भूसा और खबर

सवेरे साइकिल-सैर में जाते हुये पाया था कि उस खेत में थ्रेशिंग के बाद गेंहूं वहां से हटाया जा चुका था। भूसा भी एक ट्रेक्टर-ट्रॉली में ट्रॉली की ऊंचाई तक लादा जा चुका था। बाकी बचा अधिकांश भूसा झाल (पुरानी धोती-साड़ी के बोरों) में इकठ्ठा कर दिया गया था। चहल पहल थी वहां। लग रहा था कि कुछ ही देर में ये बोरे भी लद जायेंगे ट्रेक्टर ट्रॉली पर और खेत खाली हो जायेगा।

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सवेरे साइकिल सैर जाते समय देखा। … लग रहा था कि कुछ ही देर में ये बोरे भी लद जायेंगे ट्रेक्टर ट्रॉली पर और खेत खाली हो जायेगा।

वापस लौटने में लगभग पौना घण्टा लगा। मुझे अपेक्षा नहीं थी कि खेत में होंगे वे सब लोग। पर वे वहीं मिले। झाल लद गये थे। उनके ऊपर ट्रॉली पर एक व्यक्ति लेटा था। दो स्त्रियां जमीन पर बिखरा भूसा बटोर रही थीं। शायद वह भी ट्रॉली पर लादा जाने वाला हो। कुछ लोग और भी आस-पास थे। मैं चित्र लेने लगा। राजन भाई ने पूछा – भूसा क्या भाव बेंचोगे? 

“बेचने के लिये नहीं है। घर के इस्तेमाल के लिये हैं।” – ट्रॉली पर लेटा व्यक्ति बोला।

मेरे चित्र लेने पर उसने कहा – फोटो काहे ले रहे हैं?

बस अच्छा लग रहा है यह सब। इस लिये ले रहा हूं।

“हम सोचे न्यूज वाले होंगे आप।”

न्यूज वाला तो नहीं हूं, पर न्यूज के नाम पर आपके पास कुछ है?

वह लेटी मुद्रा से बैठी मुद्रा में आ गया, जिससे कि उसका चित्र बेहतर आ सके। बोला, न्यूज तो यही है कि गेंहू बम्पर हुआ है। बड़ी अच्छी फसल।

अच्छा, कितनी हुई होगी एक बीघा में?

आप समझो कि अमूमन 8 क्विण्टल गेहूं होता था एक बीघा में। इस बार 12-13 क्विण्टल हुआ है। और दाने भी बढ़िया हैं। 

मुझे लगा कि सही में उसने न्यूज दिया है मुझे। यद्यपि मुझे उसका न्यूज़ वालों के प्रति “भक्ति-भाव” जमा नहीं। अभी गांव-देहात में अखबार और टीवी की लार्जर-देन-लाइफ़ इज्जत बरकरार है। इन लोगों को नहीं मालुम कि तथाकथित चौथे खम्भे का इण्टरनेट और सोशल मीडिया ने बधियाकरण कर दिया है। अलाने-फलाने अखबार के स्क्राइब से एक खुर्राट ब्लॉगर कहीं ज्यादा दमदार है। पत्रकार ब्लॉगर बन रहे हैं। फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से अपनी साख बचाये रखने की जद्दोजहद में लगे हैं। अखबार वाले अपनी बिक्री की चिन्ता में मरे-घुले जा रहे हैं। ये चौथे खम्भे वाले अपने रसूख के बल पर जो भ्रष्टाचार कर पा रहे थे, वह तेजी से अतीत होता जा रहा है। …. पर इस भूसा की ट्रॉली पर अधलेटे जमींदार को पता ही नहीं यह सब।

क्या करूं? मीडिया और चौथे खम्भे की दशा-दुर्दशा पर उससे चर्चा करूं? मुझे लगा कि वह बेकार होगा। अगले 5-7 साल में यह जवान समझ जायेगा कि इस देश में ओपीनियन मोल्ड करने की ताकत अखबार और टीवी में नहीं रहेगी। ये दोनो माध्यम रोज यही तलाशेंगे कि कौन हैशटैग, कौन वीडियो, कौन ट्वीट वाइरल हो रहा है सोशल मीडिया पर। ये सब सोशल मीडिया पर रियेक्ट भर करेंगे। सोशल मीडिया को ड्राइव करना इनके बूते से बाहर हो जायेगा, और जा रहा भी है।

खैर, मैं जानता हूं कि गांव में अभी यह सब कहना अटपटा होगा। बहुत कुछ वैसा ही अटपटा कि कोई गांव प्रधान, थानेदार, तहसीलदार और जिला मजिस्ट्रेट को प्रजातंत्र और प्रशासन का सबसे छोटा मोहरा बताये।

समय बदलेगा।

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समय बदलेगा!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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