दिलीप चौरसिया का महराजगंज कस्बे का मेडीकल स्टोर

दिलीप का मैडीकल स्टोर महराजगंज कस्बे में सम्भवत: सबसे बड़ा स्टोर होगा। उन्होने बताया कि सन 1964 से है यह दुकान। गंज की सबसे पहली मेडिसिन की दुकान। महराजगंज कस्बे में नेशनल हाईवे 19 के नुक्कड़ पर दो तीन दुकान छोड़ कर। काम की लगभग सभी दवायें वहां मिल जाती हैं।

दुकान पर दिलीप को, उनके छोटे भाई को और यदा कदा उनके पिताजी को बैठा देखता हूं।

अपनी मेडिकल दुकान पर दिलीप चौरसिया
दिलीप से मित्रता मुझे गांव में बसने के शहरी-गंवई द्वन्द्व के तनाव को मिटाने में सहायक है। शहर के चक्कर न लगाने पड़ें और अधिक से अधिक जरूरतें यहीं गांव में 8-10 किलोमीटर दायरे में पूरी हो सकें – यह सम्भावना मुझे सुकूनदायक लगती है।

दिलीप चौरसिया से मेरी मित्रता मेरी सामान्य से अलग कुछ दवाओं की पूछताछ से हुई। मुझे ऑस्टियोअर्थराइटिस की कुछ ऑफबीट दवायें बोकारो में डाक्टर रणबीर ने प्रेस्क्राइब की थीं। उन्हें लेने मैं इलाहाबाद या वाराणसी जाया करता था और वहां भी इक्कादुक्का दुकानों पर वह मिलती थीं। दिलीप ने कहा कि वे यहीं महराजगंज में अपनी दुकान पर उपलब्ध करा देंगे। उसके बाद मुझे लगा कि मेरे घर के तीन सीनियर सिटीजन जो दवायें प्रयोग करते हैं – और वह पर्याप्त मात्रा में दवायें होती हैं – दिलीप की दुकान से खरीदी जा सकती हैं।

हम लोगों का महीने का दवा का बिल करीब 2-3 हजार का होता है। कभी उससे ज्यादा भी। अब वह सब – या उसका 90 प्रतिशत दिलीप की दुकान से आता है। दिलीप मुझे एम आर पी पर 7-8 प्रतिशत की छूट भी देते हैं। कुल मिला कर दिलीप से मित्रता मुझे गांव में बसने के शहरी-गंवई कॉन्फ़्लिक्ट की सतत झिक झिक से मुक्ति दिलाने में सहायक है। शहर जाने की दरकार जितनी कम हो और जितना अधिक से अधिक जरूरतें साइकिल भ्रमण के दौरान आसपास के 8-10 किलोमीटर दायरे में पूरी हो सकें – वह मुझे अधिकाधिक सुकून देता है।

दिलीप ने बताया कि दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना मेहनत का काम है। वे सवेरे सात बजे दुकान पर आते हैं। सुबह शाम यहां रहते हैं। एक पतली सी नोटबुक में वे सभी दवायें नोट करते जाते हैं जो स्टॉक में खत्म हो रही हैं या जिनकी मांग ग्राहक करते हैं। उस नोटबुक के आधार पर नौ बजे दवाओं की खरीद के लिये वे वाराणसी के लिये निकलते हैं। दिन भर लगभग तीस दुकानों-डीलरों के यहां चक्कर काटते हैं। सभी दवायें एक आउटलेट पर नहीं मिलतीं। कई छोटे-बड़े सप्लायर हैं। उनके यहां एक रीटेल ग्राहक की तरह अपनी बारी का इन्तजार कर दवायें खरीदते हैं, बिल बनवाते हैं और फ़िर दवाई के पैकेट इकठ्ठे कर ट्रान्सपोर्ट वाले के यहां देते हैं। ट्रान्सपोर्ट वाला उन पैकेट्स को महराजगंज सप्लाई करता है। … काफी मशक्कत का काम है।

दिलीप मेडिकल स्टोर पर एलोपैथिक, आयुर्वेदिक और पशुओं की दवायें मिलती हैं। महराजगंज में दर्जन भर दवा की दुकानें हैं और सभी में दवाओं का यह प्रकार – पशु की दवाओं सहित – उपलब्ध है। पशुओं की दवायें, गांव देहात में उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी मानव की दवायें।

मुझे कुत्ते के काटे की दवा – रेबीपुर की 5 फॉइल की आवश्यकता थी। लगा कि दिलीप मेडिकल स्टोर पर मिल जायेंगी, पर मिली नहीं। दिलीप ने बताया कि फुटकर में देने वाले डीलर तो हैं वाराणसी में पर वे पर्याप्त रेफ़्रीजरेशन कर रखते हैं या नहीं, उसके बारे में सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता। दूसरे एक डेढ़ महीने से सप्लाई में भी कमी है। इसकी वैकल्पिक दवायें -अभयारब या वैक्सीरब भी नहीं मिल रहे। उन्होने मुझे कुत्ते काटे का इन्जेक्शन लगवाने के लिये वाराणसी जाने की सलाह दी। यह विकल्प मुझे अच्छा (और सुविधाजनक) नहीं लगा।

मेरे व्यक्तित्व में कोई तत्व है जो शहर के विकल्प को अरुचिकर मानता है। खैर, दिलीप ने ही मुझे गोपीगंज (22किमी दूर) के अग्रवाल मैडीकल का फोन नम्बर दिया और वहां रेबीपुर के फ़ॉइल मिल गये। गोपीगंज वाली दुकान पर उन्हें ठण्डा रखने के लिये एक बर्फ़ के पाउच के साथ दिया। कुल मिला कर दिलीप या उनके रिसोर्स का प्रयोग कर अपनी दवा सम्बन्धी जरूरतें कस्बे के स्तर पर पूरी कर पा रहा हूं। दिलीप मेरे अर्बनफोबिया का एण्टीडोट सरीखे बन रहे हैं। :lol:

दिलीप ने बताया कि हाल ही में भदोही में एक मेडीकल एजेंसी बनी है जहां कई दवायें उन्हें मिल जा रही हैं। इस प्रकार दवाओं की थोक खरीददारी के बारे में उनकी वाराणसी पर निर्भरता कम हुई है।

दिलीप के छोटे भाई दुकान के सामने सफ़ाई करते हुये।

दिलीप के कुटुम्ब के लोग कई दुकानें रखते हैं महराजगंज कस्बे मे। दिलीप प्लाई से मैने कुछ दिन पहले शेल्फ़ बनवाने के लिये प्लाई और प्लाई बोर्ड खरीदे थे। वहां उनका छोटा भाई नितिन चौरसिया बैठता है। एक और दुकान – आलोक और हेमन्त चौरसिया की ह्वाइट गुड्स और मोबाइल की दुकान भी उनके कुटुम्ब के लोगों की है। दिलीप की दुकान के ऊपर ही उनकी एक आभूषण की दुकान है।

एक ही कुटुम्ब के लोग व्यवसाय डाइवर्सीफ़ाई कर कस्बाई बाजार में पैठ बनाये हुये हैं – यह मेरे लिये खबर थी और कस्बे का चरित्र समझने के लिये एक महत्वपूर्ण इनपुट भी।

दिलीप के कुटुम्ब के सात बच्चे भदोही के सनबीम स्कूल में पढ़ते हैं। स्कूल की बस यहां महराजगंज से उन्हें ले जाती-लाती है। साल भर में अपनी नातिन पद्मजा के लिये भी शायद उसे दिलीप के कुटुम्ब के बच्चों के साथ उस स्कूल में भेजने लगूं। दिलीप ने बताया कि स्कूल मंहगा जरूर है पर स्तर अच्छा है।

मैं दिलीप का चित्र खींच रहा था। उन्होने पूछा – क्या करेंगे इसका? तब मैने ब्लॉग/सोशल मीडिया आदि के बारे में उन्हें बताया और मोबाइल पर अपनी एक पोस्ट भी दिखाई। उन्हें भी स्पष्ट हुआ कि मैं अपने समय का सवेरे साइकिल चलाने के अलावा और क्या उपयोग करता हूं।

दिलीप और उनके छोटे भाई बहुत लाइक-एबल चरित्र हैं। आते जाते अदब से बात करते हैं। उम्र का लिहाज करते हैं और मेरे विषय में जानने के लिये सामान्य से अधिक जिज्ञासा/कौतूहल भी रखते हैं। आने वाले कई दशक मुझे और मेरे परिवार को यहां गुजारने हैं। दिलीप और उनका कुटुम्ब मेरे नेटवर्क के एक महत्वपूर्ण अंग होंगे – ऐसा मुझे लगता है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “दिलीप चौरसिया का महराजगंज कस्बे का मेडीकल स्टोर

  1. गांवों में मेडिकल की सुविधाएं उपलब्ध होने लगे तो गांव से बेहतर कुछ नहीं। हालांकि गांव में जरा-जरा सी जमीन के टुकड़े के लिए लड़ाई होती हैं, रिश्तेदारियां दुश्मनी में बदल जाती हैं। पहले जिन सगों के भरोसे जमीन-जायदाद छोड़कर अपने कर्म के सहारे शहर में जमने लोग जाते थे। पर अब तो शहर में उनकी तरक्की देखकर, गांव के सगों के मन में अमानत में ख्यानत की भावना प्रबल होने लगी है। इसलिए थोड़ा गांव लौटने का सपना लोगो का खत्म होने लगा है।

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