नंदू नाऊ मुझे तरह तरह की सूचना और जानकारी देता है सवेरे और शाम की घण्ट यात्रा के दौरान. बताता है कि ज्ञान बालू वाले के पास उसका घर है. पंद्रह साल से घाट और घण्ट के दाह/श्राद्ध का नाऊ का काम कर रहा है. इतने समय में करीब 1500 दाह और घण्ट के अनुष्ठान करवा चुका है. अभी तो मरने का सीजन नहीं है. बरसात और उसके आसपास के मौसम में मौतें कम ही होती हैं. तेज सर्दी और गर्मी में उम्रदराज लोग ज्यादा जाते हैं. उस समय नंदू को कभी कभी दम मारने को फुर्सत नहीं होती.

जब उम्र गुजार कर कोई जाता है तो परिवार को भले ही कष्ट होता है, पर वह इतना अखरता नहीं. पर जब बच्चा या जवान खत्म होता है तो मन छटपटाता है. कभी कभी एक सप्ताह शादी को हुआ और नौजवान चला गया. और कभी तो छोटे बच्चे जिसका जनेऊ हो जाने के कारण श्राद्ध कर्म करना होता है, का क्रिया कर्म भी कराया नंदू ने. वह तकलीफ देह था.

नन्दू ने बताया कि कुछ अर्सा पहले फलाने के पच्चीस साल के लड़के का दाह कर्म कराया था उसने. लड़का कहीं कालेज में पढ़ता था दिल्ली में. बताया गया था कि ब्रेन हेमरेज से मौत हुई थी. परिवार के लोग उसकी लाश ले कर आए थे हॉस्टल से. पर जब लाश नहलाने का समय था तो उसने देखा कि शरीर काला पड़ गया था और कई ऐसे निशान थे उसपर मानो किसी ने मार पीट की हो. पता नहीं क्या हुआ था. जवान लड़का. शादी नहीं हुई थी. माता पिता ने जाने क्यों पोस्ट मार्टम बिना लाश स्वीकार कर ली थी. अकाल मृत्यु के मामले पेचीदा और दुःखद होते हैं.
नंदू मुझे बिना इमोशनल हुए यह बताता है, पर लगता है कि इस तरह के मामले उसके मन पर असर तो डालते हैं…और वह मेरे संवेदन को खंगालने में तो सफल हो ही जाता है अपनी वाक पटुता से.
वह आगे और कहने की बजाय बात पलट देता है. “अब देखिए महीना भर पहले यह कालोनी पानी में भरी थी. सड़क पर नाव चल रही थीं. लोगों को नगर निगम पूरी सब्जी के पैकेट बांट रहा था. कुछ को हाथ में पकड़ा देती थीं और जो नाव तक नहीं आ पाते थे, उनको पैकेट उछाल देती थीं. उस समय तो यहां घण्ट बांधने का कार्यक्रम हो ही नहीं रहा था”.
नंदू मुझे मकानों पर पानी के स्तर के निशान भी दिखाता है. बोला – लोग ज्यादा परेशान नहीं थे. स्टूडेन्ट किराएदार तो अपने अपने घर लौट गए थे और मकान मालिक लोग सामान समेट घर की ऊपरी मंजिल पर या छत पर डेरा डाले थे. गंगा किनारे मकान बनाया है तो इस तरह की आपदा की आशंका तो मान कर चलते ही हैं लोग.
मेरे पिताजी का देहावसान 11 अक्तूबर 2019 को हुआ. उनकी तेरही 23 अक्टूबर को हमारे शिव कुटी, प्रयागराज के घर में है.
अचानक नन्दू को गंगा तट पर अध जली लकड़ियां दिख जाती हैं. “ये रसूलाबाद घाट से बाढ़ में बह कर आयी हैं. अभी तो दिख रही हैं, महीना भर बाद सर्दी बढ़ेगी तो लोग उठा ले जाएंगे आग तापने या खाना बनाने के लिए. तब एक भी नजर नहीं आएगी. रसूलाबाद में ये सस्ते दाम पर बिकती भी हैं. गरीब ले आते हैं और उसी पर अपना चूल्हा जलाते हैं. दारू की भट्ठी वाले गंगा किनारे देसी शराब इसी अधजली लकड़ी के इस्तेमाल से बनाते हैं. आम की अच्छी किस्म की लकड़ी होती है और बढ़िया जलती है.”

नंदू के पास देश काल समाज की बहुत जानकारी है जो वह मुझ जैसे “उपयुक्त” श्रोता को सुनाने की इच्छा का दमन नहीं करता. वह एक वाचाल और कुशल नाऊ है! बीस मिनट सवेरे और बीस मिनट शाम की घण्ट यात्रा को वह अपने हिसाब से रोचक बनाने का प्रयास करता है.