गोण्डा – बलरामपुर बड़ी लाइन

गोण्डा-बलरामपुर-तुलसीपुर-बढ़नी – यह लगभग 115 किलोमीटर का छोटी लाइन का खण्ड हुआ करता था रेलवे का। छोटी लाइन से बड़ी लाइन के आमान (गेज) परिवर्तन का काम चलने के लिये बन्द था। काम पिछले साल के दिये अनुमान के अनुसार यह मार्च महीने में पूरा होना था, पर जब यह लगने लगा कि उससे ज्यादा समय लगने जा रहा है इसके पूरा होने में; तो नये आये पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबन्धक श्री राजीव मिश्र ने खण्ड का निरीक्षण कर स्वयं आकलन करने का निर्णय किया। उनके साथ हम थे विभिन्न विभागों – ट्रैक,  विद्युत, परिचालन, वाणिज्य, सिगनलिंग, संरक्षा और निर्माण के प्रमुख। लखनऊ मण्डल – जिसके अन्तर्गत यह खण्ड आता है – के मण्डल रेल प्रबन्धक और उनके अधीनस्थ शाखा-अधिकारी भी साथ थे। काफी अहमियत थी इस निरीक्षण की।

पहले चरण में गोण्डा से बलरामपुर का निरीक्षण था। इस खण्ड में  बड़ी लाइन का ट्रेक बिछाने का काम पूरा हो चुका था। एक इंजन के साथ निरीक्षण यान में हम लोग रवाना हुये गोण्डा से। सवेरे आठ बजे। सर्दी कम हो गयी थी। कोहरे का मौसम लगभग खत्म था। कोहरा नहीं था पर सवेरे की हल्की धुन्ध थी वातावरण में। चूंकि खण्ड यातायात के लिये खुला नहीं था, अत: पूरी सावधानी बरतता हुआ इंजन 15-20 किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ़्तार से चल रहा था। रास्ते में हम लोग यह देख रहे थे कि कितना निर्माण काम हो गया है और कितना करना शेष है। क्या है, जो छोड़ दिया गया है और उसे किया जाना जरूरी है। हम सभी अपने अपने प्रकार से अपनी नोटबुक्स खोले हुये थे और अपने ऑबर्वेशन्स नोट कर रहे थे।

उन सभी में मेरा देखना-नोट करना शायद थोड़ा सा भिन्न था। मैं रेलवे लाइन और स्टेशनों के अलावा दांये बांये खेत, वृक्ष, लोग, वाहन आदि को देख भी रहा था, अपने नोट बुक में उनके बारे में आ रहे विचार नोट भी कर रहा था और यदा कदा चित्र भी ले रहा था। निरीक्षण यान में पीछे ट्रेक की ओर पटरी को देखने के लिये खिड़की बनी रहती है – अत: चित्र लेने के लिये अतिरिक्त सहूलियत थी। एक रेल अफ़सर के लिये यह अनुभव था ही, एक ब्लॉगर के लिये उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण अनुभव था।

कई स्थानों पर स्टेशनों की लूप लाइनें जोड़ी जानी बाकी थीं – यद्यपि उनके लिये पटरी बिछाने की तैयारी हो गयी थी और रेल (रेल के प्वाइण्ट या कांटे भी) पास में थी बिछने की प्रतीक्षा में। स्टेशनों की इमारतों में किये जाने वाले बदलाव भी चल रहे थे। पुरानी मीटर गेज की पटरी उखड़ चुकी थी, कई स्थानों पर वह हटा दी गयी थी और कई जगह पटरी-स्लीपर्स ढेर में जमा थे। बड़ी लाइन के सिगनल पोस्ट लग गये थे। पुराने मीटर गेज के बाजू वाले सिगनल कहीं उखाड़ दिये गये थे, पर कहीं कहीं अभी भी खड़े थे – इस खण्ड का इतिहास बताते। कुछ ही दिनों में उनका धराशायी होना तय है।

यह गन्ना बहुल क्षेत्र है। पटरी के दोनो ओर गन्ना और सरसों के खेत बहुतायत से दिखे। बैलगाड़ी में गन्ना ले जाया जाता दिखा एक दो जगह। पर अधिकांशत: ट्रेक्टर टॉली में लदा ही दिखा। खेती में पशुओं की भूमिका नगण्य़ हो गयी है – होती जा रही है। ट्रेक्टर इधर उधर चलते दिखेाले

बहुत समय से बन्द इस खण्ड पर पहली बार एक इन्जन और डिब्बा चल रहा था। कौतूहल से आसपास के गांव वाले अपने खेतों से तथा लेवल क्रॉसिंग फाटकों पर झुण्ड बनाये हम लोगों का जाना देख रहे थे। हमारी ट्रेन पास होने पर पटरी पर छोटे बच्चे दौड कर निरीक्षण यान का पीछा करते। हाथ भी हिला कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे वे।

प्रसन्नता? हां। वे सभी प्रसन्न दिखे मुझे।

मैं पॉल थरू का ट्रेवलॉग पढ़ रहा था लातीनी अमरीका की ट्रेन यात्रा का। ग्वाटेमाला में ग्रामीण गरीब और दुखी-मायूस लगते थे। हंस बोल नहीं रहे थे और अजनबी को शंका की दृष्टि से देखते थे। … यहां मुझे ग्रामीण प्रसन्नता-कौतूहल और अपेक्षा से हम लोगों को देखते मिले। आंखों में चमक थी। … जय हो भारत। जय हो पूर्वांचल।

गोण्डा-बलरामपुर का क्षेत्र पूर्वांचल का देहाती-पिछड़ा-गरीब क्षेत्र है। पर मैने उन बच्चों को देखा तो पाया कि लगभग सब के सब के पैरों में चप्पल या जूता था। सर्दी से बचाव के लिये हर एक के बदन पर गर्म कपडे थे। कुछ तो स्वेटर के ऊपर नेपाल के रास्ते आने वाले जैकेट भी पहने थे। अधिकांश के पैरों में फुलपैण्ट थी। … मुझे अपना बचपन याद आया। गांव में मेरे पास एक मोटा कुरता भर था। तरक्की और खुशहाली बहुत आ गयी है तब से अब तक। लोग प्रसन्न भी दिखे। पर शायद अपेक्षायें भी कई गुना बढ़ गयी हैं – तभी तो नहीं जीती कांग्रेस चुनाव में।

मैं पॉल थरू का ट्रेवलॉग पढ़ रहा था लातीनी अमरीका की ट्रेन यात्रा का। ग्वाटेमाला में ग्रामीण गरीब और दुखी-मायूस लगते थे। हंस बोल नहीं रहे थे और अजनबी को शंका की दृष्टि से देखते थे। … यहां मुझे ग्रामीण प्रसन्नता-कौतूहल और अपेक्षा से हम लोगों को देखते मिले। आंखों में चमक थी। … जय हो भारत। जय हो पूर्वांचल।

हो सकता है पॉल थरू एक मिस-एन्थ्रॉप ( misanthrope – मानव और समाज को गलत समझने-मानने वाला) हों और सवेरे का खुशनुमा सर्दी का मौसम मुझे नैसर्गिक प्रसन्नता दे रहा हो – इस लिये हम दोनों की ऑजर्वेशन में अन्तर हो। पर गोण्डा और ग्वाटेमाला की गरीबी में अन्तर जरूर है। इस पर और सोचने की आवश्यकता है।

रास्ते में एक स्टेशन पड़ा – इंटियाथोक। बहुत से लोग जमा थे वहां पर। एक ब्लॉक हट पर भी कई लोग थे। इन जगहों पर पटरी और प्लेटफार्म का काम प्रगति पर था। जल्द ही पूरा होगा। इस निरीक्षण के दबाव में तो और जल्दी ही होगा।

आगे इंटियाथोक और बलरामपुर के बीच रेल पटरी कुछ जंगल के इलाके से गुजरती है। तरह तरह के वृक्ष थे। ढाक के वृक्ष अपने चौड़े पत्तों और वृहद आकार के कारण पहचान में आ रहे थे। उसके बाद पटरी के किनारे बलरामपुर की चीनी मिल दिखी। काम कर रही थी। इस लाइन के ब्रॉड गेज में आने पर चीनी मिल का उत्पाद रेल वैगनों से गंतव्य तक जा सकेगा। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के इस कर्म क्षेत्र में शायद समृद्धि आये बलरामपुर के बड़ी लाइन पर आने से। उनके नाम से छब्बीस जनवरी 25 दिसम्बर को चली सुशासन एक्स्प्रेस तो बलरामपुर तक आयेगी ही।

बलरामपुर में स्टेशन का निरीक्षण हुआ। स्टेशन पर नये कमरे भी बने हैं और अन्य सुविधाओं का नवीनीकरण/विस्तार हो रहा है। नया होने से कुछ चीजें शायद एण्टीक हो जायें। एक कमरे में लगा अंगरेजों के जमाने का सीलिंग फैन मुझे वैसा ही लगा।

नयी पटरी, नयी सुविधायें, नयी सम्भावनायें। सुशासन आयी हो। हाली हाली आयी, सुशासन आयी!!

(गोरख पाण्डेय की कविता ‘समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई’ की तर्ज पर; “सुशासन आई बबुआ हाली-हाली आई। रेलवा से आई हो, पटरिया पर आई। सुशासन आई हो, हाली-हाली आई।”)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “गोण्डा – बलरामपुर बड़ी लाइन

  1. अच्छा लगा यह लेख पढ़ कर…
    सरसों और गन्ने के खेतों की तस्वीरें भी होतीं तो और भी मजा आ जाता।

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  2. गोण्डा-बहराइच की बड़ी लाइन के संबंध में यदि आप हमें बता पावें तो, वैसे सीधे सवाल पूछ लेना थोड़ा अजीब है( पर सकुचाते हुए ही सही) पर आप बतावें। इसके लिए अग्रिम आभार..!!

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      1. जी भूगोल का विद्यार्थी नहीं रहा, पर जहाँ तक जानता हूँ, बहराइच बलरामपुर से विपरीत दिशा में है। गोण्डा से मैलानी या नेपालगंज रोड़ वाली छोटी लाइन है।

        कभी वहाँ पिछले से पिछले चुनावों में काँग्रेस से राहुल गए थे, तब बड़ी लाइन के बारे में कुछ शब्द कहकर लौट आए। अभी बीते अप्रैल रेल्वे ओवर ब्रिज बनकर तइयार हुआ है।

        अगर इस संबंध में कुछ जानकारी आपके निकट हो तो..यही पूछना चाह रहा था..:)

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        1. गोण्डा से बलरामपुर-बढनी और गोण्डा से बहराइच का आमान परिवर्तन होना है।
          गोण्डा से बलरामपुर की लाइन जल्दी खुलने की सम्भावना है। उसके आगे भी बढ़नी तक खुलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
          गोण्डा-बहराइच खण्ड फिलहाल मीटर गेज पर चल रहा है। उसके आमान परिवर्तन के लिये लगभग 25-30% कार्य हुआ है। यह कब आमान परिवर्तन के लिये बन्द होगी और कब काम पूरा होगा, अभी मैं कह नहीं सकता।

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        2. जी बस जो थोड़ा बहुत सोचते,जीते हैं, बस उसमें से जो कह पाते हैं, वह यहाँ है। अपनी सीमाओं के भीतर उसे वैसा ही बना पाया हूँ शायद। इससे जादा कुछ नहीं। .. । इन दो बिन्दुओं में भी बहुत कुछ अनकहा रह गया होगा। बस।

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  3. सर,सुशासन एक्सप्रेस २५ दिसंबर से आंरभ हुई ।

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  4. चकाचक निरीक्षण।’ मिस इन्थराप’ की हिंदी लिखी जाये।

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