राजकुमार उपाध्याय

मेरे पिताजी भर्ती हैं सूर्या ट्रॉमा सेंटर एंड हॉस्पिटल, औराई में. अस्पताल के बगल में चाय की एक गुमटी है. वहां मेरी पत्नीजी और मैं सवेरे सवेरे जाते हैं चाय पीने. सवेरे की पहली चाय में वह चीनी मिलाए, उससे पहले बिना चीनी की चाय मिलने की संभावना रहती है.

राजकुमार उपाध्याय और परिवार. चित्र फ़ेसबुक प्रोफाइल से.

खैर, मुद्दा यहां सवेरे की चाय का नहीं है. चाय की गुमटी के बगल में जो घर है वह उपाध्याय जी का है. उनके बारे में मुझे पता चलता है परिवार के बेटे राजकुमार उपाध्याय जी से. राजकुमार जी मेरे फेसबुक मित्र हैं. शिकागो में रहते हैं. उनके फेसबुक चित्रों से लगता है उनकी पत्नी और दो बच्चे रहते हैं उनके साथ.

राजकुमार जी सोशल मीडिया पर यह जान कि मैं पिताजी की अस्वस्थता के कारण इस अस्पताल में हूँ; मुझसे शिकागो से बात की. उसके बाद अपने भाई मनोज जी को मेरे पास अस्पताल में भेजा. किसी भी प्रकार की कोई सहायता की आवश्यकता जानने टटोलने के ध्येय से.

सोशल मीडिया की यह असल ताकत है. दुनिया के दूसरे छोर के लोग अगर आपके कहे/लिखे से प्रभावित होते हैं तो एक प्रकार से आपसे जुड़ते हैं. वह नेटवर्किंग करिश्माई होती है पुराने मानकों से. फेसबुक ट्विटर, इनस्टाग्राम और ह्वात्सेप्प आदि ने सम्बंधों की एक नयी विमा (नया डायमेंशन) सृजित कर दिया है.

आप जहां से तनिक अपेक्षा नहीं करते, वहां से सहायता अवतरित होती है. वर्ना, आसपास के कई अंतरंग (?) भी मुंह चुराते पाए जाते हैं, गाढ़े समय में.

राजकुमार जी से आमने सामने का कोई परिचय नहीं था. फिर भी उनके फोन और उनके भाई जी के आने मिलने में आत्मीयता भरपूर झलकी. मैं उनके घर हो कर आया. उनके पिताजी का कोयले और लकड़ी का व्यवसाय है. उनके मां पिताजी – दोनों ही बहुत प्रेम और सहजता से मिले. माँ जी बहुत अच्छी चाय बना कर लाईं. मध्य वित्त परिवार. लगा कि लगभग सेमी रिटायर्ड लाइफ जी रहे हैं उपाध्याय दम्पति. सुखी जीवन. पिताजी ने अपने घुटने के ऑपरेशन की बात बताई. अपने बेटे से बहुत प्रसन्न, बहुत संतृप्त लेगे उपाध्याय जी.

उनकी माँ जी ने कहा कि अपना ही घर समझूँ और कोई आवश्यकता हो, देर सबेर चाय की जरूरत हो तो वे बना कर अस्पताल भिजवा सकती हैं. यह सुनना ही बहुत सुकून वाला होता है.

उनके घर से लौटा तो दस दिन की थकान के बावजूद आत्मीयता से रीचार्ज हो कर लौटा.

आत्मीयता बरास्ते सोशल मीडिया बहुत अच्छा अनुभव था.

कितना विचित्र है – दुनियाँ तकनीकी परिवर्तन से पास आ रही है और पड़ोस जो पूर्व परिचित था, वह शुष्क होता जा रहा है!

(राज कुमार उपाध्याय और उनके परिवार के चित्र उनकी फेसबुक प्रोफाइल से. अन्यथा उनसे फेस टू फेस मुलाकात नहीं हुई है)


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

6 thoughts on “राजकुमार उपाध्याय

  1. आप इतने सुंदर तरीक़े से इसको प्रस्तुत किए उसके लिए कोटि कोटि नमन.आप घर पर गए यह जानकार बड़ी प्रसन्नता हुई.आशा करता हूँ पिताजी की तबियत शीघ्र ठीक हो जाये.
    🙏🙏🙏

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    1. अच्छी आत्मीय पोस्ट। जा रहे हैं हम भी चाय बनाने। आ जाइये पिलाते हैं बिना चीनी की चाय। 💐💐

      Liked by 1 person

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