माणिक सेठ कहते हैं जिंदगी गोलों में बंध गयी है

माणिक सेठ की जनरल स्टोर्स की दुकान महराजगंज कस्बे के बाजार में है। पुरानी दुकान है। उनके दादा जी के जमाने की। पर माणिक नौजवान हैं। डिजिटल पेमेण्ट एप्प का प्रयोग करने वाले कस्बे के पहले व्यापारी। उनकी दुकान में मुझे वह चीज मिल जाती है, जो और कहीं कस्बाई बाजार में नहीं मिलती।

सवेरे साइकिल से निकलता हूं तो यदा कदा उनकी दुकान की ओर चला जाता हूं। घर गृहथी की छोटी मोटी चीजें जो याद रहती हैं, उन्हें लेने के लिये। लॉकडाउन 1 और 2 में उनकी दुकान तो पूरी तरह बंद थी। यदा कदा दिखे तो उनसे सामान मिल जाता था। माणिक ने ही बताया था कि दुकान नहीं खुलती, पर सुरती की तलब रखने वाले सवेरे छ बजे ही घर का दरवाजा खटखटा कर सुरती मांगने लगते हैं।

अब, कोरोनावायरस संक्रमण के शमन के लिये किये लॉकडाउन 3.0 में, बाजार कुछ पटरी पर आ रहा है। माणिक सेठ की दुकान खुलने लगी है। सवेरे दस बजे खुलती है। शाम के सात बजे तक खुली रहती है। पर सोशल डिस्टेंसिन्ग का पुख्ता इंतजाम कर रखते हैं माणिक और उनके बड़े भाई जी। माणिक मुझे दुकान के बराम्दे की फर्श पर पेण्ट से उकेरे गोले दिखाते हैं। इन गोलों में ग्राहक के खड़े होने का प्रावधान है। माणिक बताते हैं कि लोग और पास न आयें, इसके लिये वे दुकान में बिक्री के लिये उपलब्ध कूलर और पंखों की पंक्तियां इन गोलों और काउण्टर के बीच जमा देते हैं।


माणिक सेठ और महराजगंज बाजार विषय पर पोस्टें –

  1. मानिक सेठ और कस्बे में कैशलेस
  2. महराजगंज के कस्बाई बाजार पर फुटकर सोच

“अब बस यही गोले हैं, और गोलों में खड़े ग्राहक। जिंदगी गोलों में बंध गयी है। पता नहीं कितने दिन चलेगा। शायद लम्बा ही चलेगा!” – माणिक कहते हैं। यह भी बताते हैं कि ग्राहकी पहले से कम हो गयी है। शायद अभी लोग बाजार करने निकल ही नहीं रहे। अभी शायद नये सामान की खेप भी नहीं आ रही।

अब बस यही गोले हैं, और गोलों में खड़े ग्राहक। जिंदगी गोलों में बंध गयी है।

माणिक मेरी सोशल मीडिया की पोस्टें पढ़ा करते हैं। कई बार वे कहते हैं – सर जी, आपने फलाने चीज के बारे में नहीं लिखा? या ढिमाके विषय में आपका क्या सोचना है? सामान्यत: एक कस्बाई दुकानदार से यह अपेक्षा नहीं की जाती। माणिक विशेष हैं। अपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (अब प्रयागराज विश्वविद्यालय हो गया है, क्या?) के दिनों के संस्मरण भी यदा कदा बताते हैं। आजकल कोरोनावायरस के कारण जो जिंदगी बंध गयी है, उसमें व्यक्ति पुरानी यादें भी ज्यादा करने लगता है।

माणिक सेठ का कहा मुझे बहुत सटीक लगा आजकल कोरोना-काल के उहापोह, व्यग्रता और जकड़न भरी जिंदगी के बारे में – जिंदगी गोलों में बंध गयी है।

माणिक सेठ

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

One thought on “माणिक सेठ कहते हैं जिंदगी गोलों में बंध गयी है

Leave a reply to Anupama Shukla Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started