हम यहाँ सूर्या ट्रॉमा सेंटर और अस्पताल में हैं, पिताजी के यहां भर्ती होने के कारण.
अंदर ही बंद रहता हूं तो अंदाज नहीं लगता कि मौसम कितना खराब है. गंगाजी की बाढ़ की खबरें मिलती रहती हैं. कल तक तो बाढ़ पर ही थीं. कल ही क्वार मास में पुष्य नक्षत्र का संयोग था. स्वर्ण प्राशन का दिन.
पुष्य नक्षत्र के दिन ही प्राचीन काल में राज वैद राज्य के बच्चों को स्वर्ण भस्म (घी में मिला कर) चटाया करते थे. यह कृत्य 24 बार किया जाता था 16 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों के साथ. स्वर्ण प्राशन का लाभ होता था बच्चे की रोग प्रतिरोध क्षमता और मेधा के विकास में.
यह पुनः प्रारंभ किया है सूर्या चाइल्ड हॉस्पिटल के डाक्टर दंपति शर्मिला और संतोष तिवारी ने. और थोड़े ही समय में 1700 के आसपास बच्चों का इसके लिए पंजीकरण हो गया है.

तेइस सितंबर के दिन खराब मौसम और बारिश के कारण मुझे लगा कि इस बार शायद इक्का-दुक्का लोग ही पंहुचें. यह immunisation कार्यक्रम वाराणसी के उक्त अस्पताल और यहां औराई के सूर्या ट्रॉमा सेंटर और अस्पताल में एक साथ होने जा रहा था.
पर कार्यक्रम के घंटा भर पहले मेरे घर काम करने वाली महिला कुसुम का पति अपने दो छोटे बच्चों के साथ अस्पताल में उपस्थित था. मेरी पत्नीजी ने बड़े हल्के ढ़ंग से घर में इस कार्य क्रम की चर्चा की थी. थोड़े ही देर में मैंने पाया कि अस्पताल की लॉबी बच्चों की आवाजों से गुलजार हो गई थी.
कुल मिला कर 100 से अधिक बच्चे यहां सूर्या ट्रॉमा सेंटर में इस प्राशन के लिए आए. उनका हेल्थ चेक अप भी निशुल्क किया गया और स्वर्ण भस्म भी बिना शुल्क चटाई गई.
मेरी पोती पद्मजा (चिन्ना) पांड़े ने भी कल पहली बार प्राशन किया. उसके अनुसार डाक्टर अंकल बहुत अच्छे हैं, कोई सूई नहीं लगाई . 😁
वाराणसी में भी लगभग 150 बच्चों को यह दवा दी गई. डा. संतोष ने बताया कि इस बार बाढ़ और खराब मौसम के कारण बच्चे कम आए. अगले माह कहीं ज्यादा के आने की संभावना बनती है. लोगों में वर्ड ऑफ माउथ से काफी प्रचार प्रसार हो रहा है. इसके अलावा कई राज्य सरकारें इसमें रुचि दिखा रही हैं. इस बार लगभग 70 नए बच्चे पंजीकृत हुए.

मेरी बिटिया वाणी पाण्डेय एक संस्थान (साथ फाउंडेशन) से जुड़ी है जो महिलाओं और बच्चों के बीच कल्याण कार्य करता है. मेरा तो सुझाव है कि उसे और उस संस्थान को इस कार्यक्रम को झारखंड/बोकारो में प्रसारित करना चाहिए. दो तीन दिन पहले वह हमारे पास आई भी थी और इस कार्यक्रम में जिज्ञासा भी दिखा रही थी. इस प्रकार कई स्वतंत्र कार्य करने वाले लोग भी जुड़ सकते हैं इस भारतीय आयुर्वेदिक विरासत के प्रचार प्रसार में.
मुझे जिज्ञासा है और कौतूहल भी. इस प्रक्रिया के बच्चों पर परिणाम देखने जानने की उत्सुकता है. इस कार्य क्रम को आगे फॉलो करूंगा.
पुष्य नक्षत्र की महत्ता –
मेरे मित्र गिरिजेश राव बताते हैं कि किसी दिन अमुक नक्षत्र का अर्थ यह है कि चंद्रमा उस दिन उस नक्षत्र में हैं. चन्द्रमा से ही ३० तिथियों का निर्धारण होता है जो सूर्य से ३६०/३० = १२ अंश प्रति तिथि कोणीय मान है. किसी तिथि में सूर्योदय हो ही न तो उसकी हानि या क्षय माना जाता है। ऐसा भी सम्भव है कि एक ही तिथि में दो दिन सूर्योदय हो। उस स्थिति में तिथि का विस्तार अगले दिन भी हो जाता है। नक्षत्र मास चन्द्रमा के एक नक्षत्र से चल कर पुनः उसमें लौटने से बनता है तथा २७ दिनों से कुछ घण्टे अधिक होता है। कला मास चन्द्र कलाओं से है जो सूर्य के सापेक्ष चन्द्र की स्थितियों से है। कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक – २९ दिनों से अधिक पर पूरे ३० नहीं।
हम लोग सामन्यतः कला मास से परिचित हैं. नक्षत्र मास की गणना के आधार पर किसी दिन अमुक नक्षत्र होने को समझा जा सकता है.
पुष्य नक्षत्र को बहुत शुभ माना गया है. यह दिन राज्याभिषेक, किसी यात्रा के प्रस्थान, किसी अभियान या किसी अन्य पुण्य कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है, ऐसा गिरिजेश राव जी ने बताया.