विजय शंकर उपाध्याय


वह सड़क के किनारे के अपने खेत में चल रहा था. खेत में जुताई हो चुकी थी. शायद आलू बोने की तैयारी थी. उसने मुझे आसपास के दृष्य के चित्र लेते पाया और शायद कौतूहल वश दूर से ही बोला – खेती की दुर्दशा देख रहे हैं?

अपने खेत में विजय शंकर उपाध्याय

मेरे पूछने पर स्वत: बताने लगे वे सज्जन. सब पानी ने चौपट कर दिया. और अभी तक पानी लगा है. जमीन सूखी होती तो आलू, चना, मटर के पौधे बड़े हो रहे होते. पर इस बार तो बुआई भी नहीं हो पायी है. चना की फसल तो लगता है इस बार होगी ही नहीं. तब तक तो गेंहू की फसल का समय आ जाएगा.

धान भी ठीक से नहीं हुआ. अभी भी उसके खेत में पानी लगा है. जो पौधे लेट गए हैं, वो सड़ गए हैं. काफी फसल उसमें बर्बाद हो गई है.

अगली फसल पछेती की होने से उपज उतनी मिल नहीं पाएगी. खाने भर को मिल जाए, वही मुश्किल से होगा.

मैंने पूछा – तब क्या करेंगे?

बोयेंगे. और क्या करेंगे? आलू लगाने जा रहा हूं. थोड़ा बहुत मटर भी लगाऊंगा. सारी परेशानी के बावजूद कमर कस कर अगले मुहिम पर जुट जाना – यह शायद किसान का जन्मजात आशावाद है. यही शायद उसे जिन्दा रखता है…

उस व्यक्ति को मेरे बारे में जानने का कौतूहल था. मैंने अपना गांव बताया. नाम भी. घर की लोकेशन भी. उन्होंने अपना नाम बताया – विजय शंकर उपाध्याय. पास में ही घर है.

उनका एक क्लोज अप लेकर वहां से चलने लगा. नमस्कार किया विजय शंकर जी को. लगा कि वे और बतियाने के मूड में थे. पर मेरा सवेरे के भ्रमण का समय खत्म हो रहा था. घर लौटने की जल्दी थी.

लगता है आपने साथ एक दो सैंडविच या चना चबैना साथ ले कर चलना चाहिए सवेरे सैर के लिए निकलते समय. जिससे घर नाश्ते के लिए समय पर लौटने की बाध्यता न रहे.

अर्थात सवेरे की साइकल सैर सैर भर न हो, घुमक्कड़ी हो जाए.

विजय शंकर उपाध्याय जी से फिर मिलूंगा. उनकी खेती कैसे प्रगति करती है, यही देखने के लिए…


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

2 thoughts on “विजय शंकर उपाध्याय

  1. थोड़ा नाश्‍ता तो पास में रखना ही चाहिए, घुमक्‍कड़ी का आवश्‍यक टूल है 🙂

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