चिन्ना पांड़े (पद्मजा पाण्डेय) को स्कूल जाने के लिये तैयार करना एक प्रॉजेक्ट है। बिस्तर से उठाते समय उसकी मां को बताना पड़ता है कि आज स्कूल खुला है। उसके टिफिन में क्या बना कर दिया जायेगा। आज कौन सी ड्रेस पहन कर जाना है; आदि।
कई बार बोलना होता है – उठो चिन्ना, “टाइम का शुरू” हो गया है।

चिन्ना का अपना संसार है और अपनी भाषा। उसे नहलाते समय उसे कहानी सुनानी पड़ती है। उसकी मां कहानी गढ़ती है। जैसे लिमरिक या डोंगरेल होते हैं – अण्ट शण्ट; वैसे ही अन्ट शण्ट कहानी।
बेचारा वेजीटेरियन लॉयन। अब बाभन के घर की कहानी का पात्र है तो वेजीटेरियन ही तो होगा!
उसे नहला कर उसकी माई रजाई में बिठा कर एक कप दूध बना लाई – नहाने की सर्दी दूर करने के लिये। कहानी साथ में चल रही थी।
“लॉयन और बीयर (शेर और भालू) दोनो भाई हैं। अपनी मम्मा की सारी बात मानते हैं। होमवर्क सारा साफसाफ करते हैं। एक दिन दोनो को भूख लगी थी। घर में कुछ नहीं था तो उनकी मम्मा ने जल्दी से प्रेशर कुकर गर्म किया और पॉपकॉर्न बनाया। सब ने मजे में खाया। फिर खाने में मम्मा ने मटर पनीर बनाया। लॉयन को मटर पनीर बहुत पसन्द था। लेकिन मटर कड़ा हो गया था। फिर भी लॉयन ने बहुत मजे से खाया मटर पनीर।”
बेचारा वेजीटेरियन लॉयन। अब बाभन के घर की कहानी का पात्र है तो वेजीटेरियन ही तो होगा! 😆
सवेरे का स्नान, गर्म दूध, कहानी, लॉयन और मटर पनीर! क्या मजेदार जिन्दगी है चिन्ना की। वह इस प्रक्रिया में कहानी गढ़ना भी सीख रही है। भविष्य में शायद उपन्यासकार बने। नोबल पुरस्कार पायेगी हिन्दी में चिन्ना?!

आदरणीय,
मेरे विचार से उचित शब्द ‘पांडे’ है, ‘पांड़े’ नहीं।
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद!
LikeLike