कस्बे के बाजार मेँ एक रेस्तराँ खुलना कुछ उतना ही बड़ा है जैसे बम्बई, लंदन या पेरिस में कोई नया म्यूजियम या थियेटर खुलना। तिवारी जी को उसका विज्ञापन करना चाहिये। शायद सोच भी रहे हों। मैं तो आस-पास की रिपोर्ट देने वाले एक ब्लॉगर की नजर से ही देखता हूं। मैं चाहूंगा कि यह रेस्तराँ सफल हो। मुझे एक परमानेण्ट कॉफी पीने का अड्डा मिल सके! 😆
नितिन तिवारी ने अपने रेस्तराँ के कुछ चित्र ह्वाट्सेप्प पर भेजे हैं। दो सज्जन पैदल चल रहे हैं कलकत्ता (हावड़ा) से और जायेंगे राजस्थान। शायद सीकर में खाटू श्याम जी के स्थान पर। रास्ते में नितिन के रेस्तरॉं में विश्राम करते हैं। जगह का चयन करने और उनकी सुविधाओं का ध्यान देने के लिये कुछ लोग पहले से आ कर व्यवस्था देखते हैं। चलते समय एक एसयूवी वाहन उनके पीछे चलता है।

यह तो तय है कि सम्पन्न लोगों का यह पैदल चलने का धार्मिक अभियान है। वे चना-चबैना वाले 100किमी के कांवरिये नहीं हैं। वे 1500 किलोमीटर पैदल चलने वाले यात्री हैं – पूरी योजना बना कर यात्रा (घुमक्कड़ी नहीं) करने वाले! वे 14 जनवरी को हावड़ा, कलकत्ता से चले हैं। छ मार्च को राजस्थान में गंतव्य पर पंहुचना तय किया है। रास्ते में वे विश्राम का स्थल तलाशते हैं। अपना भोजन भी खुद बनाते हैं।
इस पैदल चलने के माध्यम से वे भारत से परिचित होंगे। और फिर यात्रायें – विशेषकर पैदल यात्रायें केवल तीर्थ पर्यटन नहीं; आत्मविकास का सबसे पोटेण्ट जरीया हैं। अनेकानेक महान पुरुषों ने लम्बी लम्बी यात्रायें की हैं। उससे उनका और उनसे मिलने वालों का व्यक्तित्व-जीवन परिष्कृत हुआ है। इतिहास गवाह है।


नितिन का कहना है कि इस प्रकार के लोगों और ग्रुपों को सुविधा दे कर वे अपनी उस इमेज को पुख्ता करना चाहते हैं कि यह “फेमिली” के आने का स्थान है। अन्यथा रेस्तरॉं का दुरुपयोग – मसलन दारू पार्टी – करने के लिये तो बहुत से लोग एप्रोच करते हैं। शुरुआती दौर में, जब ग्राहकों की बहुत जरूरत होती है, इन एप्रोच करने वालों को मना करना कठिन काम है; पर वे इस बारे में बहुत स्पष्ट सोच रखते हैं। आमदनी ईमेज से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं। ईमेज सही रहेगी तो सतत ग्राहक आयेंगे।
उनका रेस्तरॉं – श्री विजया रेस्तरॉं – फेमिली रेस्तरॉं ही रहेगा।
नितिन ने कहा – आमदनी ईमेज से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं। ईमेज सही रहेगी तो सतत ग्राहक आयेंगे।
नितिन और उनके पिताजी ने बताया कि मौनी-अमावस्या के अवसर पर तो शाम के समय बहुत भीड़ हो गयी थी। ग्राहकों को निपटाते निपटाते देर रात हो गयी। पूरा हॉल भर गया था। उनके पास अभी कर्मचारी उस स्तर पर भीड़ को केटर करने के लिये नहीं हैं।उस दिन काफी मेहनत करनी पड़ी। बहुत से लोग रात भर रुकने का अनुरोध करने वाले थे। चूंकि वे सभी तीर्थयात्री थे, अपना फर्नीचर आदि समेट कर हॉल में लोगों को जमीन पर बिस्तर बिछा कर रुकने दिया गया। अगले दिन चलते समय वे लोग धन्यवाद-आशीष दे कर गये। विजय तिवारी का कहना था कि यही गुडविल ही उनकी भविष्य की पूंजी है।
नया खुला रेस्तरॉं है श्री विजया फैमिली ढाबा और रेस्तरॉं। आसपास ट्रक डाइवर और आती-जाती बस के यात्रियों के जलपान के अड्डे हैं। फैमिली के साथ सुकून से बैठ कर जलपान करने के स्थान नहीं हैं। उस जरूरत को पूरा करना चाहते हैं तिवारी पिता-पुत्र। पर अपने वाहन में चलते हुये यात्रियों को आधा एक घन्टा रोक रेस्तरॉं के ग्राहक में तब्दील करना आसान काम नहीं है। मेरे लिये जिज्ञासा का विषय है कि भविष्य में किस तरह से विकसित होगा यह रेस्तरॉं।

आगे कई पोस्टों का कण्टेण्ट देगा यह ज्वाइण्ट।
पिछले हफ्ते मेरे एक पड़ोसी नें श्याम खाटू बाबा के इस यात्रा के बारे में जिक्र किया था . कानपुर में इनके आगमन से पहले जरूरी किस्म की तैयारी यहां के खाटू भक्त कर रहे है, ऐसा वे बतला रहे थे ।
विजय तिवारी अच्छा काम कर रहे हैं , उनकी होम-स्टे की प्लानिंग अवश्य सफल होगी, क्योंकि लोग ऐसा ही चाहते हैं
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आपने अच्छा फालो अप दिया इस पोस्ट पर. बहुत धन्यवाद वाजपेयी जी.
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