जब आप गरीबी देखें; उसकी परतें खोलने की कोशिश करें, तो जी घबराने लगता है। दशा इतनी ह्यूमंगस लगती है, इतनी विकराल कि आप को लगता है आप कुछ कर ही नहीं सकते।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
जब आप गरीबी देखें; उसकी परतें खोलने की कोशिश करें, तो जी घबराने लगता है। दशा इतनी ह्यूमंगस लगती है, इतनी विकराल कि आप को लगता है आप कुछ कर ही नहीं सकते।