अतिवृष्टि की सुबह, अस्पताल में


आज रात भर बारिश होती रही. अस्पताल के कमरे में जब भी रात में नींद खुली, और साठ की उम्र पार करने के बाद ब्लैडर की क्षमता कम हो जाने के कारण ज्यादा ही खुलती है, तेज बारिश की आवाज और खिड़की से यदा कदा बिजली की चमक का एहसास होता रहा.

सवेरे उठने के बाद चाय का बहुत इंतजार करना पड़ा. घर में हमारे ड्राइवर साहब नहीं आए थे. घर से वही चाय ले कर आते हैं.

हमारा घर वहां ब्राह्मणों की बस्ती से अलग चमरौटी और पसियान के बीचों-बीच है. अशोक, ड्राइवर साहब ब्राह्मण बस्ती में रहते हैं. बारिश इतनी हो रही थी कि मेरे घर तक आने का साहस और मन ही न बना पाए वे.

बारिश में भीगता अस्पताल का गार्ड.

यहां सूर्या ट्रॉमा सेंटर और अस्पताल में ऊपर बरसाती में कैंटीन है. मेरी पत्नीजी वहां भी हो कर आयीं. पता चला कि वहां दूध नहीं आया है. सो चाय नहीं बन सकती. बारिश में अस्पताल के बाहर किसी चाय की दुकान पर भीगते हुए जाने का साहस हममें नहीं था.

घंटा भर बाद अशोक घर से चाय नाश्ता ले कर आया तो साथ में बारिश की खबरें भी थीं. इतना पानी भर गया है खेतों में कि मेरे घर के पास की सड़क पर भी पानी बह रहा है. एक जेसीबी मशीन गड़ही के पास पानी और दलदल में फंस गई है…

अस्पताल में नाइट शिफ्ट में सफाई करने वाली महिला, जो मेरी पत्नीजी को “अपना” समझती है, आकर बोली कि वह घर तेज बारिश में नहीं लौट पा रही. पास में मेघीपुर की रहने वाली है. पैदल आती जाती है. मेरी पत्नीजी उसे दस रुपये देती हैं – ऑटो में बैठ कर चली जाना.

अस्पताल की लॉबी में भरत लाल मिश्र जी दिखते हैं. वे स्टाफ और निर्माण कार्य मैनेज करते हैं. बताते हैं कि दिक्कत तो है बारिश से पर स्टाफ आ गया है और साफ सफाई का काम हो रहा है.

अस्पताल में शीशे चढ़ी खिड़की से पीछे का दृश्य. धान की खेती है और स्थान के अर्बन बनते स्वरूप में खेतों की घेराबन्दी कर उनमे निर्माण की प्रक्रिया भी नजर आती है

अस्पताल के पीछे झांकता हूँ तो धान के खेत ही खेत हैं. धान की फसल के लिए तो बहुत बढ़िया है यह बारिश. पर जहां तिलहन और दलहन की फसल है, या जहां ज्वार बाजरा है, वहां किसान परेशान महसूस कर रहा है.

अस्पताल के पीछे धान के खेत

क्वार महीने का आधा खतम हो रहा है. कल अमावस्या है. कल श्राद्ध पक्ष समाप्त हो जाएगा. परसों नवरात्र प्रारंभ होगा. पर इस समय इतनी तेज बारिश पहले किसी साल हुई हो, याद नहीं पड़ता…. अस्पताल के इस कमरे में बारिश को लेकर विग्रह है. मैं इसमें आनंद तलाश रहा हूँ पर मेरी पत्नीजी बारिश की निरंतरता से ऊब महसूस कर रही हैं. उसके कारण झल्लाहट और खीझ उनके व्यवहार में नजर आ रही है.

स्नान आदि के लिए अस्पताल से घर जाते समय मुझे सहेजती हैं – बारिश में घर से भोजन न आ पाया तो यहीं कैंटीन से ले कर खा लेना.

उनके जाते ही मैं किंडल और एक अन्य पुस्तक ले कर बिस्तर पर पसर जाता हूँ. बाहर बरसते पानी का स्वर और तेज हो गया है…


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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