गांव के लोगों को मैंने “बड़बोले, अकर्मण्य और निठल्ले” कहा। वह शायद शिवाला परिसर में कोरोनापलायन के पथिकों को भोजन कराने वाले इन नौजवानों को अच्छा नहीं लगा। कौन अपने गांव, मुहल्ले को खराब कहना अच्छा मानेगा? पर जब गांव की अधिकांश आबादी हाथ पर हाथ धरे बैठी हो और हैरान परेशान पथिकों को असंवेदना या हिकारत से निहारती हो, तब यह कहना ठीक ही है।
इन नौजवानों को लीक से हट कर काम करते और परोपकार की भावना से लबालब देखना अधिकांश गांव वालों को सुहा नहीं रहा – ऐसा मुझे बताया गया।
“इन लोगों का कुछ स्वार्थ होगा”, “जरूर पैसा बचा लेते होंगे”, “जब कोरोना पकड़ेगा, तब चेतेंगे ये”, “मूर्ख हैं” जैसे कथन इनके बारे में कह रहे हैं आमतौर पर गांव वाले।

पर कोरोनापलायन पथिकों को भोजन कराने, उनकी अन्य प्रकार से सहायता करने और उनके प्रति दयालुता का भाव रखने/दर्शाने से इन नौजवानों के चरित्र/व्यक्तित्व में बहुत सशक्त परिवर्तन हो रहे हैं। हम जैसे लोगों से जो थोड़ा बहुत प्रशंसा और उत्साहवर्धन मिलता है, वह इनके लिये टॉनिक का काम कर रहा है।
वे मानवता के देवदूत बन कर उभर रहे हैं!

राहुल, सुशील, मोहित, धीरज जब मिलते हैं तो उनसे हाथ जोड़ कर नमस्कार होता है। कोरोनाकाल का यह मानक अभिवादन है। अगर यह समय न होता तो निश्चय ही मैं इनमें से प्रत्येक को गले लगाता। राहुल दुबे में अभूतपूर्व परिवर्तन की बात तो शैलेन्द्र जोर दे कर करते हैं। “आखिर राहुल जैसा व्यक्ति देर तक सोने की बजाय भंडारा के काम में लग गया है, इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा?”
राहुल का मुस्कराता चेहरा और सेंस ऑफ ह्यूमर मुझे बहुत प्रिय लगते हैं।
मेरे अपने साले साहब – शैलेंद्र दुबे (यद्यपि वे भाजपाई नेता हैं और एक नेता और नौकरशाह का प्रवृत्ति के हिसाब से बहुत सौहार्दपूर्ण समीकरण नहीं होता 😆 ) की शेयर वैल्यू मेरी निगाह में पिछले दिनों में बहुत बढ़ गयी है। इतनी ज्यादा कि अपर सर्किट-ब्रेकर बार बार लग रहा है! 😆

मेरी पत्नीजी इन सब के और कैलाश बिंद जी के बारे में अक्सर पूछती रहती हैं। कैलाश बहुत मुखर नहीं लगते। पर वे एक स्कूल और एक आईटीआई के मुख्य प्रबंधक हैं। यह सब होते हुये वे इस प्रकार की परोपकार की गतिविधियों से सामाजिक दूरी बना; कुछ आर्थिक चंदा दे कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकते थे। पर वे बराबर भाग लेते हैं सभी काम में। यह उत्साह जो उनका मुझे नजर आता है, लीक से हट कर चीज है। नायाब गुण!

मोहित को हमेशा मोटर साइकिल पर दौड़ते देखता हूं। एक उभरता माइक्रो/स्मॉल-व्यवसायी जो अंतत: 25-50 लोगों को जीविका देने का पोटेंशियल रखता है; और आगे बहुत कर गुजरने का माद्दा जिसमें है; मोहित आगे बहुत प्रगति करेगा। यह परोपकार के अनुभव का ज्ञान और पुण्य मोहित के बहुत काम आयेगा। उसे मैंने अनेक समारोहों का ईवेण्ट-मैनेज करते कई बार दूर से देखा है। और वह अपने शहरी समकक्षों से बीस ही है, उन्नीस नही।
सुशील कुमार मिश्र पर तो मैं पहले भी लिख चुका हूं। उनका मोटीवेशन और परोपकार के प्रति प्रतिबद्धता संक्रामक है। व्यवसाय में जो कॉन्टेक्ट बनाने और पोषित करने का गुण होना चाहिए और उस नेटवर्क का प्रयोग व्यापक सामाजिक कल्याण के लिए कैसे हो – यह सुशील बख़ूबी जानते हैं। लीडरशिप गुण सुशील में संतृप्त हैं। उनकी क्रियात्मकता मेरे जैसे 64+ के व्यक्ति को भी रीवाइटल का टॉनिक देने वाली है।

धीरज दुबे गांव में आने पर पहले पहल मेरे सम्पर्क में आये थे। तब से अब तक धीरज के व्यक्तित्व में बहुत सकारात्मक परिवर्तन देखता हूं मैं। जब उन्हें और राहुल को हाथ हिला हिला कर ट्रक पर जाते कोरोनापलायन के पथिकों को भोजन करने के लिये आमंत्रित करते; भोजन परोसते देखता हूं तो अहसास होता है कि परोपकार की भावना और जरूरतमंदों के प्रति करुणा धीरज में कितने सकारात्मक परिवर्तन कर रही है। मुझे अहसास होने लगा है कि धीरज लम्बी रेस के घोड़े निकलेंगे। यहां आसपास के गांवदेहात के अन्यमनस्क, बुझे मन और निरुद्देश्य घूमते “पुण्यात्माओं” से कहीं अलग, कहीं ज्यादा ऊर्जावान। आगे बहुत प्रगति करेंगे। शुभकामनायें, धीरज।
ये सब मुझे हृदय की गहराई में अपने लगने लगे हैं। I feel like writing blog posts individually on each of them!
मुझे यह भी बहुत भाया कि सोशल डिस्टेंसिंग को ले कर मैंने जो मुद्दे फ्लैग किये। उनको ध्यान दे कर अगले ही दिन इन नौजवानों ने अपनी कार्यप्रणाली में व्यापक सुधार कर लिया – मेरे कहे से कहीं बेहतर और ज्यादा प्रभावी। वे मौजूदा सिचयुयेशन में मुझसे कहीं बेहतर प्रबंधक प्रमाणित हो रहे हैं।
शिष्ट भी, बेहतर प्रबंधक भी और आज्ञाकारी/विनयशील भी। They are simply too Good!
आपसे बात करना चाहता हूँ आपका मोबाइल नम्बर क्या है।
मैं लाकडाउन् में रतलाम में हूँ।होली पर जौंनपुर गाँव मे था 18 फरवरी को लौटा था।
मेरा नम्बर 8989147137
9425103501 है।
आपका स्नेही
रमेश मिश्र चंचल
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