानी कोहिमा से आगे नागालैण्ड के एक गांव की यात्रा की। उसका विवरण भाग – 5 में।
वाह जबरदस्त, पूर्वोत्तर पर पढ़ना हमेशा ही रोचक होता है, क्योंकि यहाँ के बारे में बहुत ही कम लिखा गया है, वैसे यहाँ पर और भी जानकारियों का इजाफा कीजिये, जिससे अगले यात्री को सुविधा हो, मसलन कि कहाँ रुके..
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बढ़िया है। आइये! बगल में ही त्वेनसांग है, यही हूँ। कोहिमा से यहां तक की यात्रा में एक किताब लिख लेंगे आप, इतना कुछ है। 😊
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अरे, एक और बनारसी वहां! काहे भटक रहे हो, बन्धु! 🙂
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बहुत अच्छा जुगलबंदी रिपोर्ताज।
मन कर रहा है यात्रा पर निकलने का।
अगली किस्त का इन्तजार है।
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