डा. तपन मंडल सूर्या ट्रॉमा सेंटर के फिजीशियन हैं। पहले समय समय पर आते थे, अब वे (लगभग) पूर्णकालिक आधार पर हैं। भर्ती होने वाले अधिकांश मरीज उन्हीं के इलाज के अंतर्गत होते हैं।
मैं भी पिछले शुक्रवार 15 नवंबर से उनका मरीज था। मुझे पेशाब में संक्रमण था – इस स्तर का कि मुंह से ली जाने वाली (oral medicines) दवाओं के बस का नहीं। इंट्रा वेनस दवाओं का कोर्स जरूरी था।
साथ ही मैं मधुमेह ग्रस्त भी हूँ। अतः जरूरी था कि मधुमेह के प्रबंधन पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए।

डा. मंडल समग्र प्रकार से इलाज में यकीन करते प्रतीत होते हैं। उनका कहना है कि मधुमेह अगर नियंत्रित न हो तो UTI के मामले में भीषण समस्या हो सकती है। मरीज की मृत्य तक। इसलिए मधुमेह प्रबंधन पर उन्होने मेरी एक क्लास ले ली। इस बारे में उन्होंने बाद में कहा कि सामन्यतः डाक्टर केवल मरीज को दवा लिख कर, इलाज कर अपना काम पूरा हुआ मानते हैं पर मरीज अगर जीवन का अनुशासन फॉलो नहीं करता तो इलाज व्यर्थ हो जाता है। इसलिए वे मरीज को समझाने में यकीन करते हैं।
उन्होंने मेरे वर्तमान वजन और वांछित वजन के आधार पर एक डाइट चार्ट का निर्माण किया। उसमें शामिल खाद्य लगभग वही थे, जो मैं समान्य रुप से लेता हूँ, पर उनकी मात्रा लगभग दो तिहाई भर थी। अगर इस चार्ट के आधार पर चल पाया – और चलने के अलावा विकल्प नहीं दिखता मुझे – तो मेरा वजन पिछले 45 साल में सबसे कम हो जाएगा।
यह तो तय लग रहा था कि वे चीनी, मिठाई (हलवाई की बनी कोई भी वस्तु), गुड़ आदि सभी प्रिय पदार्थ प्रतिबंधित कर देंगे। उन्होंने जमीन के नीचे उगने वाली सभी सब्जियां डाइट से काट दीं। आलू, गाजर मना हो गई। इसके अलावा, प्रिय नेनुआ भी मना कर दिया गया। कोंहड़ा, और शलजम को भी तिलांजलि देने को कहा डाक्टर साहब ने। उन्होंने पनीर और सोया बड़ी का (मॉडरेशन में) प्रयोग करने की छूट दी।
खीरा और ककड़ी भोजन में तुरुप के पत्ते (या जोकर) की तरह इस्तेमाल करने की छूट दी डा. मंडल ने। अर्थात भूख लगे तो इनका सेवन किया जा सकता है।
मीठे फल भी धराशायी हो गए। केला, सेब और अंगूर बहुत रुचते हैं। उन्हें न देखने के लिए निर्देश मिला।
तेल के रूप में सरसों, धान की भूसी का तेल और रिफाइण्ड तेल का ब्लेण्ड कर अत्यल्प मात्रा में प्रयोग करने को कहा।
तेल और खाद्य पदार्थों के बारे में मैंने जो किताबें पढ़ी थीं, वे काफी कन्फ्यूज करती हैं। डाक्टर मंडल के अनुसार चलें तो वह clutter हटाया जा सकता है। वैसे उस कन्फ्यूजन का नफा यह है कि आलसी व्यक्ति कोई कदम उठाता ही नहीं। डाक्टर मंडल की क्लास उस procrastination को खत्म करने वाली है। तुम्हें कुछ करना पड़ेगा जीडी अपने स्वास्थ्य के लिए! 😁
चार्ट तो उन्होंने ही बनाया पर अपने नोट्स मैंने लिख लिए। उनके कहे को मैं गंभीरता से लेता हूँ। दो दिन से वह सब पालन करने का पूरा यत्न कर रहा हूं । मेरी अपेक्षा मेरा परिवार, मुख्यतः पत्नीजी, अधिक सीरियस हैं मेरे मधुमेह प्रबंधन को लेकर।
डाक्टर मंडल का एक कथन मुझ पर काफी असर कर गया – “आपकी बॉडी अब तक मधुमेह की दवाओं के नियंत्रण में रही। कभी कुछ बदला भी तो थोड़े दवा के हेर फ़ेर से काम चल गया। पर अब उम्र ऐसी हो गई है कि आपका शरीर मधुमेह की दवाओं को चैलेंज कर रहा है। अब खानपान और व्यायाम का एक अनुशासन पालन करने का कोई विकल्प नहीं बचा।”
डाक्टर साहब से जो इंटरेक्शन हुआ, उसपर मैंने अपने बैच मेट से फोन पर चर्चा की। मेरी उम्र का वह और मेरी ही सर्विस से रेलवे के विभागाध्यक्ष पद से रिटायर हुआ। बड़ौदा में रहता है। बैच मेट ने मज़ाक में कहा – यार, बहुत स्ट्रिक्ट मत लेना डाक्टर को। इन एलोपैथी वालों ने जितना लोगों को ठीक किया है, उतनी उनकी जिंदगी बरबाद भी की है। अपना दिमाग लगा कर ही चलना। 😆
खैर, फिलहाल, दूध और उसमे बनी चाय काफी के बिना और नमकीन भुजिया को तिलांजलि दिए 48 घंटे होने को आए हैं। अभी तक तो मैं ठीक ठाक हूँ। आगे अगर कोई पाप कर्म हुआ तो उसका विवरण लिखूंगा। फिलहाल वजन 70 किलो है। आगे कम, ज्यादा जैसा होगा, ब्लॉग पर लिखने में कोई छिपाव नहीं करूंगा। यह ब्लॉग डायरी की एंट्रीज की तरह तो है।
और डाक्टर तपन मंडल जी के बारे में आगे कभी लिखूंगा। वे कभी कभी रुक्ष और कभी बहुत मधुर स्वभाव के लगते हैं – बहुत कुछ वैसे ही, जैसा मैं अपने को पाता हूँ।
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अपनी सेहत का ख्याल रखिये। सेहत है तो सब है, सेहत नहीं तो कुछ भी नहीं। बाकी आगे की एंट्रीज का इन्तजार रहेगा। उम्मीद है आप चार्ट का पालन सफलता से कर पाएंगे।
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