ह्यूमन फ्रीडम इंडेक्स में भारत 110 वें नंबर पर है. अगर उत्तर प्रदेश एक अलग देश होता तो उसका स्थान 110 से कहीं नीचे होता.
शायद पाकिस्तान (रेंक 140) से भी नीचे. 🙁
सामंतवादी समाज, रंगदारी, लचर पुलिस और प्रशासन तथा उदासीन सी जनता – कभी कभी लगता है कि कहीं और बसना चाहिए था.
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रेलवे की नौकरी का एक नफा है. व्यक्ति और परिवार लोकल झिक झिक से असंपृक्त aloof बना रह सकता है. उसकी अधिकांश जरूरतें रेल परिवार में पूरी हो जाती हैं.
पर, रिटायर होने पर, समाज और प्रांत देश की कमियां उजागर होने लगती हैं. उन्हे देख व्यक्ति, बावजूद इसके कि वह इसी समाज से निकला है, कभी कभी बहुत स्तब्ध, खिन्न और हताश होता है.
कभी कभी यह गांव, पूर्वांचल और प्रांत बहुत निराश करता है. 😳

सब जगह एक सा हाल है जनाब। निराशा उनको नहीं हो रही है जो अच्छे दिन आ गये और ज्यादा अच्छे आने वाले हैं जपने वालों की भीड़ में इतने गुत्तमगुत्था हो चुकें हैं कि पता नहीं चल पा रहा है कि हैं कि नहीं हैं। आईये उधर को चलें और खुश रहें।
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